कभी-कभी कुछ ऐसा हो जाता है जो ना चाहते हुए भी सच को प्रकट कर देता है. गिरगिट और राजनीति बयानों में तो हमेशा से जुड़ती रही है, लेकिन मध्य प्रदेश कांग्रेस ने बीजेपी को कटघरे में खड़ा करने के लिए गिरगिट संग प्रदर्शन का छद्म युद्ध शुरू किया है..!!
पहले दिन गिरगिट प्रदर्शन, दूसरे दिन भैंस के आगे बीन प्रदर्शन और तीसरे दिन पत्तों के आदिम ड्रेस के अंग प्रदर्शन का सहारा लिया गया है. चौथे दिन ड्रग्स के इंजेक्शन पहन लिए. विधानसभा सत्र के चार दिन के यह नजारे हैं. अभी तो सत्र बाकी है. मीडिया में कवरेज से गिरगिट अंग प्रदर्शन की यह उमंग बढ़ती ही जाएगी. विपक्ष के रूप में सरकार को कटघरे में खड़ा करने के लिए वैचारिक दिवालियापन इस सीमा तक पहुंच गया है, कि अब इसी प्रकार के प्राक्सी वॉर से ही विपक्ष की भूमिका सार्वजनिक रूप से प्रकट की जा सकती है.
मध्य प्रदेश कांग्रेस विधायक दल ने यह ऐतिहासिक प्रयोग पहली बार नहीं किया है. इसके पहले के सत्रों में भी कभी सांप लेकर विधानसभा में प्रदर्शन किया था. तो कभी चाय की केतली लेकर किया गया था. विधायकों की यह क्रिएटिविटी फिल्मी दुनिया के क्रिएटिव डायरेक्टर के लिए चिंता की बात हो सकती है. जिन जन प्रतिनिधियों का काम ईमानदारी से जनता की सेवा करना है, सरकार के भ्रष्टाचार और लचर कानून व्यवस्था को उजागर करना है, वह इस तरह की क्रिएटिविटी में अपना समय बिता रहे हैं.
सदन के अंदर चर्चा का स्तर गिरता ही जा रहा है. चर्चा में ना कोई भाषा का स्तर होता है और ना ही मुद्दों में कोई गहराई या समझ दिखाई पड़ती है. केवल प्रदर्शन और नारेबाजी विपक्षी राजनीति का मोटो बच गया . सत्र प्रारंभ होने के पहले विधानसभा अध्यक्ष ने ऐसे निर्देश जारी किए थे, कि सदन में नारे और प्रदर्शन प्रतिबंधित रहेंगे. तो इसका भी विपक्षी विधायकों द्वारा विरोध किया गया था.
कोई विधायक चुन लिया जाता है, तो पब्लिक भले ही उसके बदलते रंग देर से महसूस कर पाए, लेकिन वह नेता तो तुरंत ही रंग बदल देता है. गिरगिट प्रदर्शन राजनीति में कथनी और करनी में बदलाव के लिए उपयोग होता रहा है. कांग्रेस के विधायक भी गिरगिट प्रदर्शन के जरिए सरकार को ओबीसी रिजर्वेशन के अपने वायदे से मुकरने का आरोपी बताने के लिए कर रहे हैं. ओबीसी को 27% रिजर्वेशन देने का मामला न्याय की प्रक्रिया में विचाराधीन है. अगर इसी मुद्दे पर गिरगिट की भाषा में देखा जाए तो इसके लिए तो कांग्रेस से बड़ा गिरगिट कोई नहीं हो सकता.
जो कांग्रेस मंडल कमीशन के समय ओबीसी रिजर्वेशन का विरोध कर रही थी. इस पर संसद में राजीव गांधी का भाषण रिकॉर्ड पर उपलब्ध है. तब कांग्रेस यह कह रही थी, कि जात पर ना पांत पर मोहर लगेगी इंदिरा जी के हाथ पर. वही कांग्रेस आज जात-पांत की राजनीति कर रही है. जातिगत जनगणना का श्रेय लेने की कोशिश कर रही है. ओबीसी रिजर्वेशन जनता दल सरकार के समय न्यायालय के आदेश पर लागू हुआ था. मध्य प्रदेश में ओबीसी को 14 प्रतिशत आरक्षण लागू है. विवाद इसको बढ़ाकर 27 परसेंट करने पर हो रहा है.
कमलनाथ ने इसकी पहल की, लेकिन बाद में उच्च न्यायालय द्वारा इसे रोक दिया गया. तब से लगाकर बीजेपी की सरकारें 27% आरक्षण देने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराती रही हैं. हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में सरकार इस पर अपना सकारात्मक पक्ष रखती रही. अभी यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है. बीजेपी सरकार ने ओबीसी को 27 परसेंट आरक्षण देने के लिए कभी असहमत नहीं रही. जब मामला न्यायालय के कारण लंबित है, तो फिर इसे सरकार के रंग बदलने के आरोप के लिए गिरगिट के प्रतीक के रूप में अंग प्रदर्शन अपने आप में गिरगिटी प्रयास ही कहा जाएगा.
संसद और विधानसभा आजकल संवाद और चर्चा की उत्कृष्टता के लिए याद नहीं की जाती हैं, बल्कि ऐसे ही पॉलिटिकल ड्रामा के लिए चर्चित होती हैं. यह केवल मध्य प्रदेश की विधानसभा में हो रहा है, ऐसा नहीं है. कांग्रेस ने तो राष्ट्रीय स्तर पर भी यही स्टैंड अपनाया है. हर दिन सदन परिसर में किसी ने किसी विषय पर बैनर पोस्टर के साथ प्रदर्शन किए जाते हैं. जो दिल्ली में हो रहा है वह भोपाल में नहीं हो. तब तो वैसे ही नंबर कम होने का डर रहता है.
जो निर्वाचित जनप्रतिनिधि इस तरह के फैंसी प्रदर्शन कर रहे हैं, उन्हें निश्चित ही मानसिक रूप से यह लगता होगा कि इससे जनता का लाभ होगा. जन सेवा का उनका लक्ष्य पूरा होगा. विपक्ष की भूमिका का निर्वहन हो सकेगा. पब्लिक के लिए यह समझना मुश्किल है, कि इससे यह सब कैसे पूरा होगा. जैसे हर सक्सेस लाभ की भाषा समझती है, वैसे ही राजनेता भी समझते हैं.
राजनेताओं को ऐसे प्रदर्शन में निश्चित रूप से अपना कोई न कोई लाभ दिखाई पड़ता होगा. मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार का कार्यकाल छोड़ दिया जाए तो पिछले 22 सालों से बीजेपी की सरकार है. इस दौरान कई नेता विपक्ष रहे हैं. विपक्ष की भूमिकाएं भी निभाई गईं है लेकिन दिनों दिन विपक्ष की राजनीति शक्ति के साथ वैभव संपन्न भी हो रही है. किसी भी विपक्षी नेता का धंधा बीजेपी सरकार में कमजोर नहीं हुआ है, बल्कि बढ़ता ही गया है. इस समय विपक्षी राजनीति की सफलता इसमें देखी जाती है, कि सरकार और सिस्टम में उसका क्या परसेप्शन बना हुआ है.
उसकी भयादोहन की क्षमता कितनी है. ऐसे प्रदर्शन इस क्षमता को बढ़ाने का काम करते हैं. सरकार और सिस्टम के ब्यूरोक्रेट्स को ऐसा महसूस होता है कि जब विपक्ष की राजनीति मर्यादा के अनुरूप नहीं होती तो फिर कभी भी किसी भी तरह का हमला हो सकता है. यही परसेप्शन सिस्टम में भयादोहन को लाभकारी बनाता है. संसदीय मर्यादा और गरिमा की बातें करने वाले, चने खाकर जन सेवा करने वाले नेताओं का अब दौर रहा नहीं है. अब तो एक बार मंत्री बन जाने पर करोड़ों के बंगले और फार्म हाउस बनने में देर नहीं लगती.
सियासत कहो चाहे गिरगिट कहो दोनों पर्यायवाची ही लगते हैं. राजनीतिक भ्रष्टाचार का रंग जन सेवा के नाम पर गिरगिट जैसा ही रंग बदलने की क्षमता है.
सियासी हाट की सभी दुकानों में करनी और कथनी के फ्रॉड सजे हुए हैं. चेहरे केवल रंग नहीं बदलते बल्कि पूरे के पूरे चेहरे बदलते हुए भी दिखाई पड़ते हैं. एक चेहरे पर कई चेहरे देखे जा सकते हैं. खुद के कैरेक्टर का भरोसा नहीं और दूसरों को कैरक्टर सर्टिफिकेट देना, राजनीति में ही संभव है. सदन की बैठकें संवाद नहीं बल्कि सियासी फिल्मों के रिलीज सप्ताह के रूप में उपयोग की जाती हैं.
विधानसभा की गरिमा शाश्वत रहना चाहिए. राजनेता की ठसक और सतहीपन दिखाने के बहुत मौके हो सकते हैं, विधानसभा को इससे अलग रखना चाहिए.
पद पर पहुंचने वाले राजनेता अपने ज्ञान पर गर्व करते नहीं थकते हैं. राजनीति, राजनेताओं के ज्ञान से नहीं बल्कि जनता के अज्ञान से चल रही है. जिस समाज में जितना ज्यादा अज्ञान है. उस समाज का नेता इतना बड़ा ज्ञानी बन जाता है.