• India
  • Sun , Dec , 08 , 2024
  • Last Update 08:34:AM
  • 29℃ Bhopal, India

अधिकार मांगने से पहले, कर्तव्य का पाठ तो पढिये

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Thu , 08 Dec

सार

चाहे राज्य की सरकार हो या केंद्र की उसके सामने अधिकारों की मांग करती हुई भीड़ नजर आती है | अधिकार मांगने वाले और प्राप्त करने वाले कभी यह नहीं सोचते कि उनके देश और संविधान के प्रति कर्तव्य क्या है? समाज में कुछ दबावों के चलते सरकार सर्वोच्च न्यायालय की मंशा तक पूरी नहीं कर पाती है| अब केन्द्र और राज्य सरकारों को मौलिक कर्तव्यों के संबंध में संविधान के अनुच्छेद ५१ ए का पालन करने के लिए उचित कानून बनाने का निर्देश देने की मांग सब तरफ से उठ रही है।

janmat

विस्तार

याद कीजिये,देश के एक पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंगनाथ मिश्रा ने १९९८ को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश को एक पत्र लिखकर नागरिकों को मौलिक कर्तव्यों के प्रति शिक्षित करने के सरकार के दायित्व की ओर ध्यान आकर्षित किया था ताकि मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों के बीच उचित संतुलन बनाया जा सके|न्यायालय ने इस पत्र का संज्ञान लिया और तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश वी एन खरे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने इस याचिका में उठाये गए बिंदुओं पर विचार किया था। न्यायालय ने अपने फैसले में सरकार से अपेक्षा की थी कि वह नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों के कार्यान्वयन के बारे में न्यायमूर्ति जेएस वर्मा समिति की सिफारिशों पर पूरी गंभीरता से विचार करेगी। 

यह भी याद कीजिये कि, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने साल १९९८ में नागरिकों को उनके मौलिक कर्तव्यों के प्रति शिक्षित करने के उद्देश्य से शीर्ष अदालत के न्यायाधीश जगदीश शरण वर्मा की अध्यक्षता में समिति गठित की थी। समिति ने अपनी सिफारिशों में मौलिक कर्तव्यों के संदर्भ में राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान रोकथाम कानून-१९७१ , नागरिक अधिकार रोकथाम कानून-१९५५ , भाषा, वर्ण, जन्म स्थान, धर्म आदि के आधार पर विभिन्न समुदायों के बीच कटुता पैदा के लिए दंड के बारे में आपराधिक कानूनों के प्रावधान, गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून१९६७ , जन प्रतिनिधित्व कानून १९५१ जैसे कानूनों का उल्लेख किया था।

अब सर्वोच्च न्यायालय ने अब केंद्र से जानना चाहा है कि आखिर उसने २००३ में न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा की याचिका पर सुनाये गये फैसले के मद्देनजर अब तक क्या कदम उठाये हैं? उसने केन्द्र को मौलिक कर्तव्यों के मामले में उठाये गए या प्रस्तावित कदमों के बारे में विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश भी दिया है।इधर सरकार का कहना है कि वह इन मौलिक कर्तव्यों के प्रति जनता को संवेदनशील बनाने के प्रयास कर रही है लेकिन विभिन्न आंदोलनों के कारण सार्वजनिक संपत्ति को पहुंचायी जा रही क्षति, प्राकृतिक संसाधनों का गैरकानूनी तरीके से दोहन और रेल तथा सड़क मार्गों को अवरुद्ध करके राजस्व को पहुंचाये जा रहे नुकसान उनके इस दावे की पोल खोल रहे हैं।

आज नागरिक सुविधाओं की समुचित सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मौलिक कर्तव्यों पर अमल के लिए अब उचित कानून की आवश्यकता महसूस की जा रही है। ऐसा लगता है कि साल १९७६ में ४२ वें संविधान संशोधन के माध्यम से इसके भाग ४ -ए में मूल कर्तव्य शीर्षक से शामिल अनुच्छेद ५१ -ए में प्रदत्त मौलिक कर्तव्यों के प्रति नागरिकों को जागरूक बनाने की दिशा में कभी गंभीर प्रयास नहीं हुए।इस अनुच्छेद में नागरिकों के ११ कर्तव्यों को रेखांकित किया गया है। इसके अंतर्गत प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्र गान का आदर करे। इन कर्तव्यों में भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करना, उसे अक्षुण्ण बनाये रखना तथा देश की रक्षा करना और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करना भी शामिल है। 

अक्सर गैर-सरकारी संगठनों से लेकर आम आदमी तक मौलिक अधिकारों के हनन को लेकर आवाज उठाते और अदालत का दरवाजा भी खटखटाते हैं, लेकिन मौलिक कर्तव्यों का सवाल उठने पर इनमें से अधिकांश बगलें झांकते हैं। मौलिक कर्तव्य भले ही संविधान का हिस्सा हैं लेकिन इन्हें लागू करने के लिए कोई कानून या नियम नहीं हैं। अब यह मांग उठ रही है कि मौलिक कर्तव्य लागू किये जाएं और केंद्र और राज्य सरकारें बतायें कि उन्होंने इस दिशा में क्या कदम उठाये हैं। इस बाबत शीर्ष अदालत ने भी स्पष्ट किया है कि हालांकि इन्हें अदालत के आदेश के जरिए लागू नहीं किया जा सकता लेकिन निश्चित ही ये सांविधानिक और कानून की व्याख्या तथा मुद्दों के समाधान के लिए बहुमूल्य मार्गदर्शन करते हैं। न्यायालय ने यह भी कहा था कि अनुच्छेद ५१ ए में प्रदत्त मौलिक कर्तव्यों को सही अर्थों में समझना चाहिए। काश ! अपने को भारतीय कहने वाले अधिकार मांगने से पहले कर्तव्य का पाठ पढ़ते |