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लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर राजनीतिक आत्मरक्षा का प्रयास

सार

भारतीय राजनीति नित नए रूप लेती जा रही है. मोदी समर्थक और मोदी विरोधियों में विद्वेष बढ़ता जा रहा है. चुनावी राजनीति में नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने के लिए एक दूसरे के कट्टर राजनीतिक विरोधी भी अब हाथ मिलाते देखे जा सकते हैं..!

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विस्तार

कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का निवास पिछले दिनों विपक्ष की एकता के सृजन का केंद्र बनता दिखाई दिया है. मोदी सरकार के किसी ना किसी कदम से पीड़ित और प्रताड़ित राजनेता मोदी विरोध के लिए लोकतंत्र की रक्षा का राग अलाप रहे हैं. राजनीति में आत्मरक्षा और स्वार्थ पूर्ति के लिए लोकतंत्र और जनहित से ज्यादा उपयुक्त और कोई दूसरे शब्द शायद नहीं हो सकते.

बिहार के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष के निवास पर विपक्षी एकता के लिए जुटते हैं. राहुल गांधी भी इसके लिए बातचीत करते हुए दिखाई पड़ते हैं. महाराष्ट्र से शरद पवार की भी इन नेताओं से मुलाकात होती है. नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से भी मुलाकात करते हैं. 

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष से अभी तक जिन-जिन नेताओं की मुलाकात हुई है वह तो पहले से ही मिलकर अपने-अपने राज्यों में राजनीति संचालित कर रहे हैं. विपक्षी एकता की बात लोकसभा चुनाव के पहले हमेशा शुरू होती है लेकिन चुनाव आते-आते सारे पत्ते बिखर जाते हैं. एकता इसलिए नहीं हो पाती क्योंकि मोदी विरोध में दिल्ली में तो एक साथ दिखना आसान होता है लेकिन जब राज्यों में राजनीति की जमीन पर खड़े होने की बारी आती है तब उन्हीं दलों के विरोध में राजनीतिक अस्तित्व बनाना होता है.

विपक्षी राजनीति की एकता की शुरुआत न्यायालय के आदेश के बाद राहुल गांधी की संसद सदस्यता जाने के पश्चात तेज हुई है. लगभग हर दल के नेता मोदी सरकार से स्वयं को पीड़ित महसूस कर रहे हैं. नीतीश कुमार के साथ बीजेपी का गठबंधन समाप्त हुआ है. तेजस्वी यादव सीबीआई और ईडी की जांच में घिरे हुए हैं. अरविंद केजरीवाल के दो मंत्री भ्रष्टाचार के आरोप में केंद्रीय जांच एजेंसियों के शिकंजे में फंसे हुए हैं. अब केजरीवाल को भी सीबीआई ने तलब कर लिया है. कई अन्य विपक्षी राजनेताओं के मामले भी जांच एजेंसियों में चल रहे हैं. 

देश में आजकल राजनीतिक जगत में अप्रत्याशित और अनहोनी घटनाएं देखी जा रही हैं. कुछ दिन पहले ही विपक्षी राजनीतिक दलों की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में भ्रष्टाचार की जांच करने वाली केंद्रीय जांच एजेंसियों की कार्यवाही से संरक्षण के लिए याचिका प्रस्तुत की गई थी. इस याचिका में यह मांग की गई थी कि विरोधी राजनीतिक दलों के नेताओं को विशेष संरक्षण दिया जाना चाहिए. 

यह एक अनहोनी ही कही जाएगी कि राज्यों में सरकार चलाने वाले राजनेता भ्रष्टाचार से संरक्षण प्राप्त करने के लिए देश की सर्वोच्च अदालत से गुहार लगाते हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने इस याचिका को खारिज करते हुए कोई भी राहत देने से इंकार कर दिया है. अब जैसे जैसे लोकसभा चुनाव करीब आते जा रहे हैं विपक्षी दलों में यह घबराहट साफ देखी जा रही है कि मोदी के विजय रथ को रोकना किसी भी दल के लिए अकेले संभव नहीं है.

भारतीय राजनीति और जनता कभी भी कट्टर विरोध को स्वीकार नहीं करती. लोकतंत्र में चुनाव में उतरने का सभी को अधिकार है. चुनने का अधिकार जनता के पास होता है. उस अधिकार को सकारात्मक दृष्टि से मिलजुल कर प्रभावित करने के प्रयास तो सफल हो सकते हैं लेकिन केवल इस नकारात्मक आधार पर कि किसी एक नेता को पराजित करना है, बिना मुद्दों के इस प्रयास को सफलता मिलना असंभव दिखता है. भ्रष्टाचार के मामलों में मोदी सरकार पर यह आरोप लगाया जाता है कि विरोधी नेताओं को फंसाया जा रहा है.

आपराधिक मामलों में सजा न्यायालय पर ही निर्भर करती है. न्यायालय पर विश्वास ही लोकतंत्र की आधारशिला है. मोदी सरकार भ्रष्टाचार के मामले में कार्यवाही करने के लिए तत्पर दिख रही है और दूसरी तरफ विपक्षी दल भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई को रोकने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखा रहे हैं. देश के सामने जब चुनाव के हालात होते हैं, नेता के साथ ही विकास की रणनीति, सरकार की उपलब्धियां, जनता में नेता की लोकप्रियता, महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय राजनीति में उभरने के बाद अपने नाम काम और फेम को जनता के सामने स्थापित कर दो चुनाव में लगातार स्पष्ट बहुमत हासिल किया है.

जनहित के मुद्दों की कसौटी पर मोदी सरकार की लोकप्रियता के मुकाबले में कट्टर विरोध देश में स्वीकार होता दिखाई नहीं पड़ रहा है. देश क्राइम-करप्शन पर मोदी सरकार के एक्शन के पक्ष में दिखाई पड़ता है. विपक्ष की भूमिका इन सभी मामलों में सरकार के कदम का विरोध करते हुए दिखाई पड़ती है.

विपक्षी एकता का पॉलिटिकल एनकाउंटर इसलिए किया जा रहा है कि मोदी विरोधी सभी दल मिलकर शायद मोदी को पछाड़ने में कामयाब हो जाएंगे. विपक्षी राजनीति का नकारात्मक दृष्टिकोण ना केवल असफल होता दिखाई पड़ रहा है बल्कि कट्टर नकारात्मकता मोदी के प्रति सकारात्मकता को बढ़ाने का काम कर रही है. विपक्षी राजनीति की जो वास्तविकताएं हैं उसको देख कर तो ऐसा लगता है कि राष्ट्रीय स्तर पर कोई गठबंधन बन ही नहीं पाएगा.

विपक्ष का हर नेता विपक्षी एकता के लिए आतुर दिखाई जरूर पड़ेगा. मेल मुलाकात के फोटो भी समय-समय पर आते रहेंगे. विपक्ष का कोई भी नेता विपक्षी एकता के बाधक के रूप में दिखाई नहीं पड़ना चाहता लेकिन अंतर्मन से एकता के रास्ते में हिमालय जैसी बाधाएं खड़ी हैं. विपक्षी दलों में एक दूसरे को लेकर इतने अंतर्विरोध और टकराहट हैं कि उनको दरकिनार कर विपक्षी एकता का मजबूत जोड़ कायम करना संभव नहीं लगता. सभी विपक्षी नेताओं के अपने अहम और अहंकार हैं. सबके अपने स्वार्थ और अपनी संप्रभुता के क्षेत्र हैं. दूसरे के आंगन में सब नेता खेलकूद करना चाहेंगे लेकिन अपना आंगन कोई भी नेता किसी दूसरे नेता को देना कभी नहीं चाहेगा.