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समय मान वेतनमान ने कैसे लगाया मरहम, आईएएस की सोच पर निकाला शिवराज सरकार ने आदेश..सरयूसुत मिश्रा

सार

सरकारी नौकरी में आने के बाद पदोन्नति हर कर्मचारी की चाहत होती है, अगर रोक लग जाए तो..?

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विस्तार

समय मान वेतनमान ने कैसे लगाया मरहम, आईएएस की सोच पर निकाला शिवराज सरकार ने आदेश..सरयूसुत मिश्रा



सरकार और अफसरों के सकारात्मक सोच से दशकों तक लोगों को लाभ मिलता रहता है तो नकारात्मक सोच से नुकसान भी दशकों तक पहुंचता है. सरकार के एक आदेश निकालने की पृष्ठभूमि और उस से हो रहे लाभ की जानिये पूरी कुंडली. सरकारी अधिकारी कर्मचारी व्यवस्था की बैकबोन होते हैं. सरकारी नौकरी में आने के बाद पदोन्नति हर कर्मचारी की चाहत होती है. इस चाहत पर कोई रोक लग जाए तो उसे बड़ी तकलीफ होती है.

 

मध्यप्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण के नियमों पर 2016 में हाई कोर्ट जबलपुर में रोक लगा दी है. मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. मध्यप्रदेश के सभी कर्मचारी उच्च न्यायालय के फैसले की प्रतीक्षा कर रहे हैं. पदोन्नति में आरक्षण की लड़ाई अधिकारियों और कर्मचारियों को शिवराज सरकार के समयमान वेतनमान आदेश से मरहम जरूर लगा है. वर्ष 2008 में वित्त सचिव एपी श्रीवास्तव ने यह सोच शासन में रखी कि कर्मचारियों को नियमों के कारण वित्तीय नुकसान नहीं होना चाहिए. 

 

उन्होंने अपनी सोच तत्कालीन वित्त मंत्री और सरकार के सामने रखी. सरकार की मंजूरी के बाद 24 जनवरी 2008 को मध्यप्रदेश शासन की सिविल सेवा के सदस्यों को सेवा में आगे बढ़ने के लिए निश्चित अवसर उपलब्ध कराए जाने के लिए समय मान वेतन उपलब्ध कराने के आदेश जारी किए गए. यह आदेश 2006 से लागू किया गया था. दो साल पहले से कर्मचारी-अधिकारीयों को लाभ मिला. समय मान वेतनमान की सरकारी योजना आरक्षण के कानूनी लड़ाई के बीच सेवानिवृत्त होने वाले अधिकारी कर्मचारियों के लिए वरदान साबित हुई है. इस योजना के अंतर्गत अधिकारी कर्मचारियों को सेवा काल में तीन पदोन्नतिओं का अवसर सुनिश्चित रूप से दिया जाएगा. आठ वर्ष 16 वर्ष 30 वर्ष में एक उच्च समयमान वेतनमान मिलना सुनिश्चित है.

 

इसके अंतर्गत पदोन्नति की ही प्रक्रियाएं अपनाई जाती है. कर्मचारियों अधिकारियों की गोपनीय चरित्रावली का आकलन किया जाता है पदोन्नति की पात्रता होने के बाद कर्मचारी अधिकारी को समयमान वेतनमान दिया जाता है. वर्ष 2016 के बाद पदोन्नति में आरक्षण के नियम उच्च न्यायालय जबलपुर द्वारा निरस्त करने से प्रदेश में शासकीय कर्मचारियों की पदोन्नति के प्रकरण लंबित हैं. पांच साल में हजारों की संख्या में कर्मचारी अधिकारी सेवानिवृत्त हो गए हैं. सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों को पदोन्नति के नाम पर भले ही नहीं मिले हो लेकिन समय मान वेतनमान आदेश के कारण उच्च स्तर का वेतनमान अवश्य प्राप्त हुआ है और इसके कारण सेवानिवृत्त के उपरांत अधिकारियों कर्मचारियों को वित्तीय लाभ सुनिश्चित हुआ है.

 

एक बार सेवानिवृत्त होने के बाद चीफ सेक्रेटरी और चपरासी की भी एक जैसी स्थिति होती है. सेवानिवृत्ति पर पद से ज्यादा पैसा महत्वपूर्ण होता है और इसे समय मान वेतनमान आदेश से सुनिश्चित किया है. सातवें वेतनमान के बाद जिस तरह का स्केल निर्धारित है उसमें कई पदों को क्लब कर एक ही स्केल बनाए गए हैं अधिकारी कैडर में अगर तीन पदोन्नति समय मान वेतनमान के आधार पर सुनिश्चित होती है तो अधिकारी कैडर के उच्चतर वेतनमान में कर्मचारी पहुंच जाता है. इसको इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि संयुक्त संचालक स्तर तक के अधिकारी के वेतनमान और उससे उच्च पद अपर संचालक के स्तरीय वेतनमान में लगभग 15000 का अंतर है जो अधिकारी संयुक्त संचालक पद से रिटायर होगा. उसको मिलने वाली पेंशन और अपर संचालक स्तर के सेवानिवृत्त होने वाले अधिकारी के टेंशन में लगभग ₹10000 का हर माह अंतर आता है.  

 

सोचिए जो अधिकारी अपर संचालक पद की पदोन्नति के लिए पात्र है. लेकिन वह बिना पदोन्नति के संयुक्त संचालक पद से ही सेवानिवृत्त हो जाए और उसे हर महीने ₹10000 का पेंशन में नुकसान हो तो इसका आजीवन उसके परिवार पर कितना नकारात्मक प्रभाव होगा. मध्य प्रदेश सरकार के समय मान वेतनमान योजना से अधिकारी को भले ही पद ना मिला हो लेकिन उच्चतर वेतनमान में पदोन्नति मिल गई और उसे उसको वित्तीय लाभ सुनिश्चित हो गया समय मान वेतनमान में यह जरूर होता है की पदोन्नति के लिए निर्धारित सेवा अवधि से अधिक समय बाद ही समय मान वेतनमान मिल पाता है लेकिन इससे यह व्यवस्था सुनिश्चित है कि जिस तिथि को समय मान वेतनमान के लिए कर्मचारी अधिकारी पात्र होगा.

 

उस तिथि से उसको लाभ निश्चित रूप से मिलेगा उसमें किसी प्रकार के आरक्षण या शर्तों की कोई व्यवस्था नहीं है. केवल कर्मचारी अधिकारियों को पदोन्नति के लिए पात्रता की शर्तों को पूरा करना भी जरूरी है. आज भले ही शासकीय कर्मचारी अधिकारी पदोन्नति में आरक्षण के कानूनी उलझन के कारण पदोन्नति से वंचित हो रहे हैं लेकिन मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है और अब देश की सबसे बड़ी अदालत इस पर अपना फैसला देगी लेकिन सेवानिवृत्ति के करीब कर्मचारी अधिकारी के लिए समयमान वेतनमान आदेश इन परिस्थितियों में वरदान साबित हुआ है. पदोन्नति के मामलों को केवल योग्यता पर देखा जाना चाहिए. इसमें किसी अन्य तरह की राजनीति नहीं होने से समानता और एफिशिएंसी बढ़ेगी.