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अन्न : बदलिए, अपनी आदतों को

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Sat , 20 Apr

सार

प्रतिदिन-राकेश दुबे-भारत में जितना अन्न हम बेकार फेंक रहे हैं, लगभग इतनी मात्रा ब्रिटेन में हर साल उपयोग होने वाले भोजन के बराबर है। हमारे देश में हर साल २५॰१ करोड़ टन से अधिक खाद्यान्न का उत्पादन होता है। इसके बावजूद देश में हर चौथा व्यक्ति भूखा या आधे पेट सोता है।

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विस्तार

प्रतिदिन-राकेश दुबे

देश आज़ादी के ७५ वर्ष का जश्न मना रहा है, मेरे सामने संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की रिपोर्ट है। जिसके मुताबिक हमारे देश भारत में पैदा होने वाला ४० प्रतिशत भोजन बेकार चला जाता है। पता नहीं हम आज तक अन्न ब्रह्म है, जैसे वाक्य को धर्म ग्रंथो से बाहर क्यों नहीं ला सके, क्यों अब तक अन्न के दुरुपयोग की आदत से मुक्त नहीं हो सके?

भारत में जितना अन्न हम बेकार फेंक रहे हैं, लगभग इतनी मात्रा ब्रिटेन में हर साल उपयोग होने वाले भोजन के बराबर है। हमारे देश में हर साल २५॰१ करोड़ टन से अधिक खाद्यान्न का उत्पादन होता है। इसके बावजूद देश में हर चौथा व्यक्ति भूखा या आधे पेट सोता है। कृषि मंत्रालय की फसल अनुसंधान इकाई सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (सीफैट) की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में हर साल करीब ८७ लाख टन खाद्यान्न उचित भंडारण और कोल्ड स्टोरेज की समुचित व्यवस्था न होने के कारण खराब हो जाता है, जिसकी कीमत ९२ हजार करोड़ आंकी गई है।

इसी तरह हर साल २० हजार करोड़ की सब्जियां और फल बर्बाद हो जाते हैं। सीफैट हर साल फसलों की कटाई के बाद खाद्य पदार्थों पर अपनी रिपोर्ट कृषि मंत्रालय को देता है। इसकी रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल इसमें करीब २० से २२ प्रतिशत तक फल और सब्जियां कोल्ड स्टोरेज और प्रसंस्करण के अभाव में खराब हो जाते हैं।  हर साल करीब २० हजार करोड़ रुपये की फल-सब्जियां बर्बाद हो जाती हैं। सीफ़ेट के अनुसार, यदि फलों और सब्जियों को बर्बाद होने से रोकना है तो कोल्ड स्टोरेज की संख्या को दुगना करना होगा। हालांकि अभी देश में ६५०० से ज्यादा कोल्ड स्टोरेज हैं, जिनकी भंडारण क्षमता ३॰१ करोड़ टन है।  सब्जियों में हर साल टमाटर, प्याज अलग-अलग कारणों से बाजार में पहुँचने के पहले ही बर्बाद हो जाते हैं। सीफैट की रिपोर्ट कहती है कि देशभर में हर साल कोल्ड स्टोरेज के अभाव में १० लाख टन प्याज बाजार नहीं पहुंच पाता है। इसी तरह २२ लाख टन टमाटर भी अलग-अलग कारणों से बाजार नहीं पहुंच पाते हैं। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि देश में हर साल कितने बड़े पैमाने पर खाद्यान्न, फल और सब्जियां बर्बाद हो जाते हैं।इस समस्या के समाधान के लिए राज्य सरकारों ने अभी तक जितनी पहल की है, जब तक उन्हें अमलीजामा नहीं पहनाया जाएगा तब तक खाद्यान्न, फल और सब्जियों की बर्बादी नहीं रोकी जा सकती है।

वैश्विक फूड वेस्टेज इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार बीते सालों में दुनियाभर में अनुमानित ९३॰१० करोड़ टन खाना बर्बाद हो गया, जो वैश्विक स्तर पर कुल खाने का १७ प्रतिशत है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय घरों में हर साल करीब ६॰८७ करोड़ टन खाना बर्बाद हो जाता है। आंकड़े के अनुसार, ९३॰१० करोड़ टन बर्बाद खाने में से ६१ प्रतिशत हिस्सा घरों से, २६ प्रतिशत खाद्य सेवाओं और १३ प्रतिशत ॰खुदरा जगहों से आता है। यह स्थिति तब है जब शादियों व समारोहों में फिजूलखर्ची पर रोक लगाने के लिए देश में २००६ से अधिनियम लागू है।

जैसे मध्य प्रदेश में पिछले दो साल में १०० लाख टन गेहूं, ४ लाख टन धान, और १ लाख टन मूंग और उड़द का भंडारण हुआ। जिस मध्य प्रदेश का गेहूं भारत भर में सबसे महंगा और अच्छे किस्म का माना जाता है, उस प्रदेश की हालत यह है कि लाखों टन गेहूं रखरखाव के अभाव में हर साल खराब हो रहा है।

महिलाएं अन्न सुरक्षा अभियान में काफी हद तक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। यदि वे घर, उत्सव और समारोहों में खाद्यान्न की बर्बादी के खिलाफ आगे आएं तो समस्या का काफी हद तक समाधान किया जा सकता है। सरकारी लापरवाही और आम आदमी की न बदल रही आदतों के चलते इस बर्बादी के प्रति कोई ध्यान नहीं दे रहा है। इसी तरह आस्था, आदत, हैसियत दिखाने और लापरवाही की वजह से देश में बहुत कुछ हो जाता है।वो भी उस देश में  जहां दूध के अभाव में लाखों बच्चे कुपोषण और मौत के शिकार हो जाते हैं।