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झूठ चौराहे पर मदमस्त नंगा नाच रहा है, किस पर भरोसा कीजिए: भगवान ही बचाएगा.. सरयूसुत मिश्रा

सार

हृदय विदारक और दिल दहलाने वाली घटनाओं की जांच के लिए सरकारें जांच बैठाती हैं. जांच आयोग बनाती हैं. घटनाओं और उनकी जांच के निष्कर्ष तथा की गई कार्यवाही को जांचने के लिए एक अलग जांच आयोग बनाने की जरूरत लग रही है..

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विस्तार

हृदय विदारक और दिल दहलाने वाली घटनाओं की जांच के लिए सरकारें जांच बैठाती हैं. जांच आयोग बनाती हैं. घटनाओं और उनकी जांच के निष्कर्ष तथा की गई कार्यवाही को जांचने के लिए एक अलग जांच आयोग बनाने की जरूरत लग रही है. हमीदिया के कमला नेहरू अस्पताल में हुयी घटना ने ईश्वर द्वारा पृथ्वी पर भेजे गए नए जीवन को मां की कोख से ईश्वर के पास वापस धकेल दिया है. मां ने बच्चों को ठीक से देखा भी नहीं, मां ने जन्म देने की पीड़ा ही केवल भोगी और उनके नौनिहाल को सिस्टम ने लील लिया.

जबाबदार पूरा सरकारी सिस्टम ?

वैसे तो जन्म और मृत्यु इंसान के हाथ में नहीं है. रोजी और मौत को कोई न कोई बहाना चाहिए होता है. कहावत है कि “हिल्ला रोजी बहाना मौत”. आगजनी के कारण कालकवलित बच्चों के लिए सरकार के तार बिजली नहीं सह सके और शॉर्ट सर्किट के बहाने इन बच्चों की इहलीला शुरू होने से पहले ही समाप्त हो गई. आकस्मिक दुर्घटना के लिए किसी भी सरकारी नेता या अफसर को जिम्मेदार मानना गलत होगा. गलती तो सिस्टम की है और सिस्टम को कोई एक व्यक्ति नहीं चलाता. पूरी सरकार सिस्टम में वैसे ही समाई होती है, जैसा नसों के जाल से मानव शरीर. इंसान जब भी मरता है, शरीर के सिस्टम का कोई न कोई अंग धोखा दे देता है. इसी तरह सिस्टम में आपराधिक लापरवाही किसने की है, यह तय करना मुश्किल होता है. लेकिन जबाबदार पूरा सरकारी सिस्टम होता है.

सिस्टम की निपुणता के आगे सरकारी काम की गुणवत्ता हमेशा रही हारती रही :

बच्चों के इलाज के लिए जब कमला नेहरू अस्पताल बना होगा, तो पूरे सिस्टम को श्रेय मिला होगा. वैसे आजकल सरकारों में यह प्रवृत्ति विकसित हो गई है कि उपलब्धि का श्रेय तो लीडर को और लापरवाही का  सिस्टम पर. इस घटना कों इस परिप्रेक्ष्य में भी देखा जाना चाहिए कि कोरोना की तीसरी लहर बच्चों पर भारी होने की संभावनाओं के बीच बच्चों  के अस्पतालों को भी सरकारें युद्धस्तर पर तैयार कर रही थीं. आकस्मिक घटनाएं रोकना किसी के बस की बात नहीं है. गवर्नेंस में सतत पैनी नजर और सरकारी काम की गुणवत्ता सुनिश्चित कर घटनाओं की संभावनाएं कम की जा सकती हैं. सिस्टम की निपुणता के आगे सरकारी काम की गुणवत्ता हमेशा हारती रही है. दुर्भाग्यवश जब घटनाएं होती हैं, तो वह सिस्टम के लिए सीख लेकर भविष्य में ऐसे काम करने का अवसर होती हैं जिसमें ऐसी दुर्घटनाएं होने की संभावनाएं कम हो.

इसके लिए जनता तो जिम्मेदार नहीं है :

अस्पतालों में आग लगने के कारण पिछले कुछ समय से देश के कई राज्यों में भी हादसे हुए हैं. गुजरात में भी काफी बच्चे ऐसी घटना से कालकवलित हुए थे. कुछ दिनों पहले अहमदनगर में ऐसी ही घटना से कई कोरोना मरीजों ने अपनी जान गंवाई है. सिस्टम पर कैसे जिम्मेदारी आती है, यह समझना जरूरी है. गुजरात में अस्पताल में आगजनी की घटना के बाद मध्य प्रदेश के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा सभी हॉस्पिटल्स  को फायर सेफ्टी ऑडिट के निर्देश दिए गए थे, इसका कितना पालन किया गया, यह समीक्षा करने का काम सिस्टम का ही था. जबावदेही के साथ निगरानी की जाती तो फायर सेफ्टी की समीक्षा होती और सही  इन्तेजाम सुनिश्चित हों पाते,  लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो इसके लिए जनता तो जिम्मेदार नहीं है?

रेमेडीसिवर इंजेक्शन चोरी, जांच में क्या निकला ?

अब घटनाओं पर जांच की घोषणाएं और उनके  हश्र की बात करते हैं. इसी हमीदिया अस्पताल में कोरोना जब चरम पर था, तब लोग अपने प्रभावित परिजनों की जान बचाने के लिए  रेमिडीसिवर इंजेक्शन के लिए दर-दर भटक रहे थे, तब हमीदिया से 400 रेमेडीसिवर इंजेक्शन चोरी होने का हल्ला मचा. सरकार ने सख्ती दिखाई. दोषियों पर कार्यवाही की गई.  पुलिस ने जांच शुरू की. इतने समय बाद जांच में क्या निकला ?

बचाव में चोरी की झूठी बात कही?

इसके विपरीत ऐसा पता चला कि इंजेक्शन चोरी ही नहीं हुए थे. दवा स्टोर इंचार्ज ने जब अपने अफसरों को बताया कि 350 से ज्यादा रेमेडीसिविर इंजेक्शन ऊपरी ताकतों के निर्देश पर दिए जा चुके हैं. हमने सब हिसाब रखा है, लेकिन इससे क्या होगा? ऑडिट में तो हम ही फंस जाएंगे. बताया जाता है कि इसी पशोपेश में अपने बचने के लिए उसे रास्ता सूझा कि इंजेक्शन की चोरी बता दी जाए. उसने ऐसा ही किया. सूत्रों के मुताबिक़ जब पुलिस ने जांच शुरू की, तो उस भंडार प्रबंधक ने पुलिस से कहा कि कोई इंजेक्शन की चोरी नहीं हुई थी, हमने तो अपने बचाव में चोरी की झूठी बात कही थी, क्योंकि इंजेक्शन तो ऊपरी ताकतों के कहने पर दिए गए हैं. उसका पूरा हिसाब रजिस्टर में है और सबके नाम भी लिखे हैं और तब पुलिस के कान खड़े हुए और जांच रफा-दफा करने का खेल शुरू हुआ?

जांच रफा-दफा करने का खेल कैंसे होता है?

सूत्रों के अनुसार अस्पताल का रिकॉर्ड जलाया गया? अब बताइए की जांच की घोषणा और सख्ती क्या केवल घटना की तात्कालिक आंच को कम करने के लिए की जाती है? और धीरे-धीरे सब भुला दिया जाता है. प्रदेश में  जहरीली शराब से हुई मौतों की जांच का क्या हुआ? यहां तक कि कुछ गंभीर मामलों में न्यायिक जांच की घोषणा की जाती है, लेकिन उनका परिणाम ढाक के तीन पात ही होता है.

शासन के सामान्य प्रशासन विभाग के पोर्टल के अनुसार इन जाँच आयोग रिपोर्ट पर कार्यवाही प्रचलन में है?

पेंशन योजना में अनियमितता के लिए जांच आयोग,

यूनियन कार्बाइड से जहरीली गैस रिसाव जांच आयोग,

भिंड में गोली चालन जांच आयोग,

ग्वालियर में पुलिस मुठभेड़  में मृत्यु के लिए जांच आयोग

पेटलावाद विस्फोटक  घटना के लिए जांच आयोग,

पेटलावद में मोहर्रम जुलूस और मंदसौर गोली कांड के लिए गठित जाँच आयोग,

जीएडी द्वारा  सभी आयोगों की रिपोर्ट मिलने और संबंधित विभागों में कार्यवाही प्रचलन में होने की जानकारी उसके पोर्टल पर दी गई है. क्या कार्यवाही हुई यह बात अभी तक सार्वजनिक नहीं हुई है.

मौतों की घटनाओं से सरकारों ने कोई सबक भी नहीं लिया :

सरकार की जांच की घोषणा और इस पर कार्यवाही की बात तो केवल राजनीतिक कर्मकांड सिद्ध होती है. मौतों की घटनाओं से सरकार ने कोई सबक भी नहीं लिया, इसीलिए ऐसी घटनाएं बार-बार दोहराई जाती रही है. किसी ने कहा है, “गुनाहों का अंधेरा जाँच रहा है, सच कोने में दुबका दरारों से झांक रहा है”.  झूठ मद-मस्त हो चौराहे पे  नंगा नाच रहा है. भगवान सभी की रक्षा करें ऐसी प्रार्थना के साथ. इस पर तो कुछ कहने का मतलब ही नहीं है कि घटना के बाद डीन और कुछ डॉक्टर्स को हटाया गया है. कुछ को निलंबित किया गया  है. यह तो होना ही था.