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देश की रक्षा : पता नहीं हम क्यों सो रहे हैं ?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 08 Dec

सार

अब हमारे देश भारत की बात- हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ की तरह कोई विद्धान तो हैं नहीं, बल्कि वह फील्ड में एक्शन में रहने वाले व्यक्ति हैं|

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विस्तार

अभी जून २०२२ नहीं आया है, पडौसी देशों के इरादे नेक नहीं दिख रहे हैं | हमें अनुमान था, फिर भी पता नहीं हम क्यों सो रहे हैं? याद कीजिये जून२०२१ जब हमने यह माना था कि अब देश के सामने सबसे बड़ा खतरा चीन से है। तब कहा गया था, “जब आपका एक बड़ा पड़ोसी, जिसके पास बेहतर सुरक्षा बल हों, बेहतर तकनीक हो, तो जाहिर है कि आपको इसी से निपटने को तैयार रहना होगा।”और अब पाकिस्तान ने भी नई नीति बना ली है और हम गाफिल हैं |हमारे पास पड़ोसियों से पहले अपनी एक राष्ट्रीय सुरक्षा नीति होनी चाहिए थी, वो हमारे पास नहीं है। पूर्व जनरल प्रकाश मेनन की बात याद आती है कि, “कई दशकों से, सेना को भारत का राजनीतिक मार्गदर्शन तत्काल खतरे के रूप में पाकिस्तान की ही तरफ इशारा करता रहा है। लेकिन अब जबकि चीनी खतरा दरवाजे पर है, इसमें बदलाव आया है|” पाकिस्तान ने तो अब नया गुल खिला ही दिया है |

हमारी गफलत का यह आलम है कि सरकार ने२०१८ में रक्षा योजना समिति बनाई थी, जिसकी बैठक ३ मई २०१८ को हुई थी, संभवत: इसके बाद समिति की कोई बैठक होने का समाचार तक नहीं है | तब इसकी अध्यक्षता अजित डोवाल को दी गई थी और इसमें विदेश सचिव, रक्षा सचिव, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, तीनों सेना प्रमुख और वित्त मंत्रालय के सचिव शामिल थे। इस समिति के जिम्मे राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा प्राथमिकताएं, विदेश नीति की अनिवार्यता, ऑपरेशन से जुड़े निर्देश और संबंधित आवश्यकताओं, प्रासंगिक रणनीतिक और सुरक्षा से संबंधित सिद्धांतों, रक्षा अधिग्रहण और बुनियादी ढांचे की विकास योजनाओं, राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति, रणनीतिक रक्षा समीक्षा और सिद्धांतों पर नजर रखने आदि का विस्तृत और विराट काम था।

अब पाकिस्तान से जो दस्तावेज छनकर सामने आया है वो पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति २०२२-२६ का दस्तावेज जारी किया है। इस दस्तावेज के सह लेखक पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ हैं, इसमें उन्होंने पाक सरकार की विभिन्न एजेंसियों से लिए इनपुट को स्वीकार किया है। इस नीति में बताया गया है कि पाकिस्तान का सुरक्षा को लेकर क्या नजरिया और प्राथमिकताएं हैं और इस पर अमल का विस्तृत जिक्र भी इसमें है। इस दस्तावेज के आधे हिस्से को तो सार्वजनिक किया गया है लेकिन आधे को क्लासीफाइड यानी गोपनीय ही रखा गया है। दस्तावेज में आर्थिक सुरक्षा पर जोर देते हुए कहा गया है कि पारंपरिक सुरक्षा दरअसल आर्थिक सुरक्षा हासिल करने का एक जरिया भर है। इसमें स्वास्थ्य सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, पानी की कमी, खाद्य सुरक्षा और लिंक्ष सुरक्षा की बात की गई है।

इस दस्तावेज में आतंकवाद के लिए जिन शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, “किसी समाज की स्थिरता और राष्ट्रीय सद्भाव को कम करने के प्रयासों का सबसे तीव्र रूप आतंकवाद है।”वो हमारे देश केलिए चेतावनी है |दस्तावेज आगे कहता है कि पाक की आंतरिक सुरक्षा नीति का मकसद “सभी नागरिकों के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा की गारंटी के लिए देश के सभी हिस्सों में सरकार का अधिकार सुनिश्चित करना, आतंकवाद, हिंसक उप-राष्ट्रवाद, उग्रवाद, संप्रदायवाद और संगठित अपराध का मुकाबला करने को प्राथमिकता देना और यह सुनिश्चित करना है कि पाकिस्तान बौद्धिक गतिविधि, व्यवसायों, निवेशकों और पर्यटकों और मेहमानों के लिए एक सुरक्षित गंतव्य बना रहे।”बाहरी सुरक्षा पर इसमें कहा गया है कि पाकिस्तान, “आपसी सम्मान और संप्रभु समानता के आधार पर अपने तत्काल पड़ोस में संबंधों के सामान्यीकरण के माध्यम से क्षेत्रीय शांति की तलाश करेगा।"

अब हमारे देश भारत की बात- हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ की तरह कोई विद्धान तो हैं नहीं, बल्कि वह फील्ड में एक्शन में रहने वाले व्यक्ति हैं| देश उनके यानि डोभाल सिद्धांत पर कायम है, जिसके मुताबिक आतंकवाद भारत के लिए प्राथमिक राष्ट्रीय सुरक्षा खतरा है और पाकिस्तान प्राथमिक विरोधी है। इस साल फरवरी में, भारत और पाकिस्तान ने एक आश्चर्यजनक संयुक्त घोषणा की कि वे नियंत्रण रेखा पर "सख्ती से" युद्धविराम का पालन करेंगे। यह आश्चर्यजनक इसलिए था क्योंकि इससे पहले भारत सरकार और इसके मंत्री पाकिस्तान के खिलाफ बहुत ही आक्रामक बयान देते रहे हैं। साफ है कि लद्दाख की घटनाओं से दो बातें हुईं। पहली तो यह कि भारत का फोकस पश्चिम में नियंत्रण रेखा से हटकर पूर्व में वास्तविक नियंत्रण रेखा की तरफ शिफ्ट हो गया।दूसरी बात यह भारत को अपनी नौसेना के संसाधनों को भूमि सीमा पर लगाने केलिए मजबूर होना पड़ा है। इसके साथ ही जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ तथाकथित क्वाड गठबंधन से भी एक तरह से भारत को अलग कर दिया गया है और चीन के खिलाफ अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूनाइटेड किंगडम ने अलग गठबंधन बना लिया है। इसब सब के बाद हमें जागना चाहिए और सुस्पष्ट नीति बनाना चाहिए.