यूपी के प्रयागराज में अपराध की अति के प्रतीक अतीक का अपराधिक भविष्य असद एनकाउंटर में ढेर हो गया. जिसके भविष्य के लिए अपराध की दुनिया में अतीक ने पांव जमाया आज उसी अपराध ने परिवार का भविष्य समाप्त कर दिया. यूपी की योगी सरकार के पक्ष में मतदान करने वाले करोड़ों मतदाताओं की भावनाएं आज सोशल मीडिया पर तैर रही हैं. माफिया के सफाया को लोकतंत्र की जीत के रूप में देखा जा रहा है..!
अपराधी के एनकाउंटर पर वोटर खुशी मनाता हुआ देखा जा सकता है. माफिया पर चोट वोट को सार्थक साबित कर रहा है. यूपी में अपराध और माफिया कभी राजनीति के सहारे खड़े होते हुए देखे जा रहे थे. आज इसके उलट माफियाओं का सफाया राजनीति में सफलता का पैमाना बनता दिखाई पड़ रहा है. पहले आतंकवाद और अतिवाद राष्ट्र के विरुद्ध अपराध के रूप में राजनीति का प्रमुख मुद्दा हुआ करता था. आज माफिया और अपराधी राजनीति में मुद्दा बने हुए हैं.
यूपी में आज जितने माफिया कानून के शिकंजे में दिखाई पड़ रहे हैं उनमें अधिकांश एक ही समुदाय से जुड़े हुए हैं. अभी एनसीईआरटी की पुस्तकों से मुगल शासकों के अंश को हटाने को लेकर विवाद राजनीति में मुद्दा बना हुआ है. अब मुगल माफिया का एनकाउंटर राजनीतिक विचारधारा के विभाजन का कारण बन रहा है.
उमेश पाल की हत्या में शामिल अतीक अहमद के बेटे असद और शूटर गुलाम के एनकाउंटर पर सरकारी पक्ष बीजेपी की ओर से जहां एसटीएफ के जवानों को बधाई के संदेश दिए जा रहे हैं वहीं विपक्ष के राजनेताओं की ओर से एनकाउंटर को न्याय नहीं बताया जा रहा है. अपराधियों के लिए न्याय और मानव अधिकार की बात करने वाले अपराध के भी राजनीतिक ध्रुवीकरण के लिए जिम्मेदार हो जाते हैं. एनकाउंटर पर धार्मिक एंगल तलाशने वाले यह भूल रहे हैं कि इसी उत्तरप्रदेश में असद से पहले विकास दुबे का एनकाउंटर हो चुका है.
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव एनकाउंटर पर अपनी प्रतिक्रिया ट्वीट करते हुए कहते हैं कि झूठा एनकाउंटर करके भाजपा सरकार सच्चे मुद्दों से ध्यान भटकाना चाह रही है. भाजपा न्यायालय में विश्वास ही नहीं करती है. आज के व हालिया एनकाउंटर की भी गहन जांच-पड़ताल हो. दोषियों को छोड़ा ना जाए. सही गलत के फैसलों का अधिकार सत्ता का नहीं होता. वहीं असदुद्दीन ओवैसी की प्रतिक्रिया भी अपराध को तुष्टिकरण की नजरिए से देखने के ज्यादा करीब है. ओवैसी ने कहा है कि जुबेर और नासिर के मारने वालों को भी गोली मारोगे क्या? बीजेपी वालों नहीं करोगे क्योंकि मजहब के नाम पर एनकाउंटर करते हो तुम.
अपराधियों और माफियाओं के एनकाउंटर पर इस तरह की विभाजनकारी राजनीतिक प्रतिक्रियाएं निश्चित रूप से लोकतांत्रिक मानसिकता नहीं कही जा सकती.आम लोगों की जिस तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं वह समाज में शांति व्यवस्था और कानून का राज स्थापित करने की अपेक्षा से ज्यादा कुछ नहीं कहीं जा सकती.
आतंकवादी घटनाओं के समय भी जब एक विशेष समुदाय के लोग आतंकी घटनाओं में लिप्त पाए जाते थे तब भी इसी तरह की राजनीतिक प्रतिक्रियाएं आती थी. आतंकवाद की घटनाओं को बहुसंख्यक समुदाय से जोड़ने के लिए ही हिंदू आतंकवाद की राजनीतिक परिकल्पना विकसित हुई थी. अपराधियों और माफियाओं के खिलाफ कार्यवाही और एनकाउंटर में भी हिंदू और मुस्लिम के रूप में राजनीतिक प्रतिक्रियाएं बौद्धिक दिवालियेपन से ज्यादा कुछ नहीं कही जा सकती हैं.
अपराध और भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम आज राजनीति में समर्थन का आधार बनता जा रहा है. अपराध और भ्रष्टाचार के मामलों पर कार्यवाही को लेकर राजनीतिक दलों के बीच विभाजन स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. यूपी में एनकाउंटर पर भी इसी तरह का विभाजन दिखाई पड़ रहा है. भ्रष्टाचार के मामलों में भी बीजेपी और विपक्षी दलों के बीच में टकराव साफ साफ दिखाई पड़ रहा है. विपक्षी दलों में बीजेपी सरकार के खिलाफ एनकाउंटर का दृश्य दिखाई पड़ रहा है. वह भी राजनीतिक प्रतिक्रिया ही लगती है.
शब्दकोश में एनकाउंटर का मतलब मुठभेड़ के साथ ही आकस्मिक मिलन भी बताया गया है. राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी दलों के नेताओं का जिस तरह से एनकाउंटर हो रहा है वह भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्यवाही पर पक्ष और विपक्ष के बीच एनकाउंटर ही कहा जाएगा.
लोकतंत्र में कानून व्यवस्था की मजबूत स्थिति माफिया और अपराधियों पर सख्त कार्रवाई भ्रष्टाचारियों के खिलाफ एक्शन, अब राजनीतिक दलों का नहीं जनता का मुद्दा बन गया है. पिछले कई चुनावों में इन मुद्दों पर राजनीतिक दलों का विभाजन साफ़ देखा गया है और उसका लाभ और नुकसान भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है.
भारत का लोकतंत्र अब जन जीवन से जुड़े मुद्दों पर राजनीति के दो पक्षों में बट गया है. अभी तो माफियाओं का एनकाउंटर और भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने वाले पक्ष को जनसमर्थन मिलता दिखाई पड़ रहा है. इन मामलों में विरोध करने वाला एक प्रकार से समर्थन करने वाले पक्ष के प्रति जन विश्वास को बढ़ाने का ही काम कर रहा है. विपक्ष जाने-अनजाने अपनी प्रतिक्रिया से अपने नुकसान का ही सामान तैयार करता हुआ दिखाई पड़ता है.
वोट राजनीति का पहला लक्ष्य और सत्ता खेल खिलौना होता है. माफिया अतीक और उसका परिवार राजनीति के सहारे अपराध में फलते फूलते अपराध का प्रतीक बन गया है. इस प्रतीक को मिट्टी में मिला कर तैयार हो रही राजनीतिक जमीन, भविष्य में मतदाताओं के मनोविज्ञान के ध्रुवीकरण को मजबूत करेगी.