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जीतती राजनीति, हारता देश

सार

कहीं फट न पड़े भ्रष्टाचार पर जनाक्रोश

janmat

विस्तार

हमारा देश आज राजनीति के ओवरडोज का शिकार हो गया है। हर क्षेत्र और हर चीज में राजनीति हो रही है। कभी साम्यवाद, कभी समाजवाद, कभी उदारवाद तो कभी राष्ट्रवाद की विचारधारा की राजनीति अब केवल कुर्सीवाद पर सिमट गयी है। कुर्सीवाद की चरम आकांक्षा की कोख से ही परिवारवाद, भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचारवाद का जन्म और विकास होता है। आज घर-घर राजनीति का बसेरा है। सभी ओर भ्रष्टाचार की आग लगी हुई है। इस आग को बुझाने की कोशिश करने वाले को भी इस आग में झुलसना पड़ता है। देश के हर क्षेत्र में आज राजनीति जीत रही है, लेकिन देश हार रहा है।

आग किसी को भी नहीं छोड़ती। भ्रष्टाचार की आग भी श्रद्धालुओं के साथ पुजारियों को भी नहीं छोड़ेगी। भ्रष्टाचार की आग से पूरी दुनिया में  उथल पुथल है। भारत सहित कई देशों में भ्रष्टाचार के आरोपों में सरकारें बदली  हैं। भारत में ईमानदार राजनेताओं की कोई कमी नहीं है। देश में जहां भ्रष्ट नेताओं को उनकी जगह दिखाई जा रही है, वहीं ईमानदार राजनेताओं को सिर माथे बिठाया गया है। आजादी के बाद के दौर में एक प्रधानमंत्री अपनी पार्टी के प्रत्याशी के चुनाव प्रचार में सभा करने गए। वहां उन्हें पता लगा कि प्रत्याशी पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। उन्होंने प्रत्याशी को जिताने की नहीं बल्कि हराने की जनता से अपील की। देश के वर्तमान प्रधानमंत्री भी ईमानदारी से भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं। स्विस बैंकों में काला-धन और पनामा पेपर्स लीक आज देशव्यापी चर्चा का विषय बना हुआ है। नोटबंदी सहित अनेक ऐसे कदम उठाए गए हैं, जिनसे भ्रष्टाचार की संभावनाओं को सीमित किया गया है। भ्रष्टाचार पॉजिटिव (बी-पॉजिटिव ) तंत्र शायद ही रुके, लेकिन भ्रष्टाचार की संभावनाओं को खत्म  करना एकमात्र रास्ता है, डिजिटलाइजेशन का रास्ता शायद सफल हो।

हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। आजादी के नायकों के बलिदान और संघर्ष को याद कर अपने आत्म-गौरव का पुनर्जागरण हमारा धर्म है। इसके साथ ही आजादी के इतने सालों बाद हम कहां पहुंचे हैं? इसका आकलन भी जरूरी है। क्या आजादी के नायकों के सपनों का भारत हम बना सके हैं? हमने जो पॉलिटिकल सिस्टम अपनाया है, क्या वह सही दिशा में चला है या इसमें आई विकृतियाँ और विकार गरीब और अमीर दो भारत का निर्माण कर रहे हैं। राजनीतिक भ्रष्टाचार क्या वैभवशाली भारत के सपनों को तोड़ रहा है? पिछले कई दिनों से महाराष्ट्र से ऐसी अजब-गजब खबरें आ रही हैं,  जो लोकतांत्रिक शासन प्रणाली पर सवाल खड़े कर रही हैं।

पुलिस पर संस्थागत वसूली के आरोप लगे हैं। पूर्व गृहमंत्री को पद से हटना पड़ा और बाद में उन्हें ईडी द्वारा गिरफ्तार भी किया गया। संस्थागत रूप से क्या वसूली के सरकारी प्रयास लोकतांत्रिक शासन प्रणाली पर करारा तमाचा नहीं है? दुनिया में सात आश्चर्य आपने सुने और देखे होंगे, लेकिन क्या यह आठवां आश्चर्य नहीं है कि डीजीपी स्तर के अधिकारी महाराष्ट्र में गुमशुदा है। केंद्रीय एजेंसियों द्वारा उनके खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी किए गए हैं। देश में छिपे डीजीपी रैंक के अधिकारी को  जब नहीं तलाशा जा सकता, तो आतंक और अपराध के गठजोड़ को कैसे तोड़ा जा सकता है।

ऐसी परिस्थितियां केवल महाराष्ट्र में है ऐसा नहीं है। कमोबेश हर राज्य में ऐसी ही अराजक स्थिति  विद्यमान हैं। राजनीति और प्रशासन में जवाबदेही जैसे लुप्त होती जा रही है। अच्छी बुरी हर बात पर राजनीति हो रही है। राष्ट्र की एकता, अखंडता, सुरक्षा और विकास पर भी क्षुद्र राजनीति  होती है।

"जहां डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा वह भारत देश है मेरा, जहां सत्य अहिंसा और धर्म का लगता पग-पग डेरा वो भारत देश है मेरा"  जैसे प्रसिद्ध गीत के मूल भाव बदल गए हैं। 
 

आज "जहां डाल -डाल पर भ्रष्टाचार के कौवा कांव-कांव कर रहे हैं वही पग-पग पर सत्य अहिंसा और धर्म का डेरा" कहीं दिख रहा है? सत्य की कोई राजनीति हो रही है? चारों तरफ चुनावी फायदे की राजनीति दिखती है! जिसे “सत्य” कहकर दिखाया जाता है,हालाकि उस से सत्य कोसों दूर होता है। राजनीति और राजनेता जो कभी सत्य के लिए जाने और पहचाने जाते थे आज ऐसी बुनियाद पर खड़े हैं जिस पर सवाल उत्पन्न होते हैं।

जहां तक अहिंसा का सवाल है, केवल शारीरिक हिंसा ही हिंसा नहीं होती। पद,धन,लोलुपता और अधिकारों के दुरुपयोग से, जो हिंसा होती है वह तो देश को शासक और शासित वर्ग के बीच में बांट रही है। मजबूत चारदीवारी में प्रशासनिक तंत्र के चुने रक्षकों के साथ बैठे सरस्वती पुत्र, लक्ष्मी पुत्र बनने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं।  राजनेताओं के पीए, पीएस और करीबी तंत्र का भी लंबा इतिहास है। यह सभी लक्ष्मी के वाहन उल्लू की भूमिका में लक्ष्मी को यहां वहां पहुंचा रहे हैं।

अब बात करते हैं धर्म की। इस धर्म का मतलब पूजा-पाठ वाला धर्म नहीं है। इसका आशय है कर्म से, जिसका जो कर्म है वही उसका धर्म है। क्या  कोई भी अपना धर्म ईमानदारी से निभाता दिखाई पड़ रहा है? इसके उलट, जो निभाने में लगा हुआ है, उसकी टांग खींचने के धर्म को निभाने वाले एकजुट और सत्याग्रही बने हुए हैं।

सारी गिरावट राजनीतिक क्षेत्र में ही है, ऐसी बात नहीं है। लेकिन चूंकि आज का विषय राजनीतिक शासन प्रणाली और भ्रष्टाचार है, इसलिए इस विषय पर बात की जा रही है। इस कड़ी में अपनी बुद्धि और ज्ञान से हर क्षेत्र पर शोध और लेखन किया जाएगा।

राजनीति ने कर्महीनता को बढ़ावा दिया है, रोटी, कपड़ा, मकान सब कुछ मुफ्त देने की योजना जनकल्याण नहीं बल्कि चुनाव कल्याण है। कर्महीनता से राजनीतिक क्षेत्र लाभान्वित हो सकता है, लेकिन देश हार ही रहा है। राजनीति ने संवैधानिक संस्थाओं की मर्यादा को तार-तार करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है- चाहे संसद हो या विधानसभा, उनकी बैठकें न्यूनतम होती जा रही हैं। जो बैठकें होती भी हैं, उनमें कोई कामकाज नहीं होता। केवल राजनीति होती है। सरकार अपने कानून पास करा लेती है राजनीतिक दल जन हितैषी दिखावे की नृत्य नाटिका करते हैं।  चुनाव नजदीक हो तो यह नाटक और भाव भंगिमा जन समर्पण की कथित मिसाल पेश करते हैं।

जहां तक आम जनता का सवाल है, भ्रष्टाचार की अराजक परिस्थितियों के लिए वह भी कम जिम्मेदार नहीं है। निजी स्वार्थ और जीवन की आपाधापी में आम आदमी सार्वजनिक महत्व की बातों में न तो भागीदार होना चाहता है और न ही आवाज उठाता है। भारत की सदियों की गुलामी का शायद यही कारण रहा है कि धर्म जाति और भाषा के नाम पर बांट कर भारत पर मुगलों और अंग्रेजों ने राज किया। भारत को आजादी तभी मिल सकी जब आजादी के लिए पूरा देश एकजुट हुआ।

आजादी की लड़ाई जैसी एकजुटता की एक बार फिर देश में जरूरत है। राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरे देश को एकजुट लड़ाई लड़ने की जरूरत है।  भ्रष्टाचार के खिलाफ आम लोगों का जन आक्रोश बढ़ता जा रहा है। अगर यह फट गया तो कुर्सीवादियों को बहुत “भारी” पड़ेगा भ्रष्टाचार से आजादी की नई लड़ाई की जरूरत है। डिजिटल साधनों ने भ्रष्टाचार पर कुछ हद तक चोट की है लेकिन अभी बड़ी लड़ाई लड़ी जाना बाकी है।

देश के भविष्य और अपने बच्चों के लिए आज हमें लड़ना होगा। अंग्रेजों और मुगलों के उजड़े स्मारक देख कर भी आज के “मुगलों” और “अंग्रेजों” को क्यों अपने भविष्य का एहसास नहीं हो रहा है? यह “रहस्य” समझने की जरूरत है। भरोसा एक पल का भी नहीं है, लेकिन भ्रष्टाचार कर सैकड़ों साल का इंतजाम करने में लोग क्यों लगे हुए हैं? राजनीति और तंत्र का भ्रष्टाचार पॉजिटिव “बी पॉजिटिव” होना भारत के परम वैभव के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा है।