ईश्वर को पाने का सरलतम मार्ग कौन सा है?


स्टोरी हाइलाइट्स

प्रश्न : ईश्वर को पाने का सरलतम मार्ग कौन सा है? कृष्णमूर्ति : मुझे लगता है कि कोई सरल मार्ग नहीं है, क्योंकि ईश्वर को पाना अत्यंत कठिन, अत्यधिक श्रमसाध्य बात है। जिसे हम ईश्वर कहते हैं, क्या मन ही ने उसका निर्माण नहीं किया है? आप जानते ही हैं कि मन क्या होता है। मन समय का परिणाम है, और यह कुछ भी, किसी भी भ्रांति को निर्मित कर सकता है। धारणाओं को बुनने की तथा रंगीनियों और कल्पनाओं में अपना प्रक्षेपण करने की शक्ति इसके पास है। यह निरंतर संचय, काट-छांट और चयन करता रहता है। संकीर्ण, सीमित तथा पूर्वाग्रहों से ग्रसित होने के कारण, यह अपनी सीमाओं के अनुसार ईश्वर की कल्पना कर सकता है, उसकी छवि बना सकता है। चूंकि कुछ खास शिक्षकों, पुरोहितों तथा तथाकथित उद्धारकर्ताओं ने कह रखा है कि ईश्वर है, और उसका वर्णन भी कर दिया है, इसलिए उसी शब्दावली में मन ईश्वर की कल्पना तो कर सकता है; लेकिन वह कल्पना, वह छवि ईश्वर नहीं है। ईश्वर का अन्वेषण मन द्वारा नहीं किया जा सकता। ईश्वर को समझने के लिए पहले आपको अपने मन को समझना होगा, जो बहुत कठिन है। मन बहुत पेचीदा है और इसे समझना सरल नहीं है। बैठे-बैठे किसी प्रकार के सपने में खो जाना, विविध दिव्य दर्शनों तथा भ्रांतियों में लीन हो जाना और यह सोचने लगना कि आप ईश्वर के बहुत करीब आ गए हैं, यह सब तो काफी सरल है। मन अपने साथ अतिशय छल कर सकता है। अतः जिसे ईश्वर कहा जा सकता है उसका अनुभव करने के लिए आपको पूर्णतः शांत होना होगा; और क्या आपको यह मालूम नहीं है कि यह कितना अधिक कठिन है? क्या आपने ध्यान दिया है कि वयस्क लोग कभी भी शांत नहीं बैठ पाते हैं, वे किस तरह बेचैन रहते हैं, पैर की उंगलियां हिलाते रहते हैं, हाथों को डुलाते रहते हैं? शारीरिक रूप से ही निश्चल बैठ पाना कितना दुःसाध्य है, मन का निश्चल होना तो और भी कितना ज़्यादा मुश्किल है? आप किसी गुरु का अनुगमन कर सकते हैं और अपने मन को शांत होने के लिए बाध्य कर सकते हैं, पर आपका मन वस्तुतः शांत नहीं होता। यह अब भी बेचैन होता है, जैसे कि किसी बच्चे को कोने में खड़ा कर दिया गया हो। बिना किसी ज़ोर-ज़बरदस्ती के पूर्णतः मौन होना, मन की एक महान कला है। केवल तभी उसकी अनुभूति हो पाने की संभावना होती है, जिसे ईश्वर कहा जा सकता है। जिद्दु कृष्णमूर्ती