हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. अगर एक तरफ सुख है, तो दूसरी तरफ दुख अनिवार्य है. अगर प्रकाश है तो अंधेरा है. जन्म है तो मृत्यु है द्वन्द ही जीवन है. भारत में तो हिंदू मुसलमान का द्वन्द है लेकिन पाकिस्तान में तो मुसलमान ही आपस में संघर्षरत है..!!
पहलगाम में आतंकवादी हमले में धर्म पूछकर हत्या बांटने की ही साजिश है. धर्म है, आतंकवाद है तो राष्ट्रवाद भी है. पाकिस्तान की साजिश अगर हिंदू मुसलमान को बाँट कर राष्ट्र पर हमले को लेकर थी, तो उसमें तो वह नाकाम हो गया है. आतंकी हमले पर केवल हिंदुओं में आक्रोश नहीं है, देश के मुसलमान भी उतना ही आक्रोशित हैं.
यह राष्ट्रवाद का बदला रूप है जो पुराने दौर से अलग है. जुमे की नमाज के बाद पाकिस्तान के खिलाफ़ प्रदर्शन की तो शायद पाकिस्तान ने कल्पना भी नही की होगी. जम्मू-कश्मीर विधानसभा एक सुर में हमले की निंदा कर रही है. वहां के लोग पाकिस्तान प्रयोजित आतंकवाद के खिलाफ सड़कों पर निकले हैं. यह पाकिस्तान की कल्पना के विपरीत है.
आतंकी हमले पर हिंदुओं का आक्रोश नाजायज नहीं है. लेकिन इस आक्रोश में अगर किसी भारतीय मुसलमान के खिलाफ आक्रोश दिखाया जाता है तो यह जायज नहीं हो सकता. आतंकी हमले के समय भी स्थानीय लोगों ने धर्म से ऊपर उठकर हिंदुओं को बचाया है. ऐसे अनेक दृश्य दिखाई पड़े हैं जहां स्थानीय मुसलमानों ने घायलों को अपनी पीठ पर लादकर अस्पताल पहुंचाया है. आतंकवादियों से राइफल छीनते हुए एक मुसलमान भी शहीद हुआ है.
सरकार से सवाल दरअसल राजनीति का हाल-चाल बता रहे हैं. राजनेताओं से ज्यादा समर्थकों में राजनीति का जज्बा दिखाई पड़ रहा है. हिंदुत्व की राजनीति के विरोधी इस बात से आशंकित हैं कि, जो विभाजन तमाम कोशिशों के बाद भी सियासी दल नहीं कर पाए, वह विभाजन का सेंटीमेंट इस आतंकी घटना ने लोगों के दिलों दिमाग में पहुंचा दिया है.
भारत में हिंदू-मुस्लिम की राजनीति तो एक सिक्के के दो पहलू है. यहां के राजनीतिक दल और राजनेता इस सिक्के के एक पहलू को जातियों में खंड-खंड करके अपना स्वार्थ साधते रहे हैं. पहलगाम आतंकी घटना ने यह तो बता दिया है कि, पाकिस्तान भारत को हिंदू और मुस्लिम के नजरिए से ही देखता है.
आतंकवादियों ने धर्म पूछ कर गोली मारी है. किसी की जाति नहीं पूछी गई, किसी की भाषा पर कोई सवाल नहीं था. कौन किस क्षेत्र का है यह भी आतंकवादियों का सवाल नहीं था. सवाल केवल एक था कि, हिंदुओं को मारना है. आतंकवादियों ने जिस बर्बरता के साथ धर्म पूछा और उसके बाद कलमा जैसे इस्लाम के पवित्र रूप को आतंक के लिए खंडित किया उसकी जितनी भर्त्सना की जाए कम है.
राजनीति हमेशा बहुमत के प्रबंधन में संलग्न होती है. चाहे जन्म का शुभ अवसर हो या मृत्यु का कुअवसर हो. राजनीति को इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि अवसर क्या है? बल्कि उसका टारगेट बहुमत प्रबंधन के चौबीस घंटे प्रयास का रहता है.
यही आतंकी हमले में भी हो रहा है. फिलिस्तीन का समर्थन और बैग पॉलिटिक्स भी विभाजन आधारित बहुमत का ही प्रबंधन था. इस घटना पर भी अलग-अलग तरीके से सियासत बहुमत के अपने प्रबंधन को पालने-पोसने की कोशिश कर रही हैं. एक ही दल के विभिन्न नेता अलग-अलग भाषा में बोल रहे हैं. उनके समर्थक जिस भाषा और द्रष्टि में लिखने और बोलते दिख रहे हैं, उसका उपयोग पाकिस्तान भारत के अन्तर्विरोध दिखाने के लिए कर रहा है.
कर्नाटक के मुख्यमंत्री पाकिस्तान से युद्ध की खिलाफत करते हैं तो उनकी इस बात का समर्थन पाकिस्तान में दिखाई पड़ता है. पहले भी ऐसा होता रहा हैकि जब भी भारत किसी आतंकी घटना के खिलाफ डोजियर देता था तो पाकिस्तान जवाब में भारतीय राजनेताओं के वक्तव्य कोट करके उसे आंतरिक राजनीति पर डाल देता था.
पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिफ मुनीर अगर हिंदू और मुसलमान को अलग बताते हुए द्विराष्ट्र के सिद्धांत को जरूरी बताते हैं, तो यही उनकी साजिश को प्रमाणित करता है. जितने मुसलमान पाकिस्तान में रहते हैं, कमोवेश उतने ही भारत में रहते हैं. भारत में तो मुसलमान राष्ट्रपति भी रह चुका है. सुप्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस भी मुसलमान रह चुका है. आईबी के साथ ही स्ट्रेजिक रूप से भारत के महत्वपूर्ण पदों पर मुसलमान काम करते रहे हैं.
भारतीय आत्मा हिंदू और मुसलमान में कोई भेद नहीं करती. भेद करने की शुरुआत और अंत, राजनीति में ही दिखाई पड़ती है. आतंकी घटना ने हिंदू मुस्लिम का जो सेंटीमेंट फैलाया है, उससे सबसे ज्यादा डर सियासी लोगों में फैला हुआ है. इसका कारण शायद यह है कि भारतीय राजनीति पिछले एक दशक से हिंदुत्व की ओर चली गई है. इस घटना ने तुष्टिकरण की राजनीति को हतोत्साहित किया है.
मुसलमान कभी वोट बैंक नहीं बनना चाहता लेकिन उसे इस जाल में फंसाने का काम सियासी दल करते हैं. सोशल मीडिया पर हिंदू सेंटीमेंट को उभारने और मुस्लिम सेंटीमेंट को भड़काने तक की कोशिश हो रही है. यह कोई आम लोग नहीं कर रहे हैं बल्कि सियासी विचारधारा के लंबरदार ही इसमें भूमिका निभा रहे हैं.
लोक गायिका नेहा राठौर के खिलाफ ऐसे आरोप में एफआईआर तक दर्ज हो चुकी है. सोशल मीडिया तो भड़ास निकालने का सबसे बड़ा माध्यम बन गया है. नेगेटिव विचारों को प्रकट करने का इससे बड़ा कोई मंच नहीं है. भारत और पाकिस्तान के बीच सोशल मीडिया पर भड़काऊ और नफरती तथ्यों को फैलाने के लिए वार जैसा माहौल बनाने की कोशिश है. भारत ने पाकिस्तान के ऐसे बहुत सारे न्यूज़ और यूट्यूब चैनल को प्रतिबंधित कर दिया है. बेहतर तो यह होगा कि भारत के जो लोग ऐसे भड़काऊ बातें करते दिखाई पड़े उनके सोशल मीडिया को भी ब्लॉक करना बहुत जरूरी है.
धर्म के नाम पर भारत को विभाजित करने के पाकिस्तान के ख्वाब का कश्मीर और कश्मीरीयों ने ही जवाब दे दिया है. कश्मीर आज पाकिस्तान के खिलाफ सीना तानकर खड़ा हुआ है तो यह इसीलिए संभव हुआ है क्योंकि कश्मीर और भारत का एकीकरण नए दौर में पहुंच चुका है.
धारा 370 हटाने के बाद कश्मीर में खुशहाली आई है. रोजगार बढे हैं. पर्यटन बढा है. इसी को तो नुकसान पहुंचाने की पाकिस्तान ने साजिश की है. आतंकवादियों से और उनके बेकर्स से बदला जरुर लिया जाएगा, इसमें किसी को शक नहीं करना चाहिए. बस राजनीति को इस समय थोड़ा पीछे रखकरआगे बढ़ने की जरूरत है.
जीतने का भारत का इतिहास रहा है. इस बार यह जीत ऐतिहासिक होगी. पाकिस्तान के अभी दो टुकड़े हुए हैं. अब टुकड़े-टुकड़े में यह देश बंटेगा. हमारे पड़ोसी का इतिहास और भूगोल दोनों बदलना अब तय है.