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जलवायु परिवर्तन : वैश्विक सहयोग की जरूरत

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Fri , 02 May

सार

ताजा निर्णय जीवाश्म ईंधन के बजाय लोगों के स्वच्छ ऊर्जा के अधिकार को रेखांकित करता है और सर्वोच्च न्यायालय के 2021 के एक निर्णय को पलटता है जिसमें कहा गया था कि सभी ओवरहेड (ऊपर से गुजरने वाली) ज्यादा और कम वोल्टेज वाली बिजली की लाइनों को भूमिगत किया जाए ताकि उस क्षेत्र में उड़ने वाले जीआईबी प्रभावित न हों..!!

janmat

विस्तार

देश कुछ ज़्यादा ही तप रहा है। मेरे सामने देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा  21 मार्च के एक आदेश का विस्तृत निर्णय का अपलोड संस्करण है। इसमें जलवायु परिवर्तन के विपरीत प्रभाव से बचाव को एक विशिष्ट अधिकार बताया गया है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि विधि के समक्ष समता और समान संरक्षण से संबंधित अनुच्छेद 14 तथा जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित अनुच्छेद 21 इस अधिकार का अहम स्रोत हैं।

याद कीजिए, उस फ़ैसले को भी जिसे स्ट्रासबर्ग में यूरोपीय मानवाधिकार अदालत ने 2,000 से अधिक स्विस महिलाओं के एक समूह द्वारा दायर याचिका पर दिया था । ये सभी महिलाएं वरिष्ठ नागरिक थीं। यह फैसला जलवायु परिवर्तन को मानवाधिकार से जोड़ने के मामले में एक वैश्विक नजीर पेश करता हुआ प्रतीत होता है। न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि स्विस सरकार जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पर्याप्त कदम उठाने में नाकाम रही है और इस प्रकार उसने अपने नागरिकों के मानवाधिकारों का हनन किया है। जलवायु से जुड़े कदमों को लेकर दिए गए इस निर्णय के खिलाफ अपील नहीं हो सकती है।

दोनों निर्णयों में समानता नजर आती है लेकिन यह समानता सतही है। सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय एक वाणिज्यिक पहलू का समाधान करता है। यह मामला राजस्थान और गुजरात में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड  के संरक्षण और सौर ऊर्जा डेवलपरों के ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइन बिछाने के अधिकार से संबंधित था।

ताजा निर्णय जीवाश्म ईंधन के बजाय लोगों के स्वच्छ ऊर्जा के अधिकार को रेखांकित करता है और सर्वोच्च न्यायालय के 2021 के एक निर्णय को पलटता है जिसमें कहा गया था कि सभी ओवरहेड (ऊपर से गुजरने वाली) ज्यादा और कम वोल्टेज वाली बिजली की लाइनों को भूमिगत किया जाए ताकि उस क्षेत्र में उड़ने वाले जीआईबी प्रभावित न हों।

सरकार की अपील पर सर्वोच्च न्यायालय ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था । वास्तविकता यह है कि बिजली की लाइन को जमीन के नीचे से ले जाने से सौर डेवलपरों की लागत बढ़ जाती। गत वर्ष विशेषज्ञ समिति ने कहा कि डेवलपरों को इन पक्षियों की बसाहट वाले इलाकों में चिड़ियों को भगाने वाले या एलईडी आधारित चेतावनी वाली डिस्क लगानी चाहिए।

यद्यपि यह कम लागत वाला उपाय है लेकिन इनकी स्थापना में दिक्कत हो सकती है और इन उपकरणों के लिए सक्षम विक्रेताओं की भी कमी हो सकती है। गत वर्ष नवंबर में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने एक आवेदन किया कि सौर ऊर्जा की लाइन को अनिवार्य तौर पर भूमिगत करने की व्यवस्था से देश का कार्बन उत्सर्जन प्रभावित होगा।इस तर्क में दम है लेकिन उन पक्षियों का क्या जो एक संरक्षित प्रजाति से हैं? यह कहा जा सकता है कि चूंकि खुले वनों में केवल 200 जीआईबी बचे हैं इसलिए उन्हें संरक्षित करने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए। परंतु कल्पना कीजिए कि अगर प्रोजेक्ट टाइगर के पहले जब केवल 2,000 बाघ बचे थे, तब भी यही दलील दी जाती तो क्या होता?

पर्यावरण से जुड़ा कोई भी उपाय अपने आप में संपूर्ण नहीं होता है लेकिन सरकार जोखिम को संतुलित कर सकती है। हम प्रोजेक्ट टाइगर की उपलब्धियों पर गर्व करते हैं लेकिन इसके कारण आबादी का जो विस्थापन हुआ उस पर ध्यान नहीं देते। कुछ वन्य जीव अभयारण्य मसलन कान्हा और कॉर्बेट में जमीन गंवाने वाले स्थानीय लोगों को गाइड या ट्रैकर के रूप में प्रशिक्षित किया जाता है। सौर ऊर्जा डेवलपरों की दुविधा से कोई नया हल निकाला जा सकता था जहां सरकार व्यय में साझेदारी करती और स्वच्छ ऊर्जा तथा पक्षियों के संरक्षण के रूप में दोनों काम हो जाते।

प्रश्न यह है कि सबसे बड़ी अदालत का ताजा निर्णय जो संवैधानिक मूल्यों के साथ विकास के मुद्दे को रेखांकित करता है, वह जलवायु न्याय तक नागरिकों की पहुंच में कितना इजाफा करेगा? इसके बावजूद भारत के शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में प्रमुखता से नजर आते हैं। यह निर्णय ये सवाल भी खड़ा करता है कि सरकार बढ़ती गर्मी और ग्लेशियर पिघलने के कारण आने वाली बाढ़ से होने वाली मौतों को कैसे रोकेगी। यह वैश्विक तापवृद्धि का सबसे अहम संकेत है।

एक और बात स्ट्रासबर्ग की अदालत ने छह पुर्तगाली युवाओं द्वारा 32 यूरोपीय सरकारों के खिलाफ लाए गए मामले को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि सरकारों का कार्बन उत्सर्जन देशों की सीमाओं के परे लोगों को प्रभावित कर सकता है लेकिन इसके चलते कई जगहों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। न्यायालय सही हो सकता है लेकिन युवाओं ने मुद्दे की सही पहचान की। जलवायु परिवर्तन संबंधी कदम केवल किसी एक देश की चिंता का विषय नहीं हो सकते, इनके लिए वैश्विक सहयोग और कदमों की जरूरत है।