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पॉलीटिकल सिस्टम में दिखने लगा है भ्रष्टाचार एडिक्शन, ईडी के छापों पर नहीं, अवैध कमाई पर कब उठेंगे सवाल ? सरयूसुत मिश्र 

सार

पंजाब में अवैध रेत खनन में शामिल मुख्यमंत्री चन्नी के भांजे के घरों से साढ़े छह करोड़ की नगदी मिलने पर राजनीतिक हाय तोबा मच गई है. चुनाव के समय पंजाब में रेत खनन कंपनियों की अवैध कमाई उजागर होने से रेत खनन का विषय राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आ गया. मध्यप्रदेश के संदर्भ में देखें तो एक पूर्व मुख्यमंत्री पन्ना और होशंगाबाद में अवैध रेत खनन का बाकायदा दस्तावेजी आरोप लगा रहे हैं...

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विस्तार

पंजाब में अवैध रेत खनन में शामिल कंपनियों पर ईडी के छापों में मुख्यमंत्री चन्नी के भांजे के घरों से साढ़े छह करोड़ की नगदी मिलने पर राजनीतिक हाय तोबा मच गई है| चारों ओर से यही आवाजें उठ रही हैं कि चुनाव के समय छापे बदले के लिए डाले गए हैं| किसी भी नेता ने अभी तक यह नहीं कहा है कि जो अवैध कमाई पकड़ी गई है उसे कैंसे कमाया गया था?  देश में स्थिति कितनी विकराल हो गई है कि अवैध कमाई का अपराध करने वालों को दोषी नहीं मानते हुए पकड़ने वाले को दोषी ठहराया जा रहा है! 

कम से कम इतना तो अच्छा है कि कोई नेता यह आरोप नहीं लगा रहा है कि जो रुपए पकड़े गए हैं वह ईडी ने ही ला कर रखे थे| भले ही इस बार ऐसा नहीं कहा गया हो, लेकिन भ्रष्टाचार पर ईमानदारी से चोट होती रही तो भविष्य में ऐसा आरोप जरूर लग सकता है| देश के पॉलिटिकल सिस्टम में भ्रष्टाचार नया नहीं है| पहले भी भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं, उन पर नैतिकता और शुचिता की बातें भी होती रही हैं, कार्यवाहियां भी की जाती रही हैं| भ्रष्टाचार से बचने के लिए राजनीतिक पैंतरेबाज़ी  का सहारा पहले शायद कम लिया जाता था| अब तो भ्रष्टाचार के आरोप से बचने की राजनीति आम हो गई है| बड़े दुख के साथ यह कहना पड़ेगा कि पॉलीटिकल सिस्टम में भ्रष्टाचार नशे जैसा लग गया है| अब तो लोग भ्रष्टाचार के एडिक्ट हो गए हैं| भ्रष्टाचार का यह एडिक्शन ही है कि ईडी के छापों पर ऐसे सवाल उठाए जा रहे हैं| इसका मतलब यह निकलता है कि अवैध काम कर कमाई करना अपराध नहीं है| बल्कि अपराध को उजागर करना अपराध बन गया है| ऐसी राजनीति से गवर्नेंस से भ्रष्टाचार खत्म करने की उम्मीद करना बेमानी नहीं तो क्या है ?

चुनाव के समय पंजाब में रेत खनन कंपनियों की अवैध कमाई उजागर होने से रेत खनन का विषय राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आ गया है| नदियों का सीना चीर कर अवैध रेत खनन से आर्थिक अपराध करने में देश का कोई भी राज्य अछूता नहीं है| इन छापों से देश के सामने इस अवैध धंधे में कमाई और उसका कंट्रोल करने वाली  ताकतों के चेहरे सामने आ गए हैं| रेत सहित किसी भी धंधे में अवैध काम बिना राजनीतिक आकाओं के संरक्षण के संभव नहीं हो सकता| ऐसा नहीं है कि स्थानीय स्तर पर किसी को यह पता नहीं होता कि रेत के अवैध खनन में कौन-कौन शामिल हैं| सामने कौन है और पीछे कौन हैं? अवैध कमाई कहां जमा हो रही है| लेकिन सिस्टम के खिलाफ बोलने की कोई हिम्मत नहीं करता| जो एकाध सिरफिरे अधिकारी, कर्मचारी आवाज उठाते हैं उनको कुचलना आम बात है|

मध्यप्रदेश के संदर्भ में देखें तो एक पूर्व मुख्यमंत्री पन्ना और होशंगाबाद में अवैध रेत खनन का बाकायदा दस्तावेजी आरोप लगा रहे हैं| वह सरकार को पत्र भी लिख रहे हैं| राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के बीच राज्य के खजाने के साथ जो आर्थिक हिंसा हो रही है उसकी तरफ आंख क्यों मूंदे रखी गयी है ? पंजाब में छापे के बाद एक सवाल यह उठाया जा रहा है कि जिन राज्यों में चुनाव होते हैं वहां ईडी  छापे मारती है और बाद में भूल जाती है| पंजाब के पहले यूपी के कन्नौज में आयकर छापे मारे गए थे| वहां 150 करोड़ से ज्यादा नगदी जप्त हुई थी| पूरे छापे के दौरान 400 करोड़ से अधिक की संपत्ति उजागर हुई थी| यूपी में छापे के बाद भी राजनीतिक बयानबाजी में यही कहा गया था कि सत्ताधारी दल ने प्रमुख विपक्षी पार्टी को चुनाव में पैसे से तोड़ने के लिए ये छापे डलवाए हैं|  किसी ने भी यह सवाल नहीं उठाया कि इतनी बड़ी मात्रा में नकदी कैसे इकट्ठा की गई थी! स्वाभाविक है कि नियम कायदों के अंतर्गत तो कोई इतनी नकदी रख नहीं सकता| यह अवैध काम बिना राजनीतिक संरक्षण के संभव ही नहीं हो सकता| ऐसा ही  आरोप पश्चिम बंगाल में चुनाव के समय पड़े छापों को लेकर लगाये गए थे| मध्यप्रदेश में भी चुनाव के समय छापे पड़े थे| नकदी और दस्तावेज मिले थे| तब भी राजनीतिक बयानबाजी हुई थी|

किसी के भी मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि इतनी बड़ी मात्रा में नकदी कैसे आती है? इसके लिए निश्चित ही कोई अपराध किया गया होगा| लेकिन आर्थिक अपराध पर कोई भी राजनीतिक व्यक्ति सवाल उठाने के बदले जांच एजेंसियों को ही कटघरे में खड़ा करने की कोशिश करते हैं| लोकतांत्रिक व्यवस्था में अलग-अलग दलों की सरकारें, आर्थिक अपराध और भ्रष्टाचार के मामलों से बचने के लिए राजनीति का सहारा लेती हैं| संघीय व्यवस्था में केंद्रीय जांच एजेंसियों को  भ्रष्टाचार के दोषियों पर जांच और कार्यवाही के लिए कुछ मामलों में राज्य सरकारों से सहमति की आवश्यकता होती है| एजेंसियां राज्यों को बार-बार पत्र लिखती रहती हैं लेकिन जांच पर सहमति नहीं दी जाती| विरोधी दल की केंद्र सरकार पर राजनीतिक आरोप लगाकर राज्य की सरकारें जांच से बचने का कुचक्र रचती हैं, जांच के बाद कार्यवाही नहीं होने के पीछे ऐसे ही कानूनी दांवपेच इस्तेमाल होते हैं| राजनीतिक सत्ता और प्रशासनिक तंत्र का पूरा सिस्टम बिगड़ चुका है| इसे तो नोटबंदी जैसा अमूलचूल बदलाव लाकर ही कुछ सकारात्मक हासिल किया जा सकता है|

प्रशासनिक तंत्र में भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी कम नहीं है| लेकिन तंत्र को संरक्षण राजनीतिक तंत्र से ही मिलता है| गंगोत्री में ही भ्रष्टाचार व्याप्त है तो नीचे सुधारने की हिम्मत कौन करेगा| भ्रष्टाचार को देखने के लिए किसी जांच पड़ताल की आवश्यकता नहीं होती| शानो शौकत ठाठबाट  और रहन-सहन में भ्रष्टाचार दिखाई पड़ता है| किसी राजनेता द्वारा उसके पास आने वाले मतदाताओं के चाय नाश्ते और इलाज पर जितना खर्च किया जाता है, वह उसे मिलने वाले वेतन भत्तों  से ज्यादा होता है| गाड़ियों की तादाद और क्षेत्र गृह नगर तथा राजधानी में कार्यालयों का प्रबंधन भी कम महंगा सौदा नहीं होता| इस सब के पीछे भ्रष्टाचार झांकता हुआ दिखाई पड़ता है| तंत्र और समाज के जागरूक लोग शायद भ्रष्टाचार से इम्यून हो गए हैं| इन पर भ्रष्टाचार कोई असर नहीं डालता और लगता है उन्हें भ्रष्टाचार उन्हें दिखता भी नहीं है| छोटे छोटे कर्मचारियों, पटवारी, कांस्टेबल और अन्य अमले को पकड़ने से भ्रष्टाचार रुक सकता होता तो कब का रुक चुका होता| पॉलिटिकल सिस्टम में भ्रष्टाचार एडिक्शन इतना ज्यादा हो गया है कि अब तो चुनाव के समय मतदाताओं को भ्रष्ट तरीकों से लुभाने  में भी कोई कमी नहीं छोड़ी जाती| पब्लिक भी क्या करे, मुफ्त में कोई चीज मिले तो अच्छा ही लगता है|

गवर्नेंस में टेक्नोलॉजी के विस्तार से पब्लिक सर्विसेज मिलने में सहूलियत बढ़ी है| भ्रष्टाचार की संभावनाओं पर भी थोड़ा बहुत अंकुश लगा है| वैसे तो मौका मिलने भर की देर है| कोई भी भ्रष्टाचार के समंदर में गोता लगाने से नहीं चूकता| पॉलीटिकल सिस्टम समाज का नेतृत्व करता है| इसलिए उस पर ही अधिक सवाल उठते हैं और जवाबदेही भी राजनीतिक क्षेत्र की ज्यादा बनती है| सिस्टम में टेक्नोलॉजी आधारित डिसीजन मेकिंग बढ़ाने की जरूरत है| पॉलिटिकल और ब्यूरोक्रेटिक बासेस  के पास विवेकाधीन निर्णय लेने के पॉवर को न्यूनतम किए जाने की जरूरत है| पॉलिटिक्स में खर्च को न्यूनतम करने की रणनीति बनाने की जरूरत है, ताकि पॉलिटिकल लोगों को अधिक धन जुटाने की आवश्यकता ना पड़े| कमियों पर स्पष्ट रूप से  मजबूती से सवाल उठाने का समय है|