कोई भी सरकार हो,किसानों की आमदनी बढ़ाना तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करना उस सरकार की प्राथमिकताओं होनी चाहिए..!
प्रतिदिन-राकेश दुबे
29/11/2022
दुर्भाग्य 75 साल बाद भी आज तक हम देश कि अर्थव्यवस्था को एक पहचान नहीं दे सके | कभी हम भारत को किसानों का देश बता देश की अर्थव्यवस्था को किसानों के पाले में डाल अर्थव्यवस्था को कृषि आधारित होने की बात करते हैं, तो कभी हमारे नीति निर्धारकों का जोर उद्ध्योग आधारित अर्थव्यवस्था पर होता है तो कभी मिश्रित अर्थव्यवस्था को हम अपना भाग्य मान लेते हैं | सारे आर्थिक दर्शन जिस एक बड़े उत्पादन कारक से जुड़े है वो कृषि है |
कोई भी सरकार हो,किसानों की आमदनी बढ़ाना तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करना उस सरकार की प्राथमिकताओं होनी चाहिए | कोरोना दुष्काल से पैदा हुई समस्याओं और बढ़ती मुद्रास्फीति का असर सबसे ज्यादा ग्रामीण क्षेत्र पर ही पड़ा है| इस वर्ष एक फरवरी को वर्तमान वित्त वर्ष 2022-23 के केंद्रीय बजट में ग्रामीण विकास मंत्रालय के लिए 1.4 लाख करोड़ रुपये आवंटित किये गये थे ताकि कोरोना दुष्काल के असर से छुटकारा पाते हुए ग्रामीण भारत विकास की ओर अग्रसर हो सके|
चालू वित्त वर्ष का वास्तविक खर्च 1.6 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है| इस वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था के सात प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है| भारत को विश्व में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं की कतार में लाने में गांवों तथा वहां के उपज एवं उत्पादन की उल्लेखनीय भूमिका है| विभिन्न घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कारणों से तथा खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए भले ही गेहूं और चावल के निर्यात को अस्थायी तौर रोका गया है, लेकिन बीते कुछ वर्षों से सकल निर्यात में ग्रामीण भारत का योगदान लगातार बढ़ता जा रहा है|
देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उद्यमों और उद्योगों को बढ़ावा देने पर भी विशेष ध्यान देना जरूरी है| इसके तहत गांवों में इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर करने तथा स्थानीय उत्पादों पर आधारित उद्यमों व व्यवसायों पर खर्च किया जा रहा है, परन्तु कम है | ऐसी स्थिति में आगामी बजट में अधिक आवंटन की जरूरत है| रिपोर्टों की मानें, तो वित्त मंत्रालय इस संबंध में विचार कर रहा है| ऐसी संभावना है कि पिछले बजट की तुलना में इस बार ग्रामीण विकास के लिए आवंटन में लगभग 50 प्रतिशत वृद्धि हो सकती है यानी आवंटन दो लाख करोड़ रुपये के आसपास हो सकता है| देश के आकार और कृषि जोतों की संख्या देखते हुए इस आवंटन को और ज्यादा होना चाहिए |
इससे रोजगार के अवसर पैदा करने तथा सस्ते आवास उपलब्ध कराने में बड़ी मदद मिल सकती है| कृषि और आवास एक बुनियादी जरूरत तो है ही, यह सामाजिक एवं आर्थिक विकास का प्रमुख पैमाना भी है | किसी अन्य क्षेत्र की तरह ग्रामीण विकास में भी खर्च बढ़ाने का सीधा फायदा मांग में बढ़ोतरी के रूप में होता है| मांग बढ़ने से उत्पादन में वृद्धि होती है तथा रोजगार के अवसरों में इजाफा होता है| यह परस्पर संबंधित चक्र अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करता है| केंद्र सरकार और देश की अर्थनीति के जानकारों को इस पर प्राथमिकता से काम करना चाहिए |
ग्रामीण भारत उपभोक्ता वस्तुओं के साथ-साथ वाहनों, कृषि उपकरणों, लोहा, इस्पात, इलेक्ट्रिक चीजों आदि का भी बड़ा ग्राहक है| जब इस मांग में कमी आती है, तो उसका नकारात्मक असर औद्योगिक उत्पादन पर होता है | कोरोना दुष्काल में रोजगार और आमदनी में हुई कमी की भरपाई तेजी से करने की जरूरत है |बजट में इस पर भी ध्यान दिया जाना जरूरी है |