जीवन की सात मर्यादाएं: दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

जीवन की सात मर्यादाएं: मित्रो, क्या कभी हमने यह विचार किया कि हमारे जीवन में आने वाली तक्लीफों का कारण क्या है हम इसके लिए किसी.......

जीवन की सात मर्यादाएं दिनेश मालवीय मित्रो, क्या कभी हमने यह विचार किया कि हमारे जीवन में आने वाली तक्लीफों का कारण क्या है हम इसके लिए किसी दूसरे व्यक्ति या हालत हो जिम्मेदार मानते हैं लेकिन ऐसा नहीं है, इसके पीछे कुछ ऐसे कारण हैं जिनपर हम कभी ध्यान नहीं देते हमारे छोटे-छोटे कार्य बनते हैं कष्टों का कारण सनातन जीवन-दर्शन में जीवन की सात मर्यादाएं बतायी गयी हैं इन मर्यादाओं का पालन न करने से जब कष्ट आना शुरू होते हैं, तो हम समझ ही नहीं पाते कि इनका कारण क्या है अपने रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में हम जाने-अनजाने अनेक ऐसे काम करते हैं, जो हमारे जीवन में अनेक कष्टों का कारण बनते हैं लेकिन जब इनके कारण जीवन में कष्ट और दुःख आना शुरू होते हैं, तो हम एकदम घबरा जाते हैं हम ईश्वर को याद कर उनसे कष्टों को दूर करने की प्रार्थना करने लगते हैं लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है जीवन में कर्म सिद्धांत अपना काम करता है कर एक्शन का रिएक्शन होना लाजमी है जीवन को एक स्वतंत्र और स्वच्छंद प्रवाह मानने वालों की कभी कमी नहीं रही सनातन धर्म में जीवन को कष्टों को दूर रखकर सुखी जीवन की जो अवधारणा की गयी है, वह बहुत अनूठी है इसमें मोक्ष और मुक्ति की अवधारणा है, जो सेमेटिक धर्मों में नहीं मिलती. सीमेटिक धर्मों की अवधारणा स्वर्ग और नरक तक सीमित है लेकिन भारत में इससे आगे मुक्ति की बात कही गयी है इसे  जीवन का परम लक्ष्य माना गया है. सनातन दर्शन में मुक्ति की योग्यता प्राप्त करने के लिए सात मर्यादाएं निश्चित की गयी हैं मर्यादा का अर्थ सीमा है. इन सीमाओं का उल्लंघन न करना हर मनुष्य का कर्तव्य है इनकी अवहेलना पाप की श्रेणी में आती है. ये मर्यादाएं इस प्रकार हैं-  1. चोरी न करना  2. व्यभिचार न करना 3. नास्तिकता न होना 4. गर्भपात न कराना 5. शराब न पीना  6. दूषित कर्म को बार-बार न करना 7. पाप करने के बाद उसे छिपाने के लिए झूठ न बोलना. आइये अब इन मर्यादाओं पर संक्षेप में कुछ चर्चा की जाए. चोरी करने को बहुत बड़ा पाप माना गया है चोरी का अर्थ किसीकी कोई वस्तु चुरा लेने तक सीमित नहीं है किसीकी कोई वस्तु हथिया लेने का भाव रखना भी चोरी की श्रेणी में आता है. संक्षेप में कहा जा सकता है कि जो मेरा नहीं है, उसे मैं अपना कहूँ, वह चोरी है. मसलन, मैंने जो लेख या कविता नहीं लिखी उसे अपने नाम पर सार्वजनिक रूप से पढूँ या किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा किये गये काम का खुद श्रेय लेने की कोशिश करूँ यह भी चोरी है. इस तरह की चोरी आजकल बहुत बढ़ गयी है इसके परिणाम बहुत घातक होते हैं. व्यभिचार, धर्म और समाज द्वारा जीवन को सुचारू चलाने के लिए निर्चारित आचरण के विपरीत है. पति द्वारा अपनी पत्नी के अलावा और पत्नी द्वारा अपने पति के अलावा किसी अन्य से अनैतिक सम्बन्ध बनाना व्यभिचार कहा जाता है आज सामाजिक और धार्मिक नियंत्रण में कमी के कारण व्यभिचार की घटनाएं ज्यादा बढ़ गयी हैं पहले यह शर्म की बात हुआ करती थी, लेकिन आजकल इसमें लोगों में शर्म या संकोच का भाव कम ही दिखाई देता है यहाँ तक कि लोगों को इस पर गर्व करते देखा जाता है. नास्तिकता का चलन भी आज बढ़ता जा रहा है. नास्तिकता का अर्थ है ईश्वर में विश्वास न होना वैसे तो भारतीय दर्शन में नास्तिक दर्शन को भी मान्यता दी गयी है ईश्वर में विश्वास को अनिवार्य नहीं माना गया है लेकिन यह बहुत ऊंची सोच है, जिस तक पहुँच पाना आसान नहीं होता.चेतना की बहुत ऊँचाई पर पहुँच कर व्यक्ति नास्तिक जैसा लगने लगता है लेकिन यहाँ जिस नास्तिकता की बात हो रही है, वह सामान्य चेतना वाले लोगों द्वारा ईश्वर पर विश्वास न करने और मनमाना आचरण करने वालों के सन्दर्भ में है. ईश्वर की सत्ता को मानने और उससे डरने के कारण बहुत से अनैतिक काम करने में मनुष्य संकोच करता है. इस अर्थ में नास्तिकता पाप है. भ्रूणहत्या या गर्भपात करना बहुत घोर पाप माना ज्ञा है किसी भ्रूण को माँ के पेट में ही नष्ट करना या करवा देना या इसमें मदद करना बहुत बड़ा पाप है किसी जीव को जन्म लेने से पहले ही समाप्त कर देना मानवीयता और प्रकृति के नियम के विरुद्ध है. आजकल बेटे की चाहत में लोग गर्भावस्था में ही होने वाले बच्चे का लिंग परिक्षण करवाते हैं कन्या का भ्रूण पाये जाने पर उसे नष्ट करवा देते हैं हालाकि आजकल इसके विरुद्ध कानून बन गया है, लेकिन फिर भी लोग इससे बाज नहीं आते. कुछ डॉक्टर भी इस पाप में सहायक होते हैं. इस पाप से बचना चाहिए. ऐसा करने वालों को बहुत लम्बे समय तक घोर नरक में असहनीय कष्ट भोगने की बात शास्त्रों में कही गयी है. शराब पीने का चलन आजकल लगातार बढ़ता जा रहा है. शराब को हरएक धर्म में निन्दित और हराम माना गया है. इसका कारण यह है कि यह हमारी आध्यात्मिक प्रगति में बाधक है. आध्यात्मिक प्रगति के लिए होश में रहना अर्थात सचेत रहना ज़रूरी है, जबकि शराब हमें गाफिल करती है. वर्तमान में शराब को बहुत महिमामंडित भी किया जा रहा है. इसे पीने के लिए परोक्ष रूप से प्रोत्साहित भी किया जा रहा है. इसमें कई कवियों और शायरों की भी बड़ी भूमिका रही है. विशेषकर नयी पीढी के युवा जीवन के संघर्षों में पस्त होकर या अवसाद को दूर करने के लिए शराब का सहारा ले रहे हैं. लेकिन यह आगे चलकर बहुत घातक सिद्ध होता है. इससे मिलने वाली तथाकथिर राहत बहुत अल्पजीवी होती है यह शारीरिक और मानसिक सेहत को बिगाड़ कर जीवन को नरक जैसा बना देती है. जीवन में गलतियाँ सभी से होती हैं. ऐसा कोई नहीं है, जो गलतियाँ नहीं करता. हमसे किसी कारण जाने-अनजाने कुछ दूषित कर्म भी हो जाते हैं. लेकिन उन कर्मों को बार-बार नहीं करना चाहिए. उनके लिए मन में पछतावा करते हुए उन्हें दुबारा नहीं करने का संकल्प लेना चाहिए. दूषित कर्म करके मनुष्य उन्हें छिपाने के लिए झूठ पर झूठ बोलता चला जाता है. एक झूठ को छिपाने के लिए सौ झूठ बोलता है. ऐसा करना बहुत बड़ा पाप है. किसी भी व्यक्ति को अपना पाप और बुरा काम छुपाने के लिए झूठ का सहारा नहीं लेना चाहिए. ऐसा करने से पाप के संस्कार और गहरे होते चले जाते हैं. हम इसके दलदल में और गहरे धँसते जाते हैं. इनसे कभी विमुख नहीं हो पाते. इस तरह हम देखते हैं कि हमारे छोटे-छोटे कार्य कैसे हमारे कष्ट का कारण बनते हैं. यह बात हमारे दयां में ही नहीं आती. इन सात वैदिक मर्यादाओं का पालन करके हम अपने जीवन को निर्दोष, सुखमय और पवित्र बना कर जीवन के परम लक्ष्य मुक्ति के लिए खुद को तैयार कर सकते हैं.