• India
  • Fri , May , 17 , 2024
  • Last Update 02:25:PM
  • 29℃ Bhopal, India

एक किताब नहीं, संसदीय जीवन पद्धति है संविधान

सार

संविधान की जितनी चर्चा आज हो रही है, उतनी देशव्यापी चर्चा शायद उस समय भी नहीं हुई होगी, जब बाबा साहब अंबेडकर और संविधान सभा ने संविधान की रचना की थी..!!

janmat

विस्तार

    संविधान के कारण ही चुनाव हो रहे हैं. संविधान के कारण ही बोलने की स्वतंत्रता है और इसी स्वतंत्रता का उपयोग संविधान के ख़िलाफ हो रहा है. चुनावी सभाओं में संविधान के नाम पर एक किताब सिर पर रखकर संविधान बचाने का नृत्य किया जा रहा है. संविधान के ख़त्म होने का विचार ही संविधान में अनास्था का प्रतीक है.  भारत के संविधान की सबसे बड़े बेनिफिशियरी बीजेपी और पीएम मोदी हैं. यह संविधान की ही ताकत है, कि गरीबी से उठा सामान्य परिवार का व्यक्ति पीएम की कुर्सी तक पहुंच जाता है.  

    संविधान एक संसदीय जीवन पद्धति है. संविधान संसदीय क्षेत्र के लोगों के लिए जीने और मरने की शक्ति और शास्त्र है. कांग्रेस और राहुल गांधी का परम ज्ञान कहें या अज्ञान कहें कि उन्हें लगता है, कि भारत का संविधान को कोई भी ख़त्म कर सकता है. यह चिंतन ही भारतीय संविधान, सर्वोच्च न्यायालय, भारत के लोगों की शक्ति और सामर्थ्य पर अविश्वास है. राहुल गांधी और कांग्रेस क्या आज इतनी कमजोर हो गई है, कि कोई भी राजनीतिक दल कांग्रेस के विपक्ष में होते हुए भी संविधान बदलने की हिम्मत कर सकता है. कांग्रेस क्या इतनी अशक्त और असमर्थ हो गई है, कि जो देश को आजाद करने का दावा करती है, वह भारत के संविधान की विपक्ष में रहते हुए रक्षा नहीं कर सकती है. 

    संविधान ख़त्म होने की बात सियासी नादान और सियासी बेईमान ही कर सकते हैं. भारत का संविधान भारत के लोगों का और लोगों के लिए संविधान है. भारत के लोग इतने अशक्त नहीं हैं, कि कोई भी भारत के संविधान को बदलने की हिम्मत जुटा सके. किसी भी आरोप के लिए कोई पृष्ठभूमि होनी चाहिए. कोई तथ्य होना चाहिए. कोई सूत्र होना चाहिए. जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि किसी का आचरण कैसा रहा है.

    भारतीय संविधान के मामले में अगर कांग्रेस और बीजेपी की सरकारों के आचार-विचार और व्यवहार पर नज़र डाली जाएगी, तो कांग्रेस ही संविधान को अपमानित करने के लिए जिम्मेदार साबित होगी. बीजेपी के सत्ता में आने के पहले भारत में दो संविधान थे. बाबा साहेब अंबेडकर का संविधान जम्मूृ-कश्मीर में लागू नहीं था. कांग्रेस ने वहां 370 की विशेष परिस्थितियां निर्मित कर रखी थीं. वहां का संविधान अलग था. अब तो भारत में एक ही संविधान कन्याकुमारी से कश्मीर तक लागू है. 370 हटाने के लिए संविधान में बदलाव संविधान ख़त्म करने का प्रयास है, या संविधान को देश में मजबूत करने का उदाहरण है. 

    इमरजेंसी लगाकर बोलने की आजादी को नियंत्रित करने की कोशिशें, संविधान के खिलाफ थीं. संविधान की प्रक्रिया से सृजित किसी भी कानून की प्रति को फाड़ना संविधान का अपमान है और यह कुकृत्य राहुल गांधी ने ही किया था. पर्सनल लॉ का समर्थन और समान नागरिक संहिता का विरोध संविधान का अनादर नहीं तो और क्या कहा जा सकता है? जो कांग्रेस अपने घोषणा पत्र में मुस्लिम पर्सनल लॉ के प्रोत्साहन का वायदा कर रही है. वही कांग्रेस संविधान बचाने की बात कर रही है.

    पर्सनल लॉ पर सरकारों का संचालन भारतीय संविधान की हत्या ही कही जाएगी. फर्रुखाबाद से समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी वोट जेहाद की बात करती हैं, तो यह संविधान की मर्यादा के विरुद्ध है. वोट बैंक के लिए किसी धर्म का तुष्टिकरण करने की इजाज़त भारतीय संविधान नहीं देता. लेकिन कांग्रेस राहुल गांधी और उसके सहयोगियों का जनाधार इसी पर टिका हुआ है.  

    जेल जाने पर भी कोई मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र ना दें, यह संविधान ख़त्म करने की साजिश है. ऐसे मुख्यमंत्री को कांग्रेस का समर्थन और दूसरी तरफ संविधान के नाम पर किताब का प्रदर्शन. सियासी बेईमानी भारतीय संविधान को ख़त्म कर रही है. सियासी लोगों और उनके अनुयायियों के यहां से करोड़ों अरबो रुपए नगद जप्त हो रहे हैं. इससे संविधान ख़तरे में आ रहा है. जो पार्टियां और नेता भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में हैं, या जांच के दायरे में हैं उनके साथ राहुल गांधी और कांग्रेस खड़े हुए हैं. और संविधान ख़त्म होने का भय दिखाकर अपनी नादानी प्रदर्शित कर रहे हैं.

    भारत का संविधान धार्मिक आधार पर आरक्षण की अनुमति नहीं देता है. संविधान के विरुद्ध कांग्रेस की राज्य सरकार में धार्मिक आधार पर मुसलमानों को आरक्षण कर्नाटक में दिया है, यह आरक्षण OBC कैटेगरी के अंतर्गत दिया गया है. इसका मतलब है,  कि SC, ST और OBC को मिलने वाले आरक्षण में कमी कर धार्मिक आरक्षण की पहल की गई है. जो संविधान के पूरी तरह से खिलाफ़ है. जो लोग संविधान के खिलाफ़ आचरण कर रहे हैं, वही लोग संविधान बचाने की कोरी बातें कर रहे हैं. बातें अलग करामातें अलग. यही तो कांग्रेस के पतन का कारण बनी हुई है.

   पीएम नरेंद्र मोदी धार्मिक आधार पर आरक्षण का पुरज़ोर विरोध करते हुए कांग्रेस को चुनौती दे रहे हैं, कि कांग्रेस लिखित में गारंटी दे, कि धार्मिक आरक्षण के लिए वह संविधान में संशोधन नहीं करेगी. SC, ST, OBC और जनरल केटेगरी के ग़रीबों का आरक्षण कम कर, धार्मिक आधार पर आरक्षण नहीं देगी. कांग्रेस को निश्चित रूप से मोदी की चुनौती पर अपना पक्ष जरूर रखना चाहिए. 

     राहुल की मोहब्बत की दुकान में संविधान बचाने के नाम पर आरक्षण ख़त्म करने के फेक वीडियो चलाने पड़ रहे हैं.यह संविधान के साथ दोगलापन ही कहा जाएगा. केशवानंद भारती के मामले में सर्वोच्च न्यायालय यह निर्णय दे चुका है, कि संविधान की मूल संरचना को कभी भी नहीं बदला जा सकता. कांग्रेस को क्या सर्वोच्च न्यायालय पर भरोसा नहीं है. अभी कुछ दिन पहले ही इलेक्टोरल बॉन्ड के कानून को सुप्रीम कोर्ट द्वारा असंवैधानिक घोषित किया गया है. कोई भी सरकार सुप्रीम कोर्ट की कसौटी के बिना कोई भी असंवैधानिक कदम कभी भी नहीं उठा सकती है. 

    चुनावी लाभ के लिए संविधान ख़त्म करने का डर दिखाना ही संविधान पर बड़ा हमला कहा जा सकता है. संसदीय प्रणाली में विपक्ष की भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है. चुनावी लाभ के लिए विपक्षी दल देश को भय और भ्रम में नहीं डाल सकते हैं. जातिवाद को बढ़ावा देना संविधान को ख़त्म करना है. देश को विभाजित करने की मानसिकता को प्रोत्साहित करना संविधान को ख़त्म करना है. 

    पर्सनल लॉ का समर्थन संविधान को ख़तरे में डालना है. UCC का विरोध संविधान पर हमला है. धार्मिक आधार पर आरक्षण संविधान ख़त्म करने की कोशिश है. बेईमानी और भ्रष्टाचार को राजनीतिक संरक्षण संविधान को ख़त्म करने का प्रयास है. भ्रष्टाचारी और परिवारवादी राजनीति भारतीय संविधान की अनदेखी है. देश में चर्चा इन संविधान विरोधी बातों पर होना चाहिए. उन करतूतों पर होना चाहिए जिनके जरिए इतिहास में संविधान को ख़तरे में डाला गया है.

    सियासी झूठ अगर ज़मीनी हकीक़त से मेल नहीं  खाते तो कभी उसे सफलता नहीं मिलती. झूठ बोलने वाला व्यक्ति कई बार झूठ बोलते-बोलते अपने झूठ को ही सच मानकर नाचने लगता है. झूठ कागज के फूल जैसा है, जिससे कभी खुशबू नहीं आती. चुनावी सभाओं में सियासी झूठ, डर और भय के साथ परोसे जा रहे हैं. संवैधानिक संस्थाओं को कटघरे में खड़ा करना संविधान खत्म करने की कोशिश है. नीति-अनीति का भेद भुलाकर चुनावी लाभ की रणनीति संविधान को ख़त्म करने की साजिश है.

    जीवन पद्धति, आचरण और जीवन का विधान लोकतंत्र में अपनी खुशबू बिखेरती है. सियासी झूठ इसको कमजोर नहीं कर सकते. झूठ कुछ समय के लिए फैलाया जा सकता है लेकिन सत्य को हमेशा के लिए छुपाया नहीं जा सकता. भारत का संविधान संसदीय क्षेत्र के लोगों की जीवन पद्धति है. जिन दलों और नेताओं की जीवन पद्धति और जीवन का विधान भारतीय संस्कृति और भारतीय स्वाभिमान से जुड़ा नहीं है, वह संविधान का मूल समझ नहीं सकते हैं.

    संविधान राष्ट्र धर्म है. जिनका राष्ट्र धर्म से गहरा नाता नहीं है, वही संविधान लेकर नृत्य का दिखावा कर सकते हैं. यह दिखावा जागरूक मतदाताओं की नजर में है. संविधान बचाने का दिखावा नहीं किया जाता, बल्कि संविधान जिया जाता है और संविधान के लिए बलिदान हुआ जाता है. जो भी संविधान ख़त्म होने की बात कर रहा है, उसके अंतर्मन में संविधान ख़त्म करने की दबी आकांक्षा जरूर होगी.

    भारत का संविधान मुगल और अंग्रेज शासन को धराशाई करते हुए भारतीय लोगों की सशक्त आवाज के रूप में भारत का नेतृत्व कर रहा है. ना भारत में अब मुग़ल आ सकते हैं, ना भारत मेंअब कोई विदेशी शासन आ सकता है. भारत में संविधान का स्वदेशी शासन लगातार मजबूत होता जाएगा. इसके साथ ही भारत का संविधान भी भारत के लोगों को सशक्त करने के लिए नए-नए आविष्कार करता रहेगा. लोकसभा के सभी प्रत्याशी नामांकन के समय संविधान की शपथ लेते हैं. और इसी संविधान के ख़त्म होने का डर पैदा करने का दोगलापन करते हैं. जिस शपथ से राजनीतिक जीवन है, उसी शपथ को जीवन में चरितार्थ करने वाले ही भारतीय लोकतंत्र के सम्मान के हक़दार होंगे.