सीएम हेल्पलाइन पर नकली शिकायतें और फर्जी समाधान की खबर को समझने में दिमाग चकरा जाएगा। मध्यप्रदेश सरकार के साथ हुआ यह ऐसा फ्रॉड है जो फिल्मी कल्पना से आगे है। यह उसी प्रकार का है जैसे कि नकली सिक्के धीरे-धीरे असली सिक्कों को बाहर कर देते हैं। यह फ्रॉड मुख्यमंत्री और वरिष्ठ अफसरों को अंधेरे में रखने का है। सीएम हेल्पलाइन की शिकायतों की मॉनिटरिंग मुख्यमंत्री के स्तर से होती रही है। इन शिकायतों के प्रति मुख्यमंत्री अत्यंत गंभीर रुख अपनाते रहे हैं। कई बार शिकायतों के निराकरण नहीं होने के कारण अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई भी की गई है।
सीएम हेल्पलाइन की शिकायतों की मॉनिटरिंग में यह देखा जाता है की कुल कितनी शिकायतें हुई थीं, निर्धारित समय में कितनों का निराकरण हुआ और किन अधिकारियों ने शिकायतों के निराकरण को गंभीरता से नहीं लेते हुए लापरवाही बरती? इस कार्रवाई से बचने के लिए अद्भुत फ्रॉड शुरू हुआ है। शुरुआत किस स्तर से हुई है यह तो जांच के बाद ही पता लगेगा लेकिन मूल शिकायतों को निराकरण नहीं किया जाता था और निराकरण हो चुकी शिकायतों का औसत बढ़ाने के लिए शिकायतों का मैनेजमेंट नकली ढंग से कर लिया जाता था।
समीक्षा में यह स्थापित कर दिया जाता था कि जितनी शिकायतें हुई थी उनमें अधिकांश का निराकरण कर दिया गया है लेकिन निराकरण की गई शिकायतें अधिकांश नकली होती थी जो मूल शिकायत असली होती थी उसका निराकरण नहीं होता था लेकिन निराकरण का औसत अधिक होने के कारण इसे सामान्य रूप से स्वीकार कर लिया जाता रहा।
शिकायत के फ्रॉड में मुख्यमंत्री के क्षेत्र के अफसर भी शामिल पाए गए हैं। जब मुख्यमंत्री के गांव में और उनके क्षेत्र के मामले में भी इस तरह की घोर लापरवाही बरती जा सकती है तो फिर बाकी क्षेत्रों के बारे में तो कल्पना ही की जा सकती है। खबर के मुताबिक सीएम हेल्पलाइन में हर गांव को पांच नकली शिकायत का टारगेट दिया गया था एक ही टेलीफोन नंबर से कई शिकायतें की जाती थीं और चूँकि शिकायत ही फर्जी थी इसलिए उनका आसानी से निराकरण कर शिकायतों के निराकरण के औसत को बढ़ा लिया जाता था।
शिकायतें ज्यादातर पंचायत सचिव, रोजगार सहायक के खुद के या परिचितों के फोन नंबर से की जाती थीं। इसके बाद शिकायतकर्ता द्वारा दर्ज कराए मोबाइल नंबर पर ओटीपी जाता है। इससे ओटीपी लेकर 24 घंटे के भीतर ई-पोर्टल पर शिकायतों का समाधान दर्ज कर दिया जाता है। इससे निराकृत शिकायतों का ग्राफ बढ़ता जाता है जबकि वास्तविक शिकायतों की पेंडेंसी कम दिखने लगती है।
सरकारी सिस्टम में लालफीताशाही, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद तो दिखता है और उनको रोकने के प्रयास भी दिखते हैं लेकिन इस तरह के फ्रॉड में तो सच्चाई ही छुपा दी जाती है। मुख्यमंत्री कितनी भी गंभीरता से मॉनिटरिंग करें उनके सामने सच आ हीं नहीं पाता। यह तो एक मामला है। तंत्र ऐसे न मालूम कितने अभिनव प्रयोग कर रहा होगा जिससे मुख्यमंत्री के समक्ष सच्चाई पहुंचने से रोका जा सके।
ऐसा कर सत्ता संचालन के मुख्य सूत्र तक लोगों को कम से कम पहुंचने की स्थितियां निर्मित की जाती हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कई बार यह बात कह चुके हैं कि अफसरों की तरफ से उन्हें जिस तरह की जानकारियां दी जाती हैं वे जमीनी स्तर से अलग होती हैं। इसीलिए मुख्यमंत्री भी जनता के बीच में जाकर सच्चाई का पता लगाने की कोशिश करते हुए नजर आते हैं।
ऐसा लग रहा था कंप्यूटर और डिजिटल एडमिनिस्ट्रेशन से पारदर्शिता बढ़ेगी लेकिन ऐसी-ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं जिससे इस सिस्टम से पारदर्शिता बढ़ने के बजाय उसके मैनेज होने का यकीन होने लगा है। पब्लिक यह समझती है कि सिस्टम ने उनकी बात को पारदर्शी ढंग से रिकॉर्ड कर लिया है लेकिन वह पूरा सिस्टम मैनेज होता है।
न मालूम कौन सा दौर आ गया है कि आंखों का अश्क अब ग्लिसरीन का पानी हो गया है। फर्जी बंधन निभाते-निभाते लोग खुद फर्जी हो गए हैं। ऐसी स्थिति बन गई है कि ऐसी परिस्थितियों से किसी को कोई फर्क ही नहीं पड़ता है क्योंकि हर आने वाला चेहरा तो नकली ही लेकर आ रहा है।
किसी शायर ने कहा है-
उसकी नकली शीशियों में असली जहर भरा था.था जरूर कागज पर लेकिन खूबसूरत शहर बसा था.
सीएम हेल्पलाइन के साथ ऐसा क्रूर मजाक सिस्टम की तबाही की बानगी है। जनता तो जी लेगी लेकिन ऐसा करने वाले कभी चैन से नहीं रह सकेंगे।