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भारत में लगी सौ करोड़ लोगों को कोरोना वैक्सीन, नये भारत की नयी उपलब्धि ..दिनेश मालवीय

सार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब नये भारत की बात करते हैं, तो यह महज जुमला नहीं होता. वह कदम-कदम पर इसकी सच्चाई साबित करके दिखा रहे हैं.

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विस्तार

भारत में लगी सौ करोड़ लोगों को कोरोना वैक्सीन, नये भारत की नयी उपलब्धि ..दिनेश मालवीय



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब नये भारत की बात करते हैं, तो यह महज जुमला नहीं होता. वह कदम-कदम पर इसकी सच्चाई साबित करके दिखा रहे हैं. यह कोई साधारण बात नहीं है, कि सिर्फ नौ माह की अवधि में देश के सौ करोड़ लोगों को कोरोना से कवच की वैक्सीन लग गयीं. यह वैक्सीन बिल्कुल मुफ्त लगी है. इस उपलब्धि का इसलिए और अधिक महत्त्व है, क्योंकि दुनिया के बहुत से विकसित देश ऐसा नहीं कर पाए हैं. वे आज भी कोरोना संकट से जूझ रहे हैं.

इन देशों ने यह चिन्ता जतायी थी, कि अगर भारत में व्यापक रूप से कोरोना फ़ैल गया, तो क्या होगा, क्योंकि यहाँ स्वास्थ्य सुविधाएं पर्याप्त नहीं हैं. भारत ने उन्हें दिखा दिया, कि दृढ़ संकल्प और सबके सहयोगसे हम कठिन से कठिन काम कर सकते हैं. इस उपलब्धि के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विशेष रूप से बधाई दके पात्र है. इसका कारण यह है, कि जब कोरोना का भयानक दौर चल रहा था और ज़रा-सी भी कमी रह जाने पर उन्हें ही जिम्मेदार गरियाया जा रहा था. इसलिए इस उपलब्धि पर भी उन्हें ही बधाई दी जानी चाहिए. प्रधानमंत्री स्वयं इस उपलब्धि का श्रेय देश के डॉक्टर्स, वैज्ञानिकों और लोगों को दे रहे हैं, जो उनके पद और व्यक्तित्व की गरिमा के अनुकूल है. लेकिन इन सब लोगों को कठिन समय में नेतृत्व और मार्गदर्शन तो उन्हीं ने दिया था.

 

विरोध से अविचलित, लक्ष्य साधे रहे    

 

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है. इसमें हर विचारधारा और सोच के लोगों का अपना मत होता है. सरकार के कामों के विरोध और समर्थन के पीछे राजनैतिक भी होते हैं.  लेकिन हाल के कुछ सालों में यह अजीब ट्रेंड चल पड़ा है कि सरकार जो भी करे, उसका विरोध किया जाए. ऐसी बातों पर भी विरोध किया जाता है, जिसके बारे में विरोध करने वाले को बहुत प्रमाणिक जानकारी भी नहीं होती. दुनिया को हलकान करने वाली कोरोना महामारी को ख़त्म करने के लिए हमारे देश के सबसे आला साइंटिस्ट्स और मेडिकल एक्सपर्ट्स कई महीनों से रात-दिन एक किये रहे. वेक्सीन बनाने को उन्होंने अपने प्रोफेशन के सबसे बड़ा चैलेंज मानकर अपनी पूरी ताक़त इस काम में झोंक दी. नतीजे भी देश का गौरव बढाने वाले आ गये. हमारे देश ने एक नहीं बल्कि दो-दो वेक्सीन बना लीं और पूरे देश में इसके उपयोग की योजना भी लगभग तैयार है. लेकिन इसके इमरजेंसी उपयोग की इज़ाजत दिए जाने पर अनेक लोग इसका विरोध कर रहे हैं. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी लगन और धुन के पक्के हैं. वे हर तरह के विरोध और आलोचना से अविचलित रहकर वैक्सीन निर्माण करने वालों के साथ दृढ़ता से खड़े रहकर उनका हौसला बढाते रहे.

 

दुनिया भर में तारीफ़

 

पश्चिमी देश भारत को विकासशील देश मानते आ रहे हैं. अनेक पैमानों पर उनकी यह बात सही भी है. लेकिन दुनिया भर में यम दूत मानी जाने वाली कोरोना महामारी से निपटने के मामले में भारत ने जो काम किया उसने न केवल दुनिया को चौंका दिया, बल्कि उसे हमारी जमकर तारीफ़ करने को भी मजबूर कर दिया. भारत ने एक नहीं बल्कि दो कोरोना वेक्सीन बनायी हैं, जो दूसरे देशों द्वारा बनायी गयी वेक्सीन्स से बहुत अधिक प्रभावी और सुरक्षित हैं. अनेक देशों को भारत ने कोरोना वेक्सीन गिफ्ट कर अपने पूर्वजों की “वसुधैव कुटुम्बकम” को सार्थक किया है. भारत की योग्यता के साथ ही उसकी मानवीय सोच की तारीफ़ करने वालों में  संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटरेस का नाम भी जुड़ गया है. उन्होंने कहा कि, “भारत की उत्पादन क्षमता आज दुनिया की सबसे अच्छी संपत्तियों में से एक है. भारत ने वैश्विक आपदा संकट से निपटने में अन्य देशों को डोज की आपूर्ति की. दुनिया इसका भरपूर इस्तेमाल कर रही है. भारत में विकसित टीकों का बड़े पैमाने पर उत्पादन हो रहा है. वैश्विक दूत की तरह टीकाकरण कार्यक्रम में वह भूमिका निभाये.”

ज़रा सोचकर देखें कि कोरोना या कोविड-19 के रूप में मानव जाति के अस्तित्व को निगलने के लिए किस तरह एक महादैत्य के रूप में सामने आयी. चिकित्सा के क्षेत्र में सबसे उन्नत माने जाने वाले देशों में लाखों लोग काल के गाल में समा गये. वहाँ के महानतम माने जाने वाले विशेषज्ञ एक-दूसरे का मुंह टापने से ज्यादा कुछ नहीं कर पा रहे थे. वे निरीह बने सिर्फ अपने देशवासियों को एक के बाद एक मरते देखने के सिवा कुछ नहीं कर पा रहे थे. डॉक्टर्स सिर्फ लोगों को दिलासा दिला पा रहे थे. किसीको कुछ अंदाजा नहीं हो पा रहा था कि क्या दवा दी जाए और इसके इलाज के लिए कौन-सा प्रोटोकाल अपनाया जाए. ऐसी कठिन परीक्षा के दौर में भारत के वैज्ञानिकों और चिकित्सा विशेषज्ञों ने अपने महान पूर्वजों की प्रतिष्ठा को बढाते हुए दो ऐसी वेक्सीन बना डालीं, जिनके दुनिया भर में तारीफ़ हो रही है. लगभग आधी दुनिया वेक्सीन के लिए भारत की तरफ देख रही है.

भारत ने यह जीवनदायक संजीवनी जैसी वेक्सीन अनेक देशों को उपहार में दे दी है. इससे भारत के उस जीवन-दर्शन और ध्येयवाक्य को मूर्तरूप मिला है जो यह कहता है कि पूरी दुनिया एक परिवार है. कोई पराया नहीं है. सभी में एक ही महाचेतना विद्यमान है. हमारे लिए कोई पराया नहीं है. भारत ने ही “जियो और जीने दो” का दर्शन दिया है. यह भारत की आध्यात्मिक श्रेष्ठता को सिद्ध करता है. भारत व्यापारिक बुद्धि वाला देश नहीं है. वह चाहता तो इस जीवनदायी वेक्सीन का व्यवसाय करके पैसा भी कमा सकता था. लेकिन फिर भारत, भारत नहीं रह जाता. भारत के मानवीय दृष्टिकोण ही युगों-युगों से इसकी पहचान रहा है. इसी पहचान को कायम रखते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं. यही हमारी वास्तविक शक्ति भी है. लिहाजा यदि संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख ने भारत से कोरोना के वेक्सीन कार्यक्रम में भूमिका निभाने की अपेक्षा की है तो यह सर्वथा उचित है. इससे हर भारतवासी और हमारे पूर्वजों का मान बढ़ा है.