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बजट- 2025 : सब कुछ ठीक नहीं 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Tue , 26 Mar

सार

2025 में सरकार ने आयकर छूट सीमा बढ़ाकर व कर दरों में कमी से राहत देने की कोशिश की है, किंतु धारणा है कि इससे लोगों की आय बढ़ने से उपभोक्ता खर्च में वृद्धि होगी, खपत में वृद्धि से मांग बढ़ेगी जो कालांतर उद्योगों- अर्थव्यवस्था को गति देगी..!! 

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विस्तार

सत्तारूढ़ भाजपा और उसके समर्थक इस बात का प्रचार कर रहे हैं कि बजट 2025 में सरकार ने आयकर छूट सीमा बढ़ाकर व कर दरों में कमी से राहत देने की कोशिश की है। किंतु धारणा है कि इससे लोगों की आय बढ़ने से उपभोक्ता खर्च में वृद्धि होगी। खपत में वृद्धि से मांग बढ़ेगी जो कालांतर उद्योगों- अर्थव्यवस्था को गति देगी। 

यूँ तो आयकर व्यवस्था का सरलीकरण स्वागत योग्य कदम है। वरिष्ठ नागरिकों की ब्याज आय पर कटौती की सीमा को दुगनी करके एक लाख रुपये सालाना करने से उन्हें लाभ मिलेगा। इसी तरह किराये की आय पर निर्भर सेवानिवृत्त लोगों को बढ़ी हुई टीडीएस सीमा का लाभ होगा, जिसे अब बढ़ाकर छह लाख सालाना कर दिया गया है। 

इसके विपरीत दूसरी ओर ईपीएफ,पीपीएफ, बीमा और होम लोन पर प्रमुख कटौतियों का लाभ हटाने से आम आदमी की वास्तविक बचत खत्म हो सकती है। जिससे दीर्घकालीन बचत में गिरावट संभवित है। नई व्यवस्था पीएफ और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में निवेश को हतोत्साहित करती है। यह स्थिति उनकी भविष्य की वित्तीय सुरक्षा को कमजोर कर सकती है। कर राहत के साथ जरूरी है कि मध्यम वर्ग की आय में वृद्धि हो और मुद्रास्फीति पर नियंत्रण किया जाए। निजी क्षेत्र के सेवानिवृत्त लोगों की सामाजिक सुरक्षा के बारे में भी सोचना जरूरी है।

सवाल यह भी है कि आयकर राहत से मध्यम वर्ग की बचत-खपत बढ़ने से क्या वास्तव में आर्थिकी को गति मिल सकेगी? एक अनुमान के अनुसार भारत में आबादी का चालीस प्रतिशत मध्यम वर्ग के दायरे में आता है। भारतीय अर्थव्यवस्था वैसे भी मांग की कमी से जूझ रही है। मध्य वर्ग ही वस्तुओं और सेवाओं का बड़ा उपभोक्ता वर्ग है। उसकी क्रय शक्ति कम होने व बचत नहीं होने से उसकी खरीद क्षमता बाधित हुई है। मांग कम होने से उत्पादन में गिरावट आई है और नया निवेश प्रभावित हो रहा है। यही वजह है कि बीते वर्ष में विकास दर पिछले चार सालों में सबसे कम 6.4 रही है जिसके आर्थिक सर्वे में इस साल 6.8 तक रहने का अनुमान है। जो विकसित भारत के लक्ष्यों के अनुरूप नहीं है। 

सरकार का मानना है कि आयकर में कटौती से बचत और खपत को बढ़ावा मिलेगा। दरअसल, मध्यम वर्ग उपभोक्ता, कर्मचारी और सहायक सेवा करने वाले लोगों का नियोक्ता होता है। सरकार मानती है कि इससे अर्थव्यवस्था को लाभ होगा। वहीं कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि देश में अप्रत्यक्ष करों में कमी से मांग को ज्यादा बढ़ावा मिल सकता है। अप्रत्यक्ष कर मध्यमवर्ग के बजाय गरीब लोगों को भी देना पड़ता है। दरअसल, हमारी एक सौ चालीस करोड़ की आबादी में नौ करोड़ लोग आयकर रिटर्न भरते हैं और साढ़े तीन करोड़ लोग आयकर देते हैं। इनको राहत देने से सीमित वर्ग की क्रय शक्ति ही बढ़ेगी।