जब लंका में प्रवेश से डर गए अंगद


स्टोरी हाइलाइट्स

अभी अंगद जी घबरा रहे हैं, अभी लंका के परिदृश्य में लक्ष्य विस्मृत हो जाने की संभावना बनी हुई है, क्योंकि एक तो अभी सीता जी की खोज नहीं हुई है, माने भक्ति की खोज नहीं हुई है

  बड़ी रोचक चर्चा है, जो अंगद जी अभी लंका जाने में घबरा रहे हैं, वे कुछ ही समय बाद, नहीं लंका में जाएँगे? तब तो उन्हें कोई भय नहीं होगा। तो तब में और अब में क्या ऐसा अंतर पड़ गया?लोकेशानन्द की दृष्टि में यह प्रश्न बड़ा कीमती है, क्योंकि जैसा अंतर अंगद जी की परिस्थिति में आया, वैसा ही प्रत्येक साधक के जीवन में आना अपेक्षित है। आखिर यह रामकथा हमारे ही जीवन की कथा है। आएँ विचार करें- अभी अंगद जी घबरा रहे हैं, अभी लंका के परिदृश्य में लक्ष्य विस्मृत हो जाने की संभावना बनी हुई है, क्योंकि एक तो अभी सीता जी की खोज नहीं हुई है, माने भक्ति की खोज नहीं हुई है, अभी भक्ति की प्राप्ति नहीं हुई है। दूसरे, अभी अक्षकुमार नहीं मारा गया है, अभी द्रष्टाभाव उपलब्ध नहीं हुआ है, दृश्य में उलझने की संभावना बनी हुई है (यह प्रसंग विस्तार से आगे आएगा)। तीसरे, अभी सागर पर पुल नहीं बना है, माने नाम नहीं जपा गया है, साधन नहीं किया गया है (यह प्रसंग भी विस्तार से आगे आएगा)।चौथे, सागर भी पार नहीं हुआ है, अभी देह के किनारे पर ही हैं, अभी वृत्ति टिकी नहीं है, कामना मिटी नहीं है।पाँचवीं बात यह कि अभी अकेले जाना है, तो घबरा रहे हैं।लेकिन बाद में जब इन्हें, संत रूपी हनुमानजी से भक्ति का पता मिल गया। अक्षकुमार मारा गया। दैवीसम्पद्, सद्गुणों, वानरों के सहयोग से रामनाम का सेतु बन गया, माने नाम श्वास में ढल गया। भगवान की कृपा हो गई, सागर पार कर लिया गया। और अब अकेले नहीं हैं, भगवान भी साथ ही लंका में आ गए हैं। अब भय कैसा? अब क्या और किस बात का भय रहा।तो अंगद जी न केवल रावण के दरबार में धड़धड़ाते हुए घुस गए, चुनौती भी दी, और ऐसी चुनौती दी कि बड़े बड़ों का भी जिगर काँप गया। फल क्या मिला? विजयी हो कर आए, रावण का माथा शर्म से झुकाकर आए, अंगद जी परीक्षा में पास होकर आए॥     स्वामी लोकेशानन्द