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अमृत महोत्सव : किसानों के लिए मध्यप्रदेश में भी ऐसा कुछ कीजिये

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Sat , 08 May

सार

सूचना है इस बॉयो फ्यूल प्लांट से एक लाख लीटर एथनॉल तैयार किया जा सकेगा. जिसके लिये प्रतिदिन सात सौ टन फसलों के अवशेष का प्रयोग होगा..!

janmat

विस्तार

० प्रतिदिन-राकेश दुबे

13/08/2022

मध्यप्रदेश,  किसान और विशेषकर आदिवासी किसानों की धरती कही जाती है | अतिवर्षा का अंदेशा  किसानों और किसानी से सरोकार रखनेवालों  को डरा रहा है | अपने को  किसान पुत्र कहने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का वो बयान कल उस समय जोरों से याद आया  जब हरियाणा से पराली के बदले टू-जी एथनॉल तैयार होने की खबर आई | मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री किसानों की आय दुगनी करने की बात हर चुनाव में  वादे की तरह करते रहे हैं और आगे भी करेंगे | इस वादे की पूर्ति की दिशा में कुछ होता  हुआ, न तो दिखा और न ही कोई ठोस योजना दिखती ही है |वादे तो हरबार होते थे, होते हैं और होते रहेंगे वादों का क्या ? इसके विपरीत एक सबक के रूप में हरियाणा की पानीपत रिफाइनरी में टू-जी एथनॉल प्लांट का शुरू होना निश्चित रूप से बहुआयामी लाभों की एक शृंखला  दिखती है जो वहां के किसान की आमदनी बढ़ाएगी | काश मध्यप्रदेश में भी ऐसा सोचा जाता |

 एक अर्थ में हरियाणा की पानीपत रिफाइनरी में टू-जी एथनॉल प्लांट का शुरू होना निश्चित रूप से बहुआयामी लाभों को हकीकत में बदलना ही है। इससे एक ओर जहां किसान पराली जलाने की तोहमत से बचेंगे वहीं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बढ़ते प्रदूषण पर अंकुश लगाने की यह सार्थक पहल भी होगी |इससे जहां किसानों की आय बढ़ेगी, वहीं स्थानीय लोगों के लिये रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।

सूचना है इस बॉयो फ्यूल प्लांट से एक लाख लीटर एथनॉल तैयार किया जा सकेगा। जिसके लिये प्रतिदिन सात सौ टन फसलों के अवशेष का प्रयोग होगा | अर्थशास्त्रियों  का अनुमान है कि पेट्रोल के साथ एथनॉल मिलाये जाने से देश में प्रतिवर्ष चार अरब डॉलर की दुर्लभ विदेशी मुद्रा की बचत हो सकेगी। इसके चलते अभी पेट्रोल में जो दस प्रतिशत एथनॉल मिलाया जाता है, उसकी जगह बीस प्रतिशत एथनॉल अप्रैल २०२३  से मिलाया जा सकेगा। वर्ष २०२५  तक देश के सभी पेट्रोल पंपों पर एथनॉल मिश्रित पेट्रोल मिलने लगेगा। निश्चित रूप से जैव ईंधन प्रकृति की रक्षा करता है।

इससे पराली जलाने से धरती की पीड़ा को कुछ हद तक कम किया जा सकेगा। वहीं दूसरी ओर पराली काटने व उसके निस्तारण को लेकर गांव-देहात में जो परेशानी होती थी, उसका समाधान संभव है। किसानों व आपूर्तिकर्ताओं को आर्थिक लाभ भी होगा। इसमें न केवल पराली बल्कि गेहूं का भूसा, मक्का के अवशेष, गन्ने की खोई व सड़े-गले अनाज का भी उपयोग हो सकेगा। निश्चित रूप से जहां अनुपयोगी वस्तुओं का उपयोग हो सकेगा, वहीं कृषकों को अतिरिक्त आय का बोनस भी मिलेगा। इस पहल का विस्तार पंजाब, मध्यप्रदेश,उत्तर प्रदेश व राजस्थान आदि राज्यों में भी किया जाना चाहिए, जिन पर आरोप लगते रहे हैं कि उनके किसानों द्वारा पराली जलाने से देश में प्रदूषण की समस्या पैदा होती है।

निस्संदेह, जैव ईंधन उत्पादन के ऐसे प्रयास सारे देश में किये जाने चाहिए क्योंकि भारत के तमाम शहर प्रदूषण की दृष्टि से संकटपूर्ण स्थिति से गुजर रहे हैं। सरकार के ये प्रयास तब तक सफल नहीं हो सकते जब तक किसानों की सक्रिय भागीदारी किसी मुहिम में नहीं होती। किसानों को समझाया जाना चाहिए कि फसलों के अवशेष जलाने से जो प्रदूषण पैदा होता है उससे उनकी धरती, परिवार व समाज का अहित होता है। किसानों की सेहत पर भी इसका प्रतिकूल असर होता है। इस मुहिम में किसान की भागीदारी अनिवार्य शर्त है। जहां वे इससे अपनी अतिरिक्त आय जुटा सकते हैं, वहीं अन्य लोगों को भी रोजगार के अवसर दे सकते हैं।

सरकार को भी किसानों को बढ़ती महंगाई में राहत देने के लिये खाद, उपकरणों तथा बीजों की कीमत में कुछ छूट देने के प्रयास  जारी रहना चाहिए। इसका अभिप्राय यह बिल्कुल नहीं है कि इस अभियान को मुफ्त की राजनीति का हिस्सा बनाया जाये।

जब सरकार  कर्मचारियों को महंगाई बढ़ने पर भत्ता बढ़ाया जा सकता है तो अपरोक्ष रूप से किसान को भी राहत देने की ईमानदार कोशिश होनी चाहिए। खेतों से एथनॉल प्लांट तक फसलों के अवशेष ले जाने वाले श्रमिकों, वाहन चालकों तथा प्लांट में काम करने वाले श्रमिकों को भी इससे रोजगार मिलता है। रोजगार की एक नई शृंखला पैदा होती है। मध्यप्रदेश को किसानो  के व्यापक हित में इस प्रकार की योजना बनाना और अतिशीघ्र क्रियान्वित करना चाहिए |