सबसे बड़ा भिखारी


स्टोरी हाइलाइट्स

...अतुल विनोद:एक युवा सन्यासी भीख मांगते और अपना गुजारा करते| एक दिन वह भीख मांगते मांगते उस राज्य के राजा के यहां पहुंचे| राजा उस सन्यासी को देखकर हैरत में पड़ गये| वह सन्यासी बेहद तेजस्वी दिखता था, उसके चेहरे से उसकी उम्र का पता नहीं चलता था| इतना आकर्षक व्यक्तित्व अब तक राजा ने कभी देखा नहीं था| युवा की तरह दिखने वाला वह सन्यासी सबसे अलग अनूठा और सुंदर दिखता था|

...अतुल विनोद: एक युवा सन्यासी भीख मांगते और अपना गुजारा करते| एक दिन वह भीख मांगते मांगते उस राज्य के राजा के यहां पहुंचे| राजा उस सन्यासी को देखकर हैरत में पड़ गये| वह सन्यासी बेहद तेजस्वी दिखता था, उसके चेहरे से उसकी उम्र का पता नहीं चलता था| इतना आकर्षक व्यक्तित्व अब तक राजा ने कभी देखा नहीं था| युवा की तरह दिखने वाला वह सन्यासी सबसे अलग अनूठा और सुंदर दिखता था| राजा सन्यासी से बातचीत कर ही रहे थे तभी उनकी बेटी वहां पर आ गई| बेटी सन्यासी को देखकर उस पर मोहित हो गई| लंबे समय से राजा अपनी बेटी के लिए वर की तलाश कर रहे थे| बेटी ने कहा कि पिताजी मुझे इस युवक से शादी करनी है| राजा अपनी बेटी से बहुत प्यार करते थे राजा भी उस युवा सन्यासी से बहुत प्रभावित थे| राजा की एक ही बेटी थी राजा ने कहा कि तुम  भीख मांगना छोड़ दो| मैं अपनी बेटी से तुम्हारी शादी कर दूंगा और मेरी सारी जागीर तुम्हारी हो जाएगी| क्योंकि मेरा कोई बेटा नहीं है| जो मेरा है वह मेरी बेटी का है| संभालो इस राज्य को| भीख मांगने में क्या रखा है वह सन्यासी बोले भले मैं भीख मांग रहा हूं लेकिन भिखारी तुम नजर आ रहे हो| काश ऐसा सच में होता है कि मैं भिखारी होता और तुम राजा| तुम अपने आप को राजा समझते हो इससे बड़ा आश्चर्य कुछ और नहीं है| और जहां पर भिखारी खुद को राजा समझे वहां मुझ जैसे लोगों को अपने आप को भिखारी समझ लेना बेहतर होगा| भले ही सांसारिक संसाधनों के बल पर वह खुद को राजा समझ रहा हो, लेकिन वह अंदर से भिखारी ही था और जिस युवा सन्यासी को भिखारी समझा जा रहा था वह अंदर से इतना समृद्ध थे कि उनके खजाने के आगे अनेक राज्यों की सारी तिजोरियां मिलकर भी फीकी थी| भले ही लोग ऊपर से अपने पात्र भर लें लेकिन उनके अंदर के पात्र खाली रहते हैं| कई बार जो लोग भिखारी दिखाई देते हैं| उनके बाहर के पात्र भले ही खाली हो लेकिन अंदर के पात्र भरते चले जाते हैं| भारत एक ऐसा देश है जहां पर अनेक राजाओं ने अपने राजमहल त्याग कर भिक्षा के पात्र पकड़े हैं| वे अंदर के पात्रों का महत्व जान गए थे, और जिसने अंदर के पात्र भरलिए उससे बड़ा शहंशाह दुनिया में कोई हो नहीं सकता| बाहरी संसाधन के बल पर दुनिया  बड़ा से बड़ा व्यक्ति 5 मिनट की सांसे भी नहीं खरीद सकता| लेकिन आंतरिक संसाधन व्यक्ति को अजर अमर कर देते हैं| क्योंकि आंतरिक संसाधन व्यक्ति को उसके आत्म स्वरूप में स्थापित कर देते हैं| और जो व्यक्ति आत्मस्वरूप में स्थापित हो गया है| उसके लिए बाहरी चीजों का कोई मोल नहीं रह जाता| वह तो सदा सदा के लिए जीवंत हो जाता है| जो व्यक्ति अपने आंतरिक संसाधनों के आनंद के सागर में गोते लगा रहा है| उसे बाहर की खुशियां क्या दे सकती है? सागर तो हमेशा सागर रहता है| दो चार नदियां मिलने या 2,4 नदिया निकलने से उसके स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं आता|