इस यात्रा का अब तक के निहितार्थ क्या थे, उसका यथार्थ क्या है और आगे क्या माना जाए, साथ ही यह भी कि उसका फलितार्थ क्या माना जाए..!
'कन्याकुमारी से शुरू राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा करीब सौ दिन का मुकाम तय करने के बाद देश के हृदय प्रदेश यानि मध्यप्रदेश में अगले कुछ दिनों में दक्कन का प्रवेशद्वार कहे जाने वाले बुरहानरपुर से प्रवेश कर रही है। अभी तो कश्मीर तक के सफर के दौरान कई पड़ाव बाकी हैं। लेकिन किसी राजनीतिक यात्रा के सौ दिन उसका आकलन करने के लिए कम नहीं होते। इस यात्रा का अब तक के निहितार्थ क्या थे? उसका यथार्थ क्या है और आगे क्या माना जाए? साथ ही यह भी कि उसका फलितार्थ क्या माना जाए?
सबसे पहले तो कांग्रेस और राहुल गांधी की इस तरह की यात्रा की आवश्यकता तो बेहद अनिवार्य थी। भाजपा की चमकदार सफलताओं के बीच कई राज्यों में गैर कांग्रेसी, गैर भाजपाई विपक्ष को मिल रही शानदार कामयाबियों ने राष्ट्र के सियासी फलक पर कांग्रेस को अप्रासंगिक बनाने की कवाययद तेजी से शरू कर दी थी। बंगाल की शानदार जीत के बाद सबसे पहले ममता बनर्जी इस दौड़ में सबसे आगे कूदीं।
पंजाब जीतते ही पीछे-पीछे केजरीवाल भी खुद को राष्ट्रीय विकल्प बनने के लिए कूंदफांद करने लगे। फिर तेलंगाना राष्ट्र समिति को भारतीय राष्ट्र समिति बनाकर उसका राष्ट्रीय स्वरूप तैयार करने के लिए कुलांचें केसी चंद्रशेखर राव भी उड़ाने भरने लगे। अब अपने बिहारी सुशासन बाबू नीतीश की हसरतों को भी पर लग गए। भाजपा को छोड़ लालू कीराजद की गोद में बैठ, नीतीश बाबू भाजपा का विकल्प खड़ा करने के लिए देश व्यापी दौरे करने लगे। लालू ने दिल्ली में सोनिया गांधी से लेकर तेलंगाना में केसीआर तक विपक्षी एका की कवायद कर डाली। ममता ने कांग्रेस से तो परहेज रखा लेकिन महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीआर में जुगलबंदी की अलख जगा दी।
प्रकारांतर से देखा जाए तो की सबसे पुरानी और कभी सबसे बड़ी पार्टी रही कांग्रेस के लिए यह हालात उसके वजूद को चुनौती बनाने वाले थे। कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों की पिछलग्गू बन चुकी कांग्रेस के लिए यह हालात राष्ट्रीय स्तर पर उसकी अस्मिता पर चोट करने वाले थे। राहुल गांधी की अब तक की भारत जोड़ो यात्रा ने कम से कम यह तो बता ही दिया है कि उसके सामने क्षेत्रीय पार्टियों का वजूद और कद बहुत छोटा है। दूसरा यह कि उत्तर में कांग्रेस का जनाधार कुछ राज्यों को छोड़कर भले ही कमजोर हो गया है। लेकिन दक्षिण में कांग्रेस अभी अपेक्षाकृत मजबूत है।
राहुल गांधी दक्षिण भारत में कांग्रेस के सबसे लोकप्रिय नेता हैं। भाजपा भले ही टुकड़ा टुकड़ा गैंग के भरोसे राहुल गांधी की भारत जोड़ो की कामयाबी पर सवाल उठाए। लेकिन एक बात तो तय है कि कांग्रेस इस यात्रा के जरिए उससे छिटके कई पुराने कांग्रेसी परिवारों को जोड़ रही है। इससे भी बड़ा उसका मकसद देश के उन मुस्लिमों में अपनी स्वीकार्यता को पैदा करना है, जो किन्हीं कारणों से उससे छिटककर क्षेत्रीय दलों की गोद में जा बैठे हैं।
कांग्रेस चाहती है कि स्थानीय राजनीतिक तकाजों के चलते वह सूबों की सियासत में भले ही उनसे जुड़े रहें। लेकिन लोकसभा में कांग्रेस को भाजपा के मजबूत विकल्प के तौर पर उभारने में मदद करें। भाजपा भले तोहमत जड़े कि यह यात्रा मुस्लिम जोड़ो यात्रा है लेकिन यदि कांग्रेस को उसके एकमुश्त वोट मिल गए तो कांग्रेस फिर लोकसभा में पचास के आंकड़े से बाहर निकलकर सौ का आंकड़ा पार कर सकती है, और फिर एकला चलो की राह चलती कांग्रेस गैरभाजपाई विपक्षी दलों को उसकी छतरी तले लाने को मजबूर कर सकती है।
यह बात तो हुई यात्रा के निहितार्थ और फलितार्थ की । अब बात की जाए यात्रा के यथार्थ की। तो यह काम तो तभी हो पाएगा जब कांग्रेसी कार्यकर्ता इस यात्रा से मिली ऑक्सीजन को 2024 तक संवार कर रखें और कांग्रेस लगातार कार्यक्रमों के जरिए उनके उत्साह को बनाए रखे। आगे पाठ और पीछे सपाट वाले हालात न बने और खासतौर से मप्र राजस्थान, उप्र, दिल्ली, हरियाणा पंजाब होते हुए कश्मीर तक यह यात्रा ऐसी ही चलती रहेगी तो 2024 में कांग्रेस को सत्ता मिले या न मिले लेकिन देश को एक सशक्त विकल्प जरूर मिल जाएगा जो स्वस्थ लोकतंत्र के लिए बेहद जरूरी है।