मध्य प्रदेश में 190 करोड़ के मुकाबले 5॰5 करोड़ यूनिट की कमी है।
मध्यप्रदेश में मौसम ने करवट ली है। बादल बरसे हैं पर इससे बिजली का संकट दूर होगा इसका अनुमान लगाना कठिन है । मध्य प्रदेश में 190 करोड़ के मुकाबले 5॰5 करोड़ यूनिट की कमी है।
इस अपील को करते समय, पूरे भारत में हलकान करती गर्मी है, फिर भी अपील है। अपने निवास या कार्यक्षेत्र के गैर-जरूरी बिजली उपकरणों को बंद रखें। देश में गंभीर बिजली संकट चल रहा है और अनेक राज्यों में लोग आठ-आठ घंटे की बिजली कटौती झेल रहे हैं।
राजधानी दिल्ली में अस्पतालों और मेट्रो तक की बिजली आपूर्ति में कटौती की नौबत आ सकती है।
ऐसा बिजली संकट पहली बार नहीं आया है। सात महीने पहले अक्टूबर में भी ऐसा ही घटा था। तब भी देश के बिजली घरों में कोयले का स्टॉक खत्म होने की नौबत थी और बिजली की कमी देश के बड़े हिस्से में लोगों को परेशान कर रही थी।
अब संकट और गंभीर हो रहा है, क्योंकि गर्मी का पारा रिकॉर्ड को तोड़ रहा बिजली की मांग में उछाल आया है।
कई साल से यह बात कही जाती रही है कि भारत में जितनी जरूरत है, उससे बहुत कम बिजली बनती है, इसलिए बिजली की बचत जरूरी है।
सरकार अब उलटी तस्वीर दिखा रही है। संसद में दावा किया गया था कि भारत में बिजली का संकट नहीं हो सकता है, क्योंकि हम अपनी जरूरत से कहीं ज्यादा बिजली बना रहे हैं।
इस समय देश की कुल बिजली उत्पादन क्षमता है 39,94 17 मेगावाट, यानी लगभग 399 मेगावाट। पिछले कुछ दिनों में ही 62॰3करोड़ यूनिट बिजली की कमी पड़ चुकी है।
बिजली की इस किल्लत की वजह क्या है? इसके अलग-अलग जवाब हैं। केंद्रीय सरकार का कहना है कि संकट के लिए राज्य सरकारें ही जिम्मेदार हैं। वही नहीं, केंद्रीय बिजली सचिव ने भी कहा कि केंद्र के खाते में चार से पांच हजार मेगावाट बिजली उपलब्ध थी, जो राज्यों की मांग पर दी जा सकती थी,
लेकिन कहीं से कोई मांग नहीं आई। राज्य सरकारें जिम्मेदार हैं या नहीं, इस पर विवाद हो सकता है, लेकिन यह हक़ीक़त है कि बिजली की कमी या कोयले की कमी के पीछे असली कारण पैसे की कमी और इंतजाम की कमी है।
देश में बिजली उत्पादन की जिस क्षमता का दावा किया जाता है, उसका 53 प्रतिशत हिस्सा कोयले से बनने वाली बिजली का है। देश के पास दुनिया का सबसे बड़ा कोयला भंडार है, लेकिन देश के बहुत से बिजलीघर विदेशों से कोयला खरीदकर इस्तेमाल करते हैं।
इसकी दो वजहें हैं। एक तो यह कि भारत के खदानों से निकलने वाले कोयले की गुणवत्ता कमतर है और दूसरी वजह यह कि देश के दूरदराज के इलाकों में कोयला पहुंचाने का खर्च आयातित कोयले की तुलना में ज्यादा है।
यूक्रेन संकट के कारण दुनिया भर के बाजारों में कोयले के दाम काफी बढ़ गए हैं, इसलिए इन बिजलीघरों के सामने मुश्किल खड़ी हो गई है। वे विदेश से महंगा कोयला खरीदकर पुराने भाव पर बिजली बेचना नहीं चाहते, तो अब वे कोल इंडिया से कोयला चाहते हैं।
कोयले का बड़ा भंडार होने के बावजूद कोल इंडिया तुरंत यह मांग पूरी नहीं कर सकती, क्योंकि खदान से कोयला निकालने और उसे मालगाड़ी में लादकर बिजलीघर तक पहुंचाने में समय भी लगता है और पैसा भी। अगर देश पहले से तैयार होता तो, शायद हालात इतने बुरे नहीं होते।
राज्य सरकारों या उनके बिजली बोर्डों के पास कोयले का भुगतान करने के लिए पैसा भी नहीं है। कोल इंडिया का महाराष्ट्र सरकार, पश्चिम बंगाल, झारखंड का करोड़ों रुपये बकाया है।
तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश भी इसी फेहरिस्त में हैं । राज्य सरकारें आसान रास्ता अपनाती हैं कि बिजली कटौती करो और पैसा बचा लो।
ऐसे में, सबसे ज्यादा परेशान वे लोग हैं, जो ईमानदारी से बिजली की पूरी कीमत चुकाते रहे हैं और आगे भी चुकाने को तैयार हैं। मगर क्या करें, बिजली खरीदी का विकल्प मौजूद नहीं है।
राकेश दुबे