स्टोरी हाइलाइट्स
सनातन धर्म-दर्शन में ग्रुस्थाश्रम को सबसे श्रेठ माना गया है. जो व्यक्ति गृहस्थ के कर्तव्यों का सही-सही पालन करता...
“यज्ञ” शब्द का अर्थ, अज्ञान के कारण सीमित हो गया, गृहस्थों के लिए पांच अनिवार्य शुभ कर्म.. दिनेश मालवीय
सनातन धर्म-दर्शन में ग्रुस्थाआश्रम को सबसे श्रेठ माना गया है. जो व्यक्ति गृहस्थ के कर्तव्यों का सही-सही पालन करता है, वह जीवन के परम लक्ष्य मोक्ष का सहज ही अधिकरी हो जाता है. हर हिन्दू गृहस्थ के लिए पांच शुभ कर्म अनिवार्य रूप से करने के निर्देश हैं. इन शुभ कर्मों को “यज्ञ” कहा गया है. हमारी सांस्कृतिक समझ और ज्ञान में जिस तरह ह्रास हुआ है, उसके कारण हम अपनी मूल धार्मिक-सांस्कृतिक अवधारणाओं से दूर होते जा रहे हैं. पुरानी पीढ़ी के लोग तो कुछ जानते भी थे, लेकिन नई पीढ़ी के लोग इससे पूरी तरह अनभिज्ञ होते जा रहे हैं. सल्तनत और मुग़ल शासनकाल में सनातन धर्म-संस्कृति को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गयी. वे इसमें पूरी तरह कामयाब इसलिए नहीं हुए, इसका एक बड़ा कारण यह था कि उस समय के भारतीय अपनी सांस्कृतिक जड़ों से मजबूती से जुड़े रहे. लाख तरह की परेशानियां झेलने के बाबजूद अधिकतर लोग अपनी धार्मिक-सांस्कृतिक निष्ठा से नहीं डिगे. लेकिन ब्रिटिश शासनकाल में हमारी सांस्कृतिक क्षति बहुत गहरी हुयी, जो आज तक जारी है. भारत की नई पीढ़ी अपने धर्म की मूल बातों से अपरिचित होती जा रही है. एक छोटा-सा उदाहरण यह है कि, “यज्ञ” शब्द का अर्थ सीमित हो गया. सामान्य रूप से अग्नि में सामग्री के होम को ही यज्ञ समझा जाने लगा. निश्चित ही यह भी यज्ञ है, लेकिन यज्ञ का अर्थ बहुत व्यापक है. “यज्ञ” का अर्थ है, त्याग और शुभ कर्म. इसमें त्याग की बात तो लोग समझ लेते हैं और कतिपय सामग्री को हवनकुंड में डालकर मान बैठते हैं कि, हमने यज्ञ कर लिया. लेकिन “यज्ञ” के शुभ कर्म वाले अर्थ की बिलकुल अनदेखी की जा रही है.
सनातनी गृहस्थों के लिए पांच शुभ कर्म निर्धारित किये गये हैं, जिन्हें पञ्च महायज्ञ कहा जाता है. इन्हें पूरा किये बिना कोई सच्चे अर्थों में सनातनी हिन्दू नहीं हो सकता. इन पांच यज्ञों की अवधारणा को समझकर ही हिन्दू जीवन सभी पुरुषार्थों को पूरा कर सकता है. पहला यज्ञ है ब्रह्मयज्ञ. यहाँ ब्रह्म से आशय ज्ञान से है. हर सनातनी हिन्दू का यह परम कर्तव्य है कि, वह स्वयं शिक्षा प्राप्त करे और अपनी संतानों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दे. सिर्फ भौतिक और लौकिक शिक्षा पर्याप्त नहीं है, संतानों को धर्म, अध्यात्म समाज सेवा और मानव कल्याण की दिशा में काम करने की शिक्षा देना भी उतना ही महत्वपूर्ण है. हर सनातनी हिन्दू का कर्तव्य है कि, वह अपने घर में ऐसा वातावरण बनाए कि बच्चे स्वाभाविक रूप से पढ़ने की ओर प्रेरित हों. हर व्यक्ति को अपनी क्षमता के अनुसार घर में धरम ग्रन्थ रखे और उनका अध्ययन करे. उसे इनके अलावा भी अच्छी साहित्यिक पुस्तकें खरीदकर घर में लाना चाहिए. बच्चों को उन्हें पढने के लिए प्रेरित करना चाहिए. बच्चों में ज्ञान के प्रति जिज्ञासा की वृत्ति विकसित करे.
दूसरा है देव यज्ञ. इसमें हम उन सभी ज्ञात-अज्ञात लोगों और शक्तियों के हित में कुछ करते हैं, जो हमारे जीवनयापन और सुरक्षा में योगदान करती हैं. पुराने शास्त्रों में इन्हें देवता कहा गया है. लेकिन डॉ.एस राधाकृष्णन जैसे आधुनिक मनीषियों के अनुसार, हमारे जीवन में अनेक लोगों का योगदान होता है, हमें उनमें से अधिकतर के बारे में पता नहीं होता. उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का सबसे अच्छा तरीका है कि हम अपना हर काम पूरी ईमानदारी और निष्ठा से करें. मिसाल के तौर पर आपका भोजनालय है, तो आप यह सुनिश्चित करें कि, वहां आने वालों को शुद्ध भोजन समय पर मिले. उन्हें कोई असुविधा नहीं हो. आप व्यापारी है, तो यह देखें कि आपके द्वारा कोई मिलावटी वस्तु नहीं बेंची जाए. अधिक दाम नहीं लिए जाये शिक्षक को ईमानदारी से शिक्षा देनी चाहिए, चिकित्सक को नैतिकता के साथ इलाज करना चाहिए. सभी लोग अपना-अपना काम इसी तरह करें, तो पूरे समाज का भला होगा, जिनमें वो लोग भी शामिल होंगे, जिनका अआपके जीवन में योगदान है.
तीसरा है पितृ यज्ञ. इस यज्ञ को करने का कर्तव्य पूरा करने के लिए हमें अपने माता-पिता और घर के दूसरे बुजुर्गों का पूरा ध्यान रखना चाहिए. उन्हें सिर्फ भोजन कराना ही पर्याप्त नहीं है, उनके साथ अच्छा व्यवहार, दूसरी ज़रूरतों को पूरा करना चाहिए. सबसे बड़ी बात तो उनके साथ कुछ समय बिताया जाना चाहिए. आज इस यज्ञ की अवहेलना के परिणामस्वरूप ही हमारे देश में बुजुर्गों की स्थिति दयनीय हो रही है. परिवार के बुजुर्गो से बच्चों को कम उम्र से ही ऐसा लाड़-प्यार मिलता है, जो जीवन भर उनका संबल बना रहता है. वे दूसरों से प्यार और सहयोग करने का संस्कार ग्रहण करते हैं. उनका भावनात्मक विकास इतना अच्छा होता है कि, वे जीवन में कितनी भी बड़े संकट में कुंठित और निराश नहीं होते.
चौथा है मानव यज्ञ. इसमें हमें दूसरे लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए. हमारे घर आने वाले हर व्यक्ति को को पूरा मान-सम्मान मिलना चाहिए. यदि भूखा हो तो भोजन और प्यासा हो तो पानी मिलना चाहिए. कोई भी अतिथि भूखा नहीं लौटना चाहिए. अतिथि को हमारी संस्कृति में देवतुल्य माना गया है. हर गृहस्थ का यह कर्तव्य है कि वह अपने हर अतिथि का पूरा सत्कार करे. इस कार्य में घर की स्त्रियों की महत्वपूर्ण भूमिका बतायी गयी है. वे अतिथि सत्कार में कोई कमी नहीं रखें. इससे घर में सम्पन्नता और सुख बढ़ता है. हर गृहस्थ को सही माध्यमों से अधिक से अधिक धन कमाना चाहिए. गरीबी को भारत में बड़ा पाप माना गया है. गरीबी को दूर करने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा देना चाहिए. दूसरे ग़रीबों को भी ऊपर उठने में मदद करना गृहस्थ का कर्तव्य है.
पांचवां है भूत यज्ञ. हमारी संस्कृति के अनुसार संसार में हर जीव को जीने का अधिकार है. यह श्रृष्टि और इसके संसाधन सिर्फ हमारे उपभोग के लिए नहीं हैं. इसमें अपने आसपास रहने वाले सभी जीवों का अधिकार है. इसीलिए सनातनी परिवारों में पहली रोटी गाय को और आखिरी रोटी कुत्ते को दी जाती है. घर की छत पर पक्षियों के लिए दान-पानी रखा जाना चाहिए. किसी भी जीव-जंतु के साथ अनावश्यक हिंसा नहीं की जानी चाहिए. श्रीमदभगवतगीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि, जो मनुष्य सिर्फ अपने लिए पकाता है, वह पाप ही पकाता है. सनातन धर्म में गृहस्थों के लिए निर्धारित इन पांच यज्ञों को निष्ठा से करने वाले के जीवन में सदा समृद्धि, शान्ति और सुख बनी रहती है. वह सम्यक जीवन जीता हुआ मोक्ष को प्राप्त होता है.