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मुफ्त राशन के बावजूद भी भूखे पेट क्यों सोते हैं लोग? सुप्रीम कोर्ट की चिंता और जन सरोकार

आशीष दुबे आशीष दुबे
Updated Fri , 04 Oct

सार

जहां तक भारत का सवाल है तो अन्ना के मामले में हम कभी से आत्मनिर्भर हो चुके हैं। इसीलिये सुप्रीम कोर्ट ने बिल्कुल ठीक कहा कि कोई भी संवैधानिक व्यवस्था, नियम, कानून या संस्था इसके आडे नहीं आ सकती।

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विस्तार

क्या किसी सभ्य समाज में यह कल्पना की जा सकती है कि बड़ी संख्या में लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैं। क्या यह स्थिति तब ज्यादा भयावह और सरकारी अनदेखी की मिलीजुली तस्वीर नहीं पेश करती, जबकि देश में अन्न के भंडार भरे हुए हैं? इसीलिये सुप्रीम कोर्ट ने भूख से जूझती आबादी तक खाना पहुंचाने की योजना पर सख्त रवैया दिखाया है।

दरअसल कोर्ट ने पिछली सुनवाई में ही केंद्र सरकार से कहा था कि राज्यों के साथ मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर कम्युनिटी किचन स्कीम की रूपरेखा बनायी जाए। मगर पिछले दिनों केंद्र सरकार की ओर से अदालत में पेश किए हलफनामे में प्रस्तावित स्कीम को लेकर ऐसी कोई नई सूचना नहीं थी, जिससे पता चलता कि उस दिशा में कितनी प्रगति हुई है। दूसरी वजह यह भी रही कि यह हलफनामा भी अंडर सेक्रेटरी स्तर के अधिकारी ने दायर किया था, जबकि सुप्रीम कोर्ट का पहले से ही निर्देश है कि सेक्रेटरी लेवल के अधिकारी से ही हलफनामा दायर कराया जाए। स्वाभाविक ही इससे कोर्ट को ऐसा लगा कि केंद्र सरकार इस मुद्दे को पर्याप्त तवज्जो नहीं दे रही है।

बहरहाल, इन तकनीकी सवालों से हटकर भी देखा जाए तो देश में किसी नागरिक के भूख से मरने की नौबत आए, यह बहुत डरावना लगता है। जहां तक भारत का सवाल है तो अन्ना के मामले में हम कभी से आत्मनिर्भर हो चुके हैं। इसीलिये सुप्रीम कोर्ट ने बिल्कुल ठीक कहा कि कोई भी संवैधानिक व्यवस्था, नियम, कानून या संस्था इसके आडे नहीं आ सकती।

बावजूद देश में आज भी आबादी के एक हिस्से के सामने दो वक्त भरपेट भोजन पाने की चुनौती बनी हुई है। कोरोना महामारी से उपजी स्थितियों ने हालात को और बदतर बनाया है। क्योंकि आजीविका के संकट से वंचित हुए लोगों में बहुत से ऐसे हैं, जिनका पुराना काम फिर से शुरू नहीं हो सका। ढेरों लोग छंटनी के चलते बेकार हो गये। ग्लोबल हंगर इंडेक्स की हालिया रिपोर्ट भी इस स्थिति की पुष्टि करती है, जिसके मुताबिक दुनिया के 116 देशों की सूची में भारत का स्थान 101वां है। पिछले साल भारत 94 वें नंबर पर था। पड़ोसी देश पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश भी उससे अच्छी स्थिति में पाए गए। पाकिस्तान इस बार जहां 92वें स्थान पर है, वहीं बांग्लादेश और नेपाल 76वें 

नंबर पर है। हालांकि यह आश्चर्यचकित करने वाला आकंडा है यही वजह है कि भारत सरकार ने इस रिपोर्ट की मेथडोलॉजी को लेकर सवाल उठाए हैं। मगर यह तथ्य अपनी जगह है कि देश की आबादी के एक हिस्से की हालत वाकई खराब है और उस तक समय पर भोजन पहुंचाने की व्यवस्था जल्द से • जल्द होनी चाहिए। यह सवाल फिर भी बचा रहेगा कि इसका सबसे अच्छा तरीका क्या हो? सुप्रीम कोर्ट में भी यह बात आई है कि कई राज्यों में इस मामले में कई मिलती-जुलती स्कीमें पहले से चल रही हैं।

फिर यह भी है कि हर राज्य की सामाजिक-आर्थिक स्थिति भिन्ना है। ऐसे में पूरे देश के हर जरूरतमंद के पास समय पर भोजन पहुंचाने का संकल्प पूरा करने का बेहतर •तरीका शायद यही होगा कि केंद्र इसके लिए जरूरी राशि दे तथा योजना का स्वरूप व क्रियान्वयन का मॉडल राज्य सरकार तय करें। हालांकि देश में सरकारें लगातार गरीबो को मुफ्त राशन की बात करती हैं और इस पर बहुत बड़ी राशि भी खर्च करती हैं, फिर यह स्थिति क्यों और कैसे है, इसकी भी सूक्ष्म मीमांसा होना चाहिये।