हर इंसान ईश्वर का खिलौना है। सभी ईश्वरीय खिलौने कुछ ना कुछ खेल ही रहे हैं| कहीं खेला है कहीं मेला है तो कहीं लीला है। जीवन के इस खेल पर एक सुप्रसिद्ध गीत में पूरा दर्शन समाहित है- जीवन मौत का खेल है, पगले क्या रोना क्या धोना| जितनी चाबी भरी राम ने, उतना चले खिलौना| रोते-रोते हंसना सीखो, हंसते-हंसते रोना| पल दो पल की इज्जत, पल दो पल की शोहरत| आज जो पाया तूने जग में, कल पड़ेगा खोना..!
इस गीत के बोल पूरे जीवन दर्शन को प्रतिबिंबित कर रहे हैं| यह ईश्वर की लीला ही मानी जाएगी कि जो खुद खिलौना हैं वही खिलौना बनाता है, खिलौना खिलौने का दिल लुभाता है। कोई राजनेता कुछ करे तो उस पर राजनीति होना स्वाभाविक है|
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के एडाप्ट आंगनबाड़ी अभियान के अंतर्गत खिलौने और अन्य सामग्री इकट्ठा करने की पहल पर विपक्षी कांग्रेस ने राजनीति का ठेला चला दिया| मुख्यमंत्री द्वारा जनता के बीच पहुंचने के पहले ही कांग्रेस खिलौने बांटने पहुंच गई| फलों की ठेला यात्रा कांग्रेस निकालने लगी|
मौलिक और नकल में बहुत अंतर होता है| मुख्यमंत्री मौलिक सोच के साथ आंगनबाड़ी के बच्चों के पोषण और शिक्षा के लिए जन सहयोग हासिल करने जनता के बीच उतरे हैं| कांग्रेस को किसने ऐसा करने से रोका था| मुख्यमंत्री के अभियान के मुकाबले टोकन पॉलिटिक्स से प्रचार तो मिल सकता है लेकिन यह नकल ही मानी जाएगी|
बच्चा जब पालने में होता है तभी से उसका खिलौनों से संबंध शुरू हो जाता है| भारत सरकार और राज्य की सरकारें करोड़ों रुपए खर्च कर आंगनबाड़ी संचालित करती हैं| वहां गरीब वर्गों के बच्चे ही अधिकांश जाते हैं| आंगनबाड़ी की सोच नई नहीं है| बहुत वर्षों से आंगनबाड़ियाँ चल रही हैं लेकिन उनके लिए खिलौने जुटाने का सोच पहली बार सामने आया है| ये सवाल उठ रहे हैं कि क्या अभी तक आंगनबाड़ी के बच्चे बिना खिलौने के आगे बढ़ रहे थे?
परिवारों में छोटा बच्चा सबसे बड़ा खिलौना होता है| मां बाप और दादा दादी छोटे बच्चों के साथ खेल कर जो आनंद पाते हैं, उसकी कल्पना ही की जा सकती है| पालने में झुनझुना से शुरू होकर धीरे धीरे खिलौने के आकार और स्वरूप बदलते जाते हैं| छोटी कार, गेंद, फिर बैट, बाल, साइकिल और न मालूम कितने तरीके के खिलौने बाजार में उपलब्ध हैं, जिनके माध्यम से बच्चे स्फूर्ती के साथ बल और संबल का गणित समझते हैं|
आजकल बाजार में ज्यादातर चीनी खिलौने मिलते हैं| मध्यप्रदेश में गलवान की घटना के समय चीनी उत्पादों की खरीदी पर प्रतिबंध लगाया गया था| अब यह देखना होगा कि जो खिलौने मुख्यमंत्री को दिए जा रहे हैं, वह कहीं चीनी खिलौने तो नहीं हैं? बच्चों के स्वास्थ्य की दृष्टि से वितरण के पहले खिलौनों का परीक्षण आवश्यक है।
खिलौना एकत्रीकरण के माध्यम से नगरीय चुनाव के समय जनता के बीच मुख्यमंत्री का पहुंचना बच्चों के साथ उनकी पार्टी को भी लाभ पहुंचा रहा है| शिवराज सिंह चौहान लोकप्रियता की दृष्टि से प्रदेश के सबसे बड़े राजनेता हैं| उनकी कार्यशैली जनता के बीच जाकर समस्याओं का समाधान करने की है| उनके किसी भी अभियान का राजनीतिक विरोध तो किया जा सकता है लेकिन जनता के बीच उनके अभियान की सफलता सुनिश्चित होती है|
तात्कालिक रूप से कुछ देना या लेना सबसे आसान काम होता है| विकास की बुनियादी बातों को अमलीजामा पहनाना सबसे कठिन होता है। इस अभियान से शहर की बुनियादी समस्याएं कैसे हल होंगी? राजधानी भोपाल के कई इलाकों में टैंकरों से पीने का पानी मिल रहा है| मुख्यमंत्री ने रास्ते में काफ़िले को रोककर यह दर्द खुद जाना और तुरंत इसके निवारण के निर्देश दिए। इधर मुख्य सड़कों को छोड़कर कालोनियों की सड़कें जर्जर पड़ी हुई हैं|
शहर की ट्रैफिक व्यवस्था दुरावस्था में है| राजधानी भोपाल में 30 सालों से मास्टर प्लान नहीं है| बेतरतीब विकास शहरों की हालत खराब कर रहा है| अवैध कॉलोनियों का निर्माण और उनका नियमितीकरण अच्छे शहर की निशानी नहीं हो सकती| शहर के विकास के लिए जितनी भी संस्थाएं नगर निगम, भोपाल विकास प्राधिकरण हो या दूसरी संस्थाएं हो, सबकी वित्तीय हालत खस्ता है|
नगर निगम तो अपने बुनियादी खर्च ही पूरे नहीं कर पा रहा है| स्मार्ट सिटी परियोजनाएं कल्पना और वास्तविकता के भवर में लटकी हुई हैं| यह ऐसे मुद्दे हैं जो नीतिगत और व्यवस्थागत परिवर्तन और सुधार की मांग कर रहे हैं| इसके लिए अभी भी शिवराज के अंदर के "नायक" की तलाश है|
इस तरह के अभियान से इमोशनली पब्लिक कनेक्ट बढ़ता है| जो राजनीतिक दल हैं उनके ही इतने नेता और कार्यकर्ता हैं कि अपने नेता के लिए समर्पित भाव से काम करें तो माहौल बनाने के लिए जनता की ज्यादा आवश्यकता नहीं पड़ेगी|
एडोप्ट आँगनबाड़ी अभियान जनभागीदारी की दृष्टि से महत्वपूर्ण है| इसके साथ ही आंगनबाड़ी और पोषण आहार के लिए सरकार जो धन खर्च कर रही है उसका शत-प्रतिशत उपयोग सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है|
ऐसा कहा जाता है कि पोषण आहार सप्लाई करने वाले ठेकेदार अरबपति बन गए लेकिन पोषण की समस्या जहां की तहां खड़ी है| अब तो प्रदेश में पोषण आहार की व्यवस्था महिला स्व सहायता समूह को दे दी गई है| प्रदेश में कुपोषण की स्थिति चिंताजनक है| इमोशनल अभियान की सफलता तो असंदिग्ध है, असली सफलता तो पानी बिजली सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं में निरंतर सुधार और विकास से परिलक्षित होती है|
समाचार पत्रों में आज मुख्यमंत्री के खिलौना एकत्रित करने के अभियान को व्यापक कवरेज मिला है| आज ही अंतरराष्ट्रीय गुमशुदा बाल दिवस है| इस पर एक खबर अखबार में छपी है कि मध्य प्रदेश में हर दिन औसतन 29 बच्चे लापता होते हैं| इनमें लड़कियों की संख्या ज्यादा बताई जा रही है| प्रकाशित खबर के आंकड़ों पर विश्वास किया जाए तो 2021 में मध्यप्रदेश में 8876 लड़कियां लापता हुई थी| ये आंकड़ा देश में सबसे ज्यादा बताया जाता है| सरकार के लिए यह खबर चुनौतीपूर्ण है| बच्चों के ये हालात कैसे सुधरेंगे इस पर तुरंत कार्यवाही की आवश्यकता है|
राजनीति का लक्ष्य सत्ता पाना हो सकता है| लेकिन इस तरह के सामाजिक विषयों और बच्चों के भविष्य के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जानी चाहिए| हमारे मुख्यमंत्री तो बच्चों के मामा के रूप में पॉपुलर हैं| आज तक मध्य प्रदेश में कोई भी नेता बच्चों के साथ ऐसा रिश्ता और पर्सनल कनेक्ट बनाने में सफल नहीं हो सका|
बच्चों के लिए शहरी इलाकों, ग्रामीण क्षेत्रों में भी खेल मैदानों की कमी सर्वविदित है| यहां तक की आंगनबाड़ियां जहां स्थित हैं वहां खेलने के लिए पर्याप्त स्थान होगा ऐसा नहीं लगता| बच्चों के लिए इमोशनल अभियान के साथ उनके विकास और विस्तार की बुनियादी सुविधाओं का विकास टॉप प्रायोरिटी होना चाहिए|