नीति पर चलो सब ठीक हो जाएगा...मानव का सबसे बड़ा धर्म


स्टोरी हाइलाइट्स

(सृष्टि कितनी भी बदल जाय फिर भी हम सुखी नहीं हो सकते जबकि दृष्टि ज़रा सी बदल जाय हम सुखी रह सकते है ) मस्तक को थोड़ा झुका कर देखिये अभिमान मर जाएगा !

अनीति से युद्ध  (सृष्टि कितनी भी बदल जाय फिर भी हम सुखी नहीं हो सकते जबकि दृष्टि ज़रा सी बदल जाय हम सुखी रह सकते है ) मस्तक को थोड़ा झुका कर देखिये अभिमान मर जाएगा ! आँखों को थोड़ा नम कर के देखिये पत्थर दिल पिघल जाएगा ! जिव्ह्या पर विराम लगा कर देखिये क्लेश का करवा गुजर जाएगा ! इच्छाओं को थोड़ा घटाकर देखिये ,खुशियों का संसार नजर आएगा ! निति का पक्ष ले कर देखिये पुण्यो का भण्डार मिल जायगा ! वृद्ध जटायु रावण को परास्त करने में समर्थ न था परन्तु उसने अनीति होते देखकर चुप बैठना ठीक नहीं समझा ! वह सीता का हरण कर ले जा रहे रावण से भिड़ गया ! इसमें उसे प्राण त्यागने पड़े ! यानि की प्राणो का मोह छोड़ना पड़ा ! " मोह " एक तामसिक विचार है ! प्राणो का मोह त्यागने से जटायु विजयी मानवों से भी अधिक पुण्यों का श्रेयाधिकारी बन गया ! यही है अनीति से युद्ध करने का फल ! अनीति करने वाले व अनीति का साथ देने वाले नरक गामी होते है ! विश्व के समस्त धर्मो के बुनियादी सिद्धांत एक जैसे ही है वे है --- सत्य, अहिंसा , त्याग, दया , न्याय, संवेदनशीलता एवं सहिष्णुंता इत्यादि ! दया एक देविक (सकारात्मक ऊर्जा ) गुण है ! इस्लाम में देवताओं को फरिश्ता कहा है ! अन्य अनेक दैविक गुणो के साथ जिनका एक स्वाभाविक गुण " रहम" भी है ! ईसाई धर्म में भी दया को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है जो हमें एंजल्स के रूप में देखने को मिलता है ! दया के सम्बन्ध में देव पुरुषों एवं पवित्र ग्रंथों के विचार इस प्रकार है ! (a) मुझे दया के लिए भेजा है, शाप देने के लिए नहीं। -- हजरत मोहम्मद (b) जिसमें दया नहीं उसमे कोई सद्गुण नहीं। -- हजरत मोहम्मद 2. जो सचमुच दयालु है, वही सचमुच बुद्धिमान है, और जो दूसरों से प्रेम नहीं करता उस पर ईश्वर की कृपा नहीं होती।-- होम 3. दया के छोटे-छोटे से कार्य, प्रेम के जरा-जरा से शब्द हमारी पृथ्वी को स्वर्गोपम बना देते हैं।-- जूलिया कार्नी ४, न्याय करना ईश्वर का काम है, आदमी का काम तो दया करना है।-- फ्रांसिस ५, दयालुता हमें ईश्वर तुल्य बनाती है।-- क्लाडियन 6. दया सबसे बड़ा धर्म है।,-- महाभारत 7. दया दो तरफी कृपा है। इसकी कृपा दाता पर भी होती है और पात्र पर भी।-- शेक्सपियर ८ , जो गरीबों पर दया करता है वह अपने कार्य से ईश्वर को ऋणी बनाता है।-- बाइबिल ,,,जो असहायों पर दया नहीं करता, उसे शक्तिशालियों के अत्याचार सहने पड़ते हैं क्योंकि उसके प्रारब्ध ( भाग्य ) में दया नहीं होती है ! अतः अपने प्रारब्ध में दया संचित करो यानी दुसरों पर दया करो l विशेष आहार से मन ( emotions ) का निर्माण होता है ! सुन्दर विचारों के निर्माण के लिए अपने आहार का चयन करना सीखे यानि इस सम्बंद में अज्ञान को दूर करे ! आहार तीन गुणों से भरपूर होता है सत्व , रज एवं तम ! खाते समय इन तीनो गुणों का विचार कर ही आहार खाये ! भवसागर से पार होने के लिये मनुष्य शरीर रूपी सुन्दर नौका मिल गई है। सतर्क रहो कहीं ऐसा न हो कि वासना के भँवर में पड़कर नौका डूब जाय। स्वयं कमाओ, स्वयं खाओ यह प्रकृति है । (रजो गुण) दूसरा कमाए, तुम छीन कर खाओ यह विकृती है।(तमो गुण ) स्वयं कमाओ सबको खिलाओ, यह देविक संस्कृति हैं ! (सतो गुण ) देविक प्रवृतियों को धारण करे तभी आप देवलोक पाने के अधिकारी बनेंगे अवश्यं यातारश्चिरतरमुषित्वापि विषया, *वियोगे को भे दस्त्यजति न जनो यत्स्वयममून्। व्रजन्त: स्वातंत्र्यादतुलपरितापाय मनस: स्वयं त्यक्ता ह्ये शमसुखमनन्तं विदधति ।। भावार्थ -* सांसारिक विषय एक दिन हमारा साथ छोड़ देंगे, यह एकदम सत्य है। उन्होंने हमको छोड़ा या हमने उन्हें छोड़ा, इसमें क्या भेद है ?  दोनों एक बराबर हैं। अतएव सज्जन पुरुष स्वयं उनको त्याग देते हैं। स्वयं छोड़ने में ही सच्चा सुख है, बड़ी शान्ति प्राप्त होती है। हमेशा ध्यान में रखिये --- " आप एक शुद्ध चेतना है यानि स्व ऊर्जा से प्रकाशित आत्मा ! माया (अज्ञान ) ने आपकी आत्मा के शुद्ध स्वरुप को छीन रखा है ! अतः माया ( अज्ञान ) से पीछा छुडाइये और शुद्ध चेतना को प्राप्त कर परमानन्द का सुख भोगिए ! सत्कर्म करते रहना ही सही अर्थों में,,, जीवन से प्रेम,, है ! मंगलकामना : प्रभु आपके जीवन से अन्धकार (अज्ञान )को मिटायें एवं प्रकाश (ज्ञान )से भर दें ! मनुष्य " पद की गरिमा" को क्यों खोता है और उसके क्या परिणाम होते है ? उत्तर -- मनुष्य पद की गरिमा को तामसिक प्रवृतियों ( वासना , लालच एवं अहंकार ) के आधीन होने के कारण खोता है ! पवित्र गीता के अनुसार ये प्रवृतिया नरक का द्वार है ! हमारे मत में ये प्रवृतिया हमारे जीवन में तामस के उदय का आरम्भ है और यही तामस मानवो के जीवन में अज्ञानता , जड़ता एवं मूढ़ता के उदय का कारण है जो हमें नरक लोक ले जाने में सक्षम है ! अतः भ्रष्टाचार से बचो यानि पद की गरिमा को मत खोओ ! कोई भी पद या सम्मान (गरिमा ) इस जन्म में (पूर्व जन्मों में संचित ) पुण्य कर्मो की देन है !पुण्य कर्मो के ह्यास के साथ ही गरिमा भी समाप्त हो जाती है और मानव को फिर अनेक योनियों में भटकना पड़ता है l धर्मशील व्यक्ति ,,,,,,, जिमि सरिता सागर महँ जाहीं l जद्यपि ताहि कामना नाहीं ll तिमि सुख सम्पति बिनहिं बुलाये l धर्मशील पहँ जाइ सुहाये ll जैसे सरिता (नदी ) उबड-खाबड़, पथरीले स्थानों को पार करते हुए पूर्ण रूपेण निष्काम भाव से समुद्र में जा मिलती है, उसी प्रकार धर्म-रथ पर आसीन मनुष्य के पास उसके न चाहते हुए भी समस्त सुख-सम्पत्ति, रिद्धियाँ-सिद्धियाँ स्वत: आ जाती हैं, सत्य तो यह है कि वे उसकी दासिता ग्रहण करने के लिए लालायित रहती है ! सच्चे संतो की वाणी से अमृत बरसता है , आवश्यकता है, उसे आचरण में उतारने की .... जिस प्रकार मैले दर्पण में सूर्य देव का प्रकाश नहीं पड़ता है उसी प्रकार मलिन अंतःकरण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता है अर्थात मलिन अंतःकरण में शैतान अथवा असुरों का राज होता है ! अतः ऐसा मनुष्य ईश्वर द्वारा प्रदत्त " दिव्यदृष्टि " या दूरदृष्टि का अधिकारी नहीं बन सकता एवं अनेको दिव्य सिद्धियों एवं निधियों को प्राप्त नहीं कर पाता या खो देता है l " जीवन का सत्य आत्मिक कल्याण है ना की भौतिक सुख ! "सत्य वचन में प्रीति करले,सत्य वचन प्रभु वास। सत्य के साथ प्रभु चलते हैं, सत्य चले प्रभु साथ।। " "एक माटी का दिया सारी रात अंधियारे से लड़ता है, तू तो प्रभु का दिया है फिर किस बात से डरता है..." हे मानव तू उठ और सागर (प्रभु ) में विलीन होने के लिए पुरुषार्थ कर ,,,,,,, शरीर परमात्मा का दिया हुआ उपहार है ! चाहो तो इससे " विभूतिया " (अच्छाइयां / पुण्य इत्यादि ) अर्जित करलो चाहे घोरतम " दुर्गति " ( बुराइया / पाप ) इत्यादि ! परोपकारी बनो एवं प्रभु का सानिध्य प्राप्त करो ! प्रभु हर जीव में चेतना रूप में विद्यमान है अतः प्राणियों से प्रेम करो ! शाकाहार अपनाओ , करुणा को चुनो !