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शिक्षा : गुरुजी को भी ये समझना होगा

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 27 Jul

सार

प्रदेश और देश के बच्चे परीक्षाओं के सिलसिले और प्रवेश इम्तिहान जैसे बोर्ड परीक्षा, जेईई, नीट और नवीनतम घोषित सीयूईटी इत्यादि से हलकान है. हमारा बहुत ज्यादा आलोचनात्मक समाज योग्यता को उत्तीर्णता से तोलता है, अव्वल आने वालों की सफलता गाथाओं का बखान होता है और जो इस दबाव को सह नहीं पाते हैं, उनकी आलोचना होती है. हम अपने बच्चों के बड़ा होने की प्रक्रिया में खुद को व्याकुल होने देने की हद तक चले जाते हैं..!

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विस्तार

बच्चे और पालक कैसे  इम्तिहानों का तनाव, अंतहीन मानकीकरण परीक्षाओं का सिलसिला, कोचिंग सेंटरों के फंदे और अत्यधिक तनावों एवं चिंता से भरी जिंदगी जीने से गुजरते हैं। जिन्हें इस प्रक्रिया में सबसे कम तनाव जिसे  झेलना पड़ता है, वे शिक्षक हैं । स्कूल के गुरुजी से लेकर कालेज के सर और कोचिंग क्लासेज़ के सुपर सर तक मज़े से परिणाम और अगले साल नए बच्चों की प्रतीक्षा करते हैं, अपने मूल दायित्व  अध्यापन को हीलाहवाला करने में इनकी महारत है ।

यह वही समय है जब चिंता-ग्रस्त अभिभावकों की भी रातें काली हो रही हैं, कोचिंग सेंटर या एजुकेशन कंपनियां उनके इस फिक्र का दोहन करते हैं। वे भौतिकी, गणित, रसायन शास्त्र और जीव-विज्ञान इत्यादि विषयों में सफलता पाने के दावे कर अपने-अपने पैकेज बेचकर मुनाफा कमाते हैं,इसके विपरीत शासकीय शिक्षण संस्थानों अर्थात् स्कूल से कालेज तक के गुरुजी भारी वेतन भत्ते लेकर चैन की बंसी बजा रहे हैं।इनमें से अधिकांश अपने पैतृक गाँव,ज़िले पर पदस्थ होंते हैं  और पढ़ने -पढ़ाने को छोड़ सारे प्रपंचों में शामिल होते हैं।

शासकीय व्यवस्था से जुड़े ये शिक्षक, हमेशा अपने मूल कर्तव्य छोड़ इतर कामों में लगे होने का तर्क देते हैं। सबसे बड़े और संगठित शिक्षक समाज ने कभी इतर कामों का विरोध नहीं किया, बल्कि इतर कामों को प्राथमिकता दी। उनका यह रवैया व्यवस्था को पंगु कर देता है और सरकार भी यह मानने लगती हैं कि इसका और कोई विकल्प नहीं है। कुछ भी हो, चाहे हमारे बच्चे की रुचि सैद्धांतिक भौतिकी या रचनात्मक कला की ओर हो, उन्हें किसी किस्म की निवेश की वस्तु बनाने में जो कड़ी उत्प्रेरक है वो शिक्षक है, पर उदासीन।

नफे-नुकसान के गणितीय तर्क से नापा गया शिक्षक  और विद्यार्थी का रिश्ता देश के सरकारी शिक्षा संसार की डरावनी छवि पेश करता है। बेहतर करने वाले विद्यार्थी निजी संस्थानों से आते हैं, जहां के शिक्षकों को सरकारी शिक्षकों की तुलना में आधा भी पारिश्रमिक नहीं मिलता।निजी संस्थानों के कुछ टार्गेट भी पूरा करना उनका दायित्व होता है।

उत्कृष्ट शिक्षा पर इस संगठित और व्यवस्थित चोट के विरोध में, समाज को अपनी आवाज जरूर उठानी चाहिए, जागृति लाने की कोशिश करना चाहिए, ख़ासकर उन्हें जो सरकारी शिक्षा विभाग की बड़ी आसंदियों पर मचकने का सुख भोग भारी पेंशन राशि ले रहे हैं। एक अर्थपूर्ण और मुक्त शिक्षा के मानकीकरण के पहले इसकी महत्वपूर्ण कड़ी शिक्षक की उत्कृष्टता तय  करना होगी , विश्व में भारत का परचम  फहराने में यह एक कोशिश हो सकती है।

भारत के बच्चे जिज्ञासु और सृजनात्मक हैं, उन्मे दुनिया को बूझने की एक अंतहीन रुचि है– भौतिक, जैविक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहलुओं में, यह बच्चे के अंदर मानवीय और आलोचनात्मक चेतना जगाती हो, ज़रूरत ऐसे शिक्षकों की है जो विद्यार्थी को समानतावादी और दयालु समाज की सृजना के लिए सिद्ध किया गया कौशल इस्तेमाल करने लायक बनाए।शिक्षक  का ध्येय विद्यार्थी को एक आत्ममुग्ध योद्धा बनना नहीं है, इसकी बजाय संवेदनशील और दूसरों का ख्याल और प्यार करने के संस्कार देना होना चाहिए।

आज भारत को हिंसा, पर्यावरण विध्वंस का प्रतिरोध और निरंतर सरकारी निगरानी वाले समाज  की ज़रूरत है। जिसकी पहली सीढ़ी स्कूल है। आज जैसी शिक्षा हमें देखने को मिल रही है उसके बारे में महान शिक्षाविद‍् जैसे कि रविंद्रनाथ टैगोर, जिद्दू कृष्णमूर्ति और पाअलो फ्रेयर ने कभी कल्पना भी नहीं की होग।

पाबलो नैरूदा या अमृता प्रीतम जैसे कवि, आइसैक न्यूटन या एल्बर्ट आइंसटाईन जैसे वैज्ञानिक या बिपन चंद्रा या इरफान हबीब जैसे इतिहासकार कभी नहीं चाहेंगे कि उनके किए काम को परीक्षा के एमसीक्यू पैटर्न वाले मौजूदा रूप में इस कदर कमतर बना दिया जाए। वास्तव में देश के बच्चे केवल परीक्षाओं की शृंखला को हल करने के लिए पैदा नहीं हुए हैं, जिसका मंतव्य मापने के बेतुके पैमानों से लोगों को बुद्धिमत्ता, नैतिकता और समझ से परिपूर्ण करने की बजाय केवल छंटाई या खत्म करना है।

इसमें अध्य्यनशील शिक्षक की भूमिका मुख्य है। देश का प्रत्येक बच्चा संभावना रखता है और उसकी विलक्षणता को किसी जेईई या नीट रैंक से नहीं नापा जा सकता, समाज के और भी क्षेत्र हैं। शिक्षक को समाज की आकांक्षाओं और कौशल का मानकीकरण कर भविष्य का मार्ग दिखाना चाहिए अभी वो इस क्षमता का इस्तेमाल करने में विफल रहता है। असल मुद्दे का निदान करना आसान नहीं है। प्रेरित करने वाले शिक्षकों को आगे आना चाहिए जो युवाओं को ‘परीक्षा योद्धा’  के स्थान पर श्रेष्ठ नागरिक में तब्दील होने का प्रोत्साहन दें।