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राष्ट्रविरोधी टाइम बम, कैसे बचेंगे हम?

सार

भारत सरकार द्वारा पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और अन्य कुछ संगठनों को प्रतिबंधित करने का फैसला राष्ट्र के कान खड़े करने वाला है। अभी तक तो केवल खबरें आ रही थीं कि कुछ संगठन अपनी गतिविधियों से देश विरोधी माहौल बनाने और आतंक फैलाने में लगे हुए हैं। देश में इन खबरों से चिंता थी। देश जानना चाहता था कि इनकी सच्चाई क्या है? अब इन संस्थाओं को बैन करने से यह सुनिश्चित हो गया है कि भारत सरकार ने पाया है कि यह संस्थाएं देश को अस्थिर करने का खतरनाक काम कर रही थीं।

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विस्तार

पीएफआई पर बैन के बाद सियासतदां बेचैन क्यों हो रहे हैं? प्रतिबंध के विरोध में राजनीतिक दलों और नेताओं की ऐसी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं जो यह संदेश दे रही हैं कि कुछ नेताओं को प्रतिबंध गलत लग रहा है। राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप राजनीति तक तो सही माना जा सकता है लेकिन जहां राष्ट्र की एकता-अखंडता का सवाल हो, उस पर भी सरकार के आचरण पर सवाल उठाना न केवल गैरवाजिब है बल्कि अक्षम्य भी है।

राष्ट्रविनाशक मंसूबों वाले संगठनों को प्रतिबंधित करने के अलावा और क्या रास्ता हो सकता है? आतंक की राजनीति पर भी घात-प्रतिघात को क्या कहा जाएगा? समुदाय विशेष के नाम पर पीएफआई और दूसरे संगठन अपनी गतिविधियों को चलाने का दावा करते हैं। यह संगठन क्या करते हैं, यह तो तथ्य सहित अभी तक सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है लेकिन सरकार ने प्रतिबंध लगाने का कठोर फैसला किया है तो निश्चित रूप से ही सरकार इस नतीजे पर पहुँची होगी कि इन संगठनों की गतिविधियां राष्ट्रविरोधी हैं।

पीएफआई बैन पर जो प्रतिक्रियाएं राजनीतिक दलों की ओर से आ रही हैं, उनमें ऐसे सवाल उठाए जा रहे हैं कि इन्हीं संगठनों पर प्रतिबंध क्यों? दूसरे समुदाय के लिए काम करने वाले समुदायों-संगठनों को भी बैन क्यों नहीं किया जा रहा है? कोई भी संगठन देशविरोधी काम में संलग्न है, इसका निर्णय सरकार के स्तर पर ही हो सकता है। सरकार जब इस नतीजे पर पहुँची होगी कि संगठन देश विरोधी आचरण कर रहा है तो उसे प्रतिबंधित किया ही जाएगा। सरकार की नियत पर शक क्यों किया जाना चाहिए? पीएफआई और दूसरे प्रतिबंधित किए गए संगठनों को किसी समुदाय से जोड़कर देखने की आवश्यकता क्यों है? आतंक को समुदायों में बांटकर राजनीतिक नफा-नुकसान हमेशा राष्ट्र को नुकसान पहुंचाता रहा है।

किसी समुदाय को देश विरोधी नहीं माना जा सकता। समुदाय से जुड़े कुछ लोग आतंक और सांप्रदायिक गतिविधियां में शामिल हो सकते हैं। जो भी इन गतिविधियों में शामिल हों चाहे वह किसी भी समुदाय से हों उन पर कठोर कार्रवाई होनी चाहिए। धर्म के आधार पर देश के विभाजन के लम्बे समय बाद बीजेपी की सरकार केंद्र में गठित हुई है। इस सरकार को विचारधारा के आधार पर पूर्व में चल रही सरकारों के विपरीत माना जाता है।

सरकार द्वारा जब भी राष्ट्र से जुड़े फैसले लिए जाते हैं तब उनका राजनीतिक विरोध शुरू हो जाता है। एनआरसी का विरोध भी इसी नजरिए से किया जाता रहा है। उत्तर प्रदेश में मदरसों के सर्वे को भी एक समुदाय के विरोध में प्रचारित कर राजनीतिक लाभ की कोशिश की जाती रही है। अब वक्फ संपत्तियों का सर्वे भी किया जा रहा है। इस पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। सरकार के काम को समुदाय विशेष के नजरिए से उछाला जाता है ताकि समाज में विभाजन कर राजनीतिक लक्ष्य हासिल किया जा सके।

राष्ट्र राजनीति से ऊपर है। राजनीति, राजनेता और राजनीतिक दल स्थायी नहीं हैं। यह सब बनते हैं, बिगड़ते हैं, नष्ट होते हैं लेकिन राष्ट्र हमेशा रहेगा। जो हमेशा रहेगा उस पर किसी प्रकार का हमला किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। पाकिस्तान बनने के बाद पहले दिन भारत ने जो दर्द भोगा था, वह दर्द लगातार भारत को परेशान कर रहा है। भारत की आत्मा को कभी बाहर से हताहत किया जाता है तो कभी देश की अंदरूनी ताकतों का इस्तेमाल कर नुकसान पहुंचाया जाता है।

भारत में आतंकवादी गतिविधियों का लंबा सिलसिला रहा है। मोदी सरकार ने तो आतंकवादी गतिविधियों से आजिज होकर पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक तक की थी। दुर्भाग्यजनक परिस्थिति यह बनती है कि राष्ट्र की रक्षा के लिए उठाए गए कदमों पर राजनीतिक रूप से सवाल खड़े जाते हैं। सर्जिकल स्ट्राइक के समय भी कई राजनीतिक नेताओं की ओर से सवाल खड़े किए गए थे। पीएफआई पर बैन लगाने के बाद भी इसी तरह की राजनीतिक प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।

राजनीतिक विचार के आधार पर राजनेता और दल अलग-अलग विचार रख सकते हैं लेकिन राष्ट्र के रूप में तो विचार अलग हो ही नहीं सकते। दुखद स्थिति है जो बात राष्ट्र के बच्चे-बच्चे को समझ में आती है वह बात हमारे राजनेता समझते नहीं हैं, या समझते हुए ना समझने का राजनीतिक प्रहसन करते हैं।

पीएफआई के मामले में ऐसा बताया जा रहा है कि बीजेपी की सरकार ने अकेले ही इस संगठन को राष्ट्र विरोधी नहीं बताया है। इससे पहले भी कांग्रेस और दूसरे दलों की सरकारों ने इस संगठन की गतिविधियों को राष्ट्रविरोधी मानते हुए अदालतों में तथ्य प्रस्तुत किए थे। किसी भी संस्था को प्रतिबंधित करने का काम बहुत सारे होमवर्क के बाद तथ्यों और दस्तावेजों के आधार पर ही किया जाता है, क्योंकि लोकतांत्रिक देश में किसी भी संस्था को न्यायालय के सामने अपना पक्ष रख कर न्याय पाने का पूरा हक है। हमारी न्याय व्यवस्था में तो आतंकवादियों को भी न्याय का पूरा मौका दिया गया है।

राष्ट्र के लिए इस तरह का प्रतिबंध दर्द ही माना जाएगा। राष्ट्र में रहने वाला कोई भी व्यक्ति या संगठन राष्ट्र के खिलाफ काम करता हुआ पाया जाए, इससे बड़ा दर्द राष्ट्र के नजरिए से कुछ भी नहीं हो सकता। राष्ट्र किसी दल का नहीं है किसी सरकार का नहीं है। अपने घर को ही अगर कोई आग लगाने की कोशिश कर रहा है तो उस के पक्ष में कोई भी तर्क कैसे दिया जा सकता है? विचारों में अंतर, मतभेद, चुनाव में हार-जीत अलग हो सकता है लेकिन राष्ट्र धर्म तो हर भारतवासी का एक ही होगा।

पीएफआई जैसे संगठन देश के लिए घातक हैं। राष्ट्र के विरोध में ऐसी गतिविधियां टाइम बम के जैसी हैं। यह जब भी फटेंगे तो कोई नहीं बच पाएगा। आतंक की विचारधारा और सोच पर देश को अस्थिर करने की कोशिशों का टाइम बम जितनी जल्दी डिफ्यूज किया जा सके, उतना ही राष्ट्रहित में होगा। पीएफआई और अन्य संगठनों पर लगाए गए बैन को इसी नजरिए से देखना प्रत्येक नागरिक का राष्ट्र धर्म होगा।