दुखों का मूल कारण… P ATUL VINOD


स्टोरी हाइलाइट्स

नया-नया प्रेम भी असीम खुशियां देता है| दिन रात एक दूसरे से बातें करने में मशगूल रहना अच्छा लगता है| शुरुआत में सब कुछ अच्छा नजर आता है लेकिन समय गुजरने के साथ वही व्यक्ति, वही आवाज वही व्यक्तित्व, उतना रूमानी नहीं लगता|

हम दुखी हैं पर क्यों? दुखी होने के कुछ कारण तो समझ में आते हैं, लेकिन ज्यादातर कारण समझ नहीं आते| हमारे दुख का मूल कारण प्रकृति को न समझ पाना है| प्रकृति परिवर्तनशील है लेकिन हम परिवर्तन विरोधी हैं| हमारी स्थायित्व की प्यास ही हमारे दुख का मूल कारण है| जैसे हर-एक की ख्वाहिश होती है कि ये सेहत हमेशा बरकरार रहे, लेकिन लाइफ लोंग हेल्थ कंडीशन एक जैसी नहीं रह सकती| हम चाहते हैं कि हमारे रिश्ते हमेशा बेहतर बने रहे, लेकिन रिश्ते में भी उतार-चढ़ाव आता है| हमें कोई अच्छी वस्तु मिली तो हम उसे हमेशा बरकरार रखना चाहेंगे, हमने घर बनाया तो हम चाहेंगे कि वो घर हमेशा नया बना रहे हैं, हमें अच्छी नौकरी पद,प्रतिष्ठा मिली तो हम चाहेंगे कि वो हमेशा वैसी की वैसी बनी रहे| कोई भी चीज जो भौतिकता से जुड़ी हुई है वो स्थाई नहीं रह सकती| जब ये जीवन ही स्थाई नहीं है तो इस जीवन के अंदर घटित होने वाली छोटी-छोटी घटनाएं प्राप्तियां और उपलब्धियां कैसे लोंगटर्म हो सकती हैं? जिस दिन हम स्थायित्व की चाहत छोड़ देंगे, दुनिया के बदलते स्वरूप को जान जाएंगे तब हम बहुत हद तक अपने दुखों से दूर हो जाएंगे| आज हमारे बच्चे छोटे हैं कल बड़े हो जाएंगे आज बच्चों के नादानियां हमें खुश कर रही है तो बड़े होने पर उनके द्वारा की गई नादानियां दुख का कारण भी बन सकती हैं| रोज सुबह होती है सुबह का वातावरण खुशनुमा होता है, लेकिन सूरज के चढ़ते चढ़ते आसमान में वाहनों के प्रदूषण के बादल छाने लगते हैं| शांति शोरगुल में तब्दील हो जाती है| सुबह का आराम दिन के काम में तब्दील हो जाता है| जो शरीर सुबह स्फूर्त था, दिन ढलते ढलते थकान से भर जाता है| नया-नया प्रेम भी असीम खुशियां देता है| दिन रात एक दूसरे से बातें करने में मशगूल रहना अच्छा लगता है| शुरुआत में सब कुछ अच्छा नजर आता है लेकिन समय गुजरने के साथ वही व्यक्ति, वही आवाज वही व्यक्तित्व, उतना रूमानी नहीं लगता| यदि किसी को खूबसूरत जीवन साथी मिल जाए वो चाहेगा कि उसकी खूबसूरती जस की तस रहे लेकिन समय के साथ शरीर की सांझ ढलती है| जिम्मेदारियों का बोझ, समय की मार और उम्र का तकाजा, व्यक्ति की स्मार्टनेस को कम करने लगता है| एक समय आता है जब बाल सफेद होने लगते हैं, गाल भर आते हैं, तोंद निकलने लगती है, झुर्रियां उभर आती हैं| कब तक आप उसे टाल पायेंगे? आपके प्रयास एक समय बाद काम नहीं करते और उम्र शरीर पर सवार हो जाती है| कुछ भी चिरस्थाई नहीं| बचपन में जो शरीर लचकदार होता है बुढ़ापे में वही कड़क हो जाता है| कैसे बरकरार रखेंगे आप? इसीलिए भौतिक संसार को क्षणभंगुर कहा गया है| इसलिए अध्यात्म में दिखने वाले जगत को माया कहा गया है| जहां सब कुछ एक समय के अंतराल में बदल जाता है, जिससे दूर ना होने की उम्मीद थी वो भी दूर हो जाता है| जिसके बदलने की अपेक्षा न थी वो भी बदल जाता है| इस बदलाव के साथ जी लेने की कला सीख लेने से व्यक्ति सुखी हो जाता है| यही व्यावहारिकता है| यही समझदारी है कि हम चेंज को स्वीकार करें और चेंज की अनिवार्यता को समझ कर चेंज के लिए तैयार रहें| कुछ भी बदल सकता है, कुछ भी छूट सकता है, कुछ भी मिल सकता है|