भोपाल: वन विभाग में उत्तम शर्मा द्वारा निर्धारित टेंडर शर्तों को दर-किनार सप्लायर्स और डीएफओ नेक्सेस के बीच स्थापित कमीशन का खेल जारी है। इस खेल में वन मुख्यालय में बैठे शीर्ष अधिकारी भी शामिल है। हाल ही में छतरपुर वन मंडल में 3.5 करोड़ की निविदा में ऐसी शर्तें जोड़ी गईं, जिनसे सामान्य ठेकेदार तो शुरुआत में ही बाहर हो जाएं और मौका सिर्फ चुनिंदा खिलाड़ियों तक सिमटकर रह जाए। इसकी शिकायत मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को की गई है।
छतरपुर डीएफओ ने रिजर्व क्षेत्र में घेराव के लिए सीमेंट पोल और अन्य सामग्री की सप्लाई का टेंडर निकाला गया। लेकिन शर्तें में कहा गया है कि निविदाकर्ता को आवेदन से पहले रिजर्व के 75% स्थानों का भौतिक परीक्षण करना होगा और उसके जियो-टैग फोटो जमा करने होंगे। साथ में रेंजर का सत्यापन प्रमाणपत्र भी अनिवार्य किया गया।
इस पर कतिपय निविदाकर्ताओं का कहना है कि ये शर्ते कमीशन खोरी के लिए जोड़ी गई है? कहा जा रहा है कि ये शर्ते डीएफओ- सप्लायर्स ने निजी हितार्थ के जोड़ी है। इस नेक्सेस को तोड़ने के लिए वन बल प्रमुख वीएन अंबाड़े जुटे है पर उन्हें पीसीसीएफ-सीएफ स्तर के अधिकारियों का साथ नहीं मिल रहा है।
प्रवेश भी बंद, शर्तें भी कड़ी
मुसीबत यह कि जिन स्थानों का सर्वे जरूरी है, वहां बिना अनुमति प्रवेश प्रतिबंधित है। सूत्रों के अनुसार, कुछ ठेकेदारों ने साहस कर रिजर्व क्षेत्र में जाने की अनुमति विभाग से चाही,लेकिन अधिकारियों ने इससे साफ इंकार कर दिया। वन कानून के तहत बिना परमिशन घुसने पर छह माह तक की सजा का प्रावधान है। यानी शर्तें भी पूरी करो और रिजर्व क्षेत्र में बिना अनुमति गए तो अपराध दर्ज होना तय है।
फीस भरे बिना तैयारी का बोझ
पांच हजार रुपए प्रोसेसिंग फीस जमा करने से पहले ही ठेकेदारों को सर्वे, यात्रा और जियो-टैगिंग पर खर्च करना पड़ता—यानी टेंडर से पहले ही बाधाओं का पहाड़। इसके चलते कई इच्छुक ठेकेदार निविदा में शामिल नहीं हो सके।
शिकायत पहुंची सीएम-सीएस तक
अटपटी शर्तों से परेशान ठेकेदारों ने मामला सीएम हेल्पलाइन और मुख्य सचिव अनुराग जैन तक पहुंचा दिया है। आरोप है कि पूरी प्रक्रिया ऐसे डिजाइन की गई कि निविदा में सिर्फ वही खिलाड़ी शामिल हों,जिन्हें विभाग पहले से चुन चुका था।
गणेश पाण्डेय