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हर जगह भ्रष्टाचार ? कहीं तो रोकिये

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Thu , 27 Jul

सार

नुकसान देश की कीर्ति का हो रहा है, सार्वजनिक निर्माण के फलस्वरूप मोरबी की मौतें इसका उदाहरण है, तो देश प्राचीनतम धार्मिक गौरव के केन्द्रों के नवीन विन्यास भी ऐसी ही भ्रष्टाचार की कहानी कह रहे हैं..!

janmat

विस्तार

प्रतिदिन विचार-राकेश  दुबे

03/11/2022

भारत में जो कुछ घट रहा है, अजीब है | सरकार की मंशा, इच्छा और व्यापार की  दुरुभि संधि से उत्पन्न वतावरण देश की कीर्ति ही नहीं बनने दे रहा है | सरकार अर्थात केंद्र और राज्य सरकारें अपने उन मंसूबों की ओर चल रही हैं,जो उसके घोषणा पत्रों में है और अगले चुनाव जितने के लिए फार्मूले की तरह प्रयोग किये जा रहे हैं | हर राजनीतिक दल कमोबेश ऐसा ही करते रहे हैं और करते रहेंगे | दुर्भाग्य, कोई भी राजनीतिक दल भ्रष्टाचार से मुक्ति को कोई फार्मूला नहीं खोज सका है | आज़ाद भारत की इस लम्बी यात्रा में भ्रष्टाचार हर जगह शामिल है , चाहे वो सार्वजनिक सेवा हो या धार्मिक निर्माण कुछ भी अछूता नहीं है | देश की प्रगति का एक पायदान पारदर्शिता है जिसे दुरुभि संधि ने ढंक रखा है | नुकसान देश की कीर्ति का हो रहा है | सार्वजनिक निर्माण के फलस्वरूप मोरबी की मौतें इसका उदाहरण  है, तो देश प्राचीनतम धार्मिक  गौरव के केन्द्रों के नवीन विन्यास भी ऐसी ही भ्रष्टाचार की कहानी कह रहे हैं| सोचने का विषय है |

एक ओर सरकार की मंशा के अनुरूप अयोध्या, काशी और उज्जैन अपने प्राचीनतम गौरव को हासिल कर रहे हैं। महाकाल मंदिर के गलियारे में मोदी का मंत्र पाठ या केदारनाथ की एक गुफा में घंटों एकान्त साधना क्या यह नहीं बताती कि अपना-अपना स्वार्थ साधने से हटकर एक रास्ता और भी है, आध्यात्मिक मूल्यों की फिर तलाश का रास्ता और जिसमें भ्रष्टाचार की गंध तक न हो ।

अयोध्या में दिवाली पर रिकार्ड स्तर पर लाखों दीयों का दीप्त हो जाना, क्या यह नहीं बताता कि इस देश में राम के आदर्श मूल्यों का स्वीकार होना चाहिए? लाखों दीयों ने राम को वापस पाने की पुकार की है। यह पुकार वंदना बन पूरे देश से होनी चाहिए, इस सब में पारदर्शिता निखर कर आना चाहिए | देश में अब तक ऐसा वातावरण बनना था  जिसमें सब धर्मों के सम्मान के साथ नये जीवन मूल्यों का स्वागत होता, अफ़सोस ऐसा कुछ लोग नहीं होने दे रहे हैं  । धर्मस्थानों के इस पुनरुत्थान का स्वागत भारत के नागरिक को करना चाहिए   करें, ये केंद्र आर्थिक रूप से अपनी कर्मठता के बल पर खड़े हों। देश आत्मनिर्भर बने, उसकी आयात आधारित अर्थव्यवस्था की पहचान बदलनी चाहिए। सांस्कृतिक संवर्द्धन देश के आर्थिक संवर्द्धन की उपेक्षा करके नहीं हो सकता। इस संवर्धन की पहली शर्त भ्रष्टाचार मुक्त पारदर्शी व्यवस्था है |

यूँ तो प्रधानमंत्री ने जर्जर मंदिरों के कायाकल्प के साथ उत्तराखंड में १२.४ किलोमीटर लंबे गौरीकुंड-केदारनाथ हेमकुंड साहिब रोपवे के निर्माण के संकल्प के साथ ९.७ किलोमीटर लंबे गौरीकुंड-केदारनाथ राजमार्ग के निर्माण की घोषणा भी की है। ३४००  करोड़ रुपये की सड़क और राजमार्ग परियोजनाओं का शिलान्यास भी किया है। मंतव्य यही है कि विकास यात्रा जहां हर धर्म के धर्मस्थानों के प्रति एक जैसे सम्मान की हो, वहां धार्मिक पर्यटन को भी पूरा बढ़ावा दे सके। पर्यटन स्थल केवल इन धर्मस्थलों के जीर्णोद्धार से भी नहीं बनेंगे, बल्कि  यह निर्माण शुद्ध मानस से भ्रष्टाचार मुक्त हो | तभी हमारी सरहद पर स्थित हर आखिरी गांव भी हमारा आदर्श बन सकेगा |यह  विकास ही , राष्ट्र की अखंडता को बनाये रखने के लिए अपने पर्यटन व्यय से कुछ बचा कर यहां की स्थानीय दस्तकारियों पर व्यय करन श्रेयस्क होगा |उद्देश्य इनकी लोककला को ही घर-घर तक पहुंचा कर ‘भारत एक है’ का संदेश देना नहीं, बल्कि इन पिछड़े हुए इलाकों को आत्मनिर्भरता का एक स्थायित्व देना भी है।

नि:संदेह दूरस्थ इलाकों में छिटके हुए यह कुटीर और घरेलू उद्योग देश के नये श्रम मंदिर हैं। धर्मपरायण मूल्यों में हमारा नवजागरण अगर ‘माणा’ जैसे देश के आखिरी गांवों तक हमारे संतुलित आर्थिक विकास का संदेश ले जाता है, तो इससे बड़ा सांस्कृतिक गौरव देश के विकास की कतार में खड़े आखिरी लोगों के लिए और क्या होगा? सरकार की मंशा, इच्छा और व्यापार की  दुरुभि संधि को रोकना होगा, जिससे बची- खुची कीर्ति कलंकित न हो |