शिव और बट वृक्ष, प्रभु राम का बट वृक्ष से प्रेम: डॉ. रामगोपाल सोनी आईएफएस

स्टोरी हाइलाइट्स
शिव और बट वृक्ष, प्रभु राम का बट वृक्ष से प्रेम: डॉ. रामगोपाल सोनी आईएफएस प्रभु राम का बट वृक्ष से प्रेम कौन नहीं जानता , वनवास काल में उसके दूध से जटा ....
शिव और बट वृक्ष, प्रभु राम का बट वृक्ष से प्रेम
डॉक्टर रामगोपाल सोनी आईएफएस
प्रभु राम का बट वृक्ष से प्रेम कौन नहीं जानता , वनवास काल में उसके दूध से जटा बनाना और बट वृक्ष के नीचे ही रात्रि विश्राम करना उन्हें बहुत प्रिय था| चित्रकूट में कामदगिरि में मंदाकिनी नदी के किनारे पर्णकुटी बना कर रहने और उसके सामने लगे पुरातन बट वृक्ष के नीचे मां सीता के द्वारा बनाई वेदिका के इर्द गिर्द मुनियों के मध्य प्रभु राम और मां सीता जी सामने बैठते थे और वेद पुराण की चर्चा होती थी।
प्रभु राम कुल १२ वर्ष चित्रकूट में रहे। इन बारह वर्षों में उस पावन वट वृक्ष के नीचे बैठते थे। उस स्थान के दर्शन भक्ति भाव से करने और प्रभु राम सीता और अनुज लक्ष्मण को महसूस करने पर प्रभु की कृपा अवश्य मिलेगी।
अब मैं भगवान शिव की बरगद वृक्ष से जुड़े प्रसंग सुनाता हूं ।
कैलाश पर्वत में शिव का वास माना जाता है वैसे तो शिव सर्वत्र है। जब शिव , मां सती जी के साथ अमरकंटक से मुनिश्रेष्ट अगस्त्य ऋषि के आश्रम से लौट रहे थे त्रेता युग में उसी समय रावण ने माया सीता का हरण कर लिया था और प्रभु राम लीला से सीता को खोजते और विलाप करते जा रहे थे तब शिव जी ने प्रभु राम को देखा और सच्चिदानंद जग पावन कहकर प्रणाम किया।
सती जी ने पूछा की आप ने राजा के लड़के को इस प्रकार प्रणाम क्यों किया ।आप तो जगत के स्वामी है।
यदि ये विष्णु के अवतार है तो ये पत्नी विछोह में क्यों रो रहे है और ढूंढते फिर रहे है।
शिव जी ने बहुत समझाया परंतु उनको बोध नहीं हुआ। शिव जी ने कहा जाओ खुद परीक्षा ले लो ।
तुलसीदास जी ने लिखा
होइहैं सोई जो राम रचि राखा ।
को करि तर्क बढ़ावे शाखा।।
अर्थात वही होगा जो प्रभु राम ने रच रखा होगा।
तब लगी बैठ इंहा बट छाही ।
जब लगि तुम आव हु मोहि पाही।।
अर्थात यहां भी शिव जी बट वृक्ष के नीचे ही बैठ गए। सती जी ने जाकर सीता का रूप धरकर सामने गई तब प्रभु राम पहचान गए की ही सती जी आप अकेली वन में कैसे भटक रही है। शिव जी कहां है।सती जी को पता चल गया तब वो वापस हो गई। किंतु मार्ग में चारो तरफ वही राम उसी भेष में दिखाई दिए किंतु उनकी सेवा ब्रह्मा विष्णु और शिव जी तथा सभी देवता कर रहे थे। सती आंख बंद करके बैठ गई ।
फिर वो दृश्य नहीं दिखा पर उनको राम ने अपना प्रभाव दिखा दिया। शिव के पूछने पर सती जी ने झूठ बोल दिया कि कोई परीक्षा नहीं ली। शिव जी ने ध्यान लगाकर सब देख लिया की सती जी ने जो किया।फिर
बहुरि राम मायहि सिरु नावा ।
प्रेरि सतिहि जेहि झूठ कहावा।।
अर्थात उन्होंने राम की माया को प्रणाम किया । और मन में संकल्प ले लिया की सती ने मां सीता का रूप धारण किया है इसलिए सती के इस जन्म में मैं पत्नी का प्रेम नहीं दे सकता।
परम पुनीत न जाई तजि किए प्रेम बड पाप ।।
आकाशवाणी होती है की ऐसा प्रण शिव आपके अलावा कोई नहीं कर सकता। अब देखिए भक्त ऐसा होता है जो भगवान को दोष नही देता ।इसलिए शिव सबसे बड़े राम भक्त और सबसे बड़े वैरागी है।
सती के पूछने पर भी नहीं बताया ।पर सती जान गई कि शिव जी ने उन्हें त्याग दिया है। शिव जी ने उनको कथाएं कह कर दुख दूर करने का प्रयास किया। किंतु अपना प्रण समझ कर कैलाश पहुंचकर बट वृक्ष के नीचे पद्मासन लगाकर ध्यान मग्न हो कर समाधिस्थ हो गए।
तुलसी दास जी ने लिखा है
बीते संवत सहस सतासी । तजी समाधि शंभू अविनाशी।।
अर्थात ८७००० वर्ष की समाधि थी। तब जागे जब सती के पिता दक्ष प्रजापति बना दिए गए थे और वो यज्ञ करना चाहते थे। कैलाश पर्वत पर स्थित उस वट वृक्ष के नीचे शिव जी ने ८७००० वर्ष समाधि ली। और शिव का वह निवास स्थान और बैठकी है बट वृक्ष के नीचे। अतः वट वृक्ष शिव रूप है। अर्थात कल्याणकारी है।
इसमें कितने गुण है वर्णन नहीं किए जा सकते।
करुणा का काल है इसका दूध। अकेले यह कोरोना को ठीक कर सकता है। बस सुबह शाम एक चम्मच बरगद का दूध दो चम्मच सादे दूध के साथ मिलाकर सात दिन पी ले तो गंभीर से गंभीर कोरोना ठीक हो जायेगा। यह केवल धार्मिक आस्था से नही बल्कि इसके ज्ञात औषधीय गुण के आधार पर और कितने ही कोरोना मरीजों के ठीक होने के बाद कह रहा हूं।