उत्तर रामायण के तृतीय संवाद से क्या शिक्षा मिलती है?? श्री कागभुसुंडी जी और गरुड़ महाराज के संवाद का अध्ययन
1) वाल्मीकि जी, माँ सरस्वती जी से प्रार्थना करके कहते हैं कि उनका लिखा प्रत्येक शब्द मानव जीवन के लिए कल्याणकारी सिद्ध हो, तत्पश्चात् वे ध्यानमुद्रा में श्री कागभुसुंडी जी और गरुड़ महाराज के संवाद का अध्ययन करते हैं। जिसमें कागभुशुंडी जी मायापति श्री राम की बाल्यलीला का स्मरण करते हुए संसार को समझा रहे हैं कि क्यो बच्चों को भगवान का स्वरूप माना जाता है?? हमारी संस्कृति में।
2) कागभुशुंडी जी जैसे भक्ति का वरदान जिसनें भी भगवान से पा लिया है समझिये वह जीवन का सर्वोत्तम रहस्य जान गया। ये रहस्य प्रकृति के पाप और पुण्य के संतुलन से जुड़ा हुआ है जिसमें हम सब आते हैं।
3) तीर्थों में जाकर भी माताओं को परिवार की चिंता सताती है उनका हृदय पारिवारिक कुशलता की जिज्ञासा नही छोड़ता तो फिर तीर्थ में जाने का क्या लाभ?? इसलिये हमें इन्द्रियों को नियन्त्रित करने की शिक्षा देती है हमारी सभ्यता।
4) जब माता संदेश पहुँचाती है तो वह गर्भ धारण कर चुकी हुई सीता जी के धर्माचरण हेतु कहती है साथ ही गुरुदेव भी धर्मसभा का आयोजन इसलिये करवाते हैं क्योकि वे जानते है कि शिशु का प्रथम संस्कार माता के गर्भ में ही होता है। इसमे नवमाह के नवऔषधि आहार भी माँ को सेवन करना चाहिए जिसका क्रम शास्त्र बताया करते थे और वर्तमान में विद्वतजन बता पाते हैं जिससे बच्चे संस्कारी आवरण माँ के गर्भ में ही पा लेते हैं।
5) श्री राम जी ने प्रजा से "कर" लेने का नियम उसी काल में बता दिया था कि जैसे सूर्य भगवान् धरती से जल सोखते है लेकिन जहाँ ज्यादा है वहाँ से अधिक और जहाँ कम है वहाँ से थोड़ा जल लेकर मेघ बनाने की क्रिया को प्रदान करते है तथा वर्षा के फलस्वरूप आवश्यकता अनुसार यथास्थान वैसे ही वापस करते हैं ,,,,उसी प्रकार कर लेने की क्रिया एक राजा को अपनानी चाहिये ताकि संसार में संतुलन बना रहे।
6) श्री रामजी के अनुसार यदि न्याय में देरी की जाये तो वो भी अन्याय कहलाने लगता है इसलिए न्याय शीघ्र और उचित होना आवश्यक है। ऐसे तो राजा को विश्राम का अधिकार भी नहीं यदि उसकी प्रजा देर रात्रि तक सो भी नहीं पाती। क्योकिं इसका परिणाम अति दुखद भी हो सकता है। इसलिए राजा सर्वप्रिय होना चाहिए।
7) सेवा का निलंबन आदेश जब तक प्रजा के दुख का पता नही लगा पाते तब तक के लिये देना आवश्यक होता है ताकि सेवक को उसकी स्वयं की निष्ठा का पूर्ण ज्ञान हो और वह मामले की पूर्ण तहकीकात करे।
रजनीश दुबे