उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर मध्यप्रदेश में भी खासी चर्चा है. इसकी वजह यह है कि उप्र के चुनाव नतीजों का असर एमपी की सियासत पर भी पड़े बिना नहीं रहेगा....
• उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर मध्यप्रदेश में भी खासी चर्चा है सियासत से लेकर प्रशासनिक गलियारों में भी चर्चा अटकल और अनुमानों के दौर चल रहे हैं। इसकी वजह यह है कि उप्र के चुनाव नतीजों का असर एमपी की सियासत पर भी पड़े बिना नहीं रहेगा। सोमवार 14 फरवरी को दूसरे चरण में 9 जिलों की 55 सीटों पर मतदान होगा। इस तरह पहले दौर की किसान और जाट बहुल 58 सीटों को मिलाकर देखें तो 14 फरवरी तक 113 सीटों पर वोट पड़ जाएंगे। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान गुड गवर्नेंस के चक्कर में जहां 23 फरवरी को होने वाले कमिश्नर-कलेक्टर संवाद राज्य में चर्चित हो रहे हैं वहीं चुनाव के चलते उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गोवा में भी सुर्खियां बटोर रहे हैं। यह संयोग है कि मध्य प्रदेश भाजपा के दर्जनों नेता पांच राज्यों के चुनाव में प्रचार कर रहे हैं लेकिन इससे इतर मध्य प्रदेश कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को पार्टी हाईकमान ने किसी भी राज्य में प्रचार के लिए नहीं भेजा है। इसमे पूर्व मुख्यमंत्रीद्वय कमलनाथ और दिग्विजय सिंह प्रमुख हैं।
• यूपी में दूसरे चरण के मतदान में अल्पसंख्यक वोटर बड़ी तादात में हैं। मतदान के दौरान संभावित तनाव को देखते हुए चुनाव आयोग ने केंद्रीय सुरक्षाबलों की कई टुकड़िया तैनात कर पुख्ता सुरक्षा प्रबंध किए हैं। कुछ सीटों पर वे 65 फीसदी हैं। पिछले चुनाव में भाजपा का पल्ला भारी था। 9 जिलों में सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद,संभल, रामपुर, अमरोहा, बदायूं, बरेली और शाहजहांपुर की सीटें शामिल है । 55 सीटों में से भाजपा को 38 समाजवादी पार्टी को 15 और कांग्रेस को 2 सीटें मिली थी। बसपा यहां खाता नहीं खोल पाई थी । इस बार के चुनाव में माहौल को देखते हुए राजनीतिक पंडित आशंका जता रहे की पिछली बार की तुलना में भाजपा का प्रदर्शन थोड़ा कमजोर हो सकता है। इसी तरह की आशंका प्रथम चरण के 11 जिलों की 58 विधानसभा सीटों को लेकर भी है। जाट बहुल इलाकों की इन सीटों में भाजपा ने 55 सीट जीतने का रिकॉर्ड बनाया था। लेकिन योगी सरकार की कठोर कानून व्यवस्था को लेकर आम जनता हाथों से महिलाओं में जो भरोसा पैदा हुआ है यदि वह अंडर करंट की तरह चला तो फिर चुनाव में भाजपा का पल्ला पहले की तरह भारी साबित हो सकता है। भाजपा के पक्षधर योगी सरकार कि बेहतर कानून व्यवस्था और ईमानदारी को लेकर ज्यादा उत्साहित है।
मध्य प्रदेश से यूपी प्रचार के लिए गए नेताओं की बात माने तो गुंडों में पुलिस का डर और राम मंदिर से लेकर गंगा घाट , काशी विश्वनाथ परिसर और उसके आसपास शानदार निर्माण को लेकर भी भाजपा अच्छे नतीजे की उम्मीद कर रही है। लेकिन इसके विपरीत भाजपा खासतौर से मुख्यमंत्री योगी की कठोरता और इमानदारी को लेकर भी भाजपा के ही कुछ लोग नाराज हैं लेकिन जैसा सपा दावा करेगी यह चुनाव जनता का है और यही बात भाजपाई भी कह रहे हैं । इसलिए मतदान का कम प्रतिशत भाजपा और सपा दोनों ही अपने पक्ष में होने का दावा कर रहे हैं। आमतौर से भारी मतदान सरकार के खिलाफ माना जाता है लेकिन यह कोई निश्चित फार्मूला नहीं है। इसलिए सपा और भाजपा सुविधानुसार कम मतदान को अपने पक्ष में होने का दावा कर रहे हैं। दूसरे दौर के चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री मोदी मुख्यमंत्री योगी सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी खूब सभाएं की। अल्पसंख्यकों के वोट एकमुश्त सपा को मिले इसके लिए पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सभाएं भी रणनीति के तहत कराई गई थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश यानी किसान और जाट बहुल 11 जिलों में भाजपा को थोड़ा नुकसान जरूर होता हुआ दिख रहा है लेकिन 9 जिलों में दूसरे चरण के मतदान में वोटों का ध्रुवीकरण हुआ तो पिछले चुनाव की तरह भाजपा बेहतर प्रदर्शन कर सकती है इस बार भाजपा की तरफ से दावा किया जा रहा है की तीन तलाक के लिए आए कानून से मुसलमान महिला वोटर भाजपा को वोट दे सकती हैं ऐसा हुआ तो यह अल्पसंख्यक वोटरों के बंटने का एक नया ट्रेंड होगा।
शिवराज की सभाओं से भाजपा को लाभ के संकेत :
उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड और गोवा मैं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सभाओं में आई भीड़ को देखते हुए भाजपा को लाभ मिलने का अनुमान जताया जा रहा है। अपनी सभाओं में सीएम बेटा बेटियों और भांजे भांजियों के संबोधन से वोटर से सीधा-सरल और भावनात्मक संवाद स्थापित कर उनके दिलों में उतरने की कोशिश करते हैं। यह अंदाज़ असर कर गया तो भाजपा को लाभ पहुंचा सकता है।
कलेक्टर कमिश्नर के साथ सीएम की चर्चा :
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने चौथे कार्यकाल में बदले बदले से नजर आ रहे हैं। यह बदलाव नौकरशाही में कसावट को लेकर सबसे ज्यादा है। लोगों से संवाद कम करके वे ज्यादा समय अगले चुनाव को देखते हुए अधिकारियों में कसावट लाने में लगे हैं। चौहान के विरोधी उन्हें लोकप्रिय जन नेता तो मानते हैं लेकिन प्रशासनिक पकड़ के मामले में उनकी सदाशयता को कमजोर कड़ी के रूप में मानते हैं। चुनाव तो जीत जाते हैं लेकिन गुड गवर्नेंस के मामले में थोड़ा पिछड़ जाते हैं खासतौर से जिलों में तैनात कलेक्टर एसडीएम और तहसीलदार स्तर की बात करें तो कॉन्ग्रेस के साथ कुछ भाजपा नेतागण भी उन्हें निशाने पर लेते हैं अपने चौथे कार्यकाल में श्री चौहान अपनी प्रशासनिक छवि को चमकाने की पुरजोर कोशिश करें मैदानी अफसरों के प्रति उनका तल्ख रवैया भी ऐसे संकेत देता है। 23 फरवरी के बाद मुख्यमंत्री की कलेक्टर कमिश्नर बातचीत और उसके नतीजों पर हम एक बार फिर बात करेंगे कि आखिर उनके यह प्रयास कितने असरदार साबित हो रहे हैं।