ईवीएम में भूत है, जो भाजपा को ही वोट भेजता है..!!
और महाराष्ट्र चुनाव में करारी पराजय के बाद कांग्रेस और उसके कुछ सहयोगी दलों ने किलापना शुरू कर दिया है- ईवीएम में भूत है, जो भाजपा को ही वोट भेजता है।’ अब विपक्षी राग इतना उग्र हो चुका है कि अब राहुल गांधी की ‘बैलेट पेपर यात्रा’ सुर्खियों में आ गई है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने भी कहा है कि बैलेट पेपर की वापसी के लिए हमें अब आंदोलन करना चाहिए।
यह कांग्रेस की संवैधानिक इच्छा है कि वह ‘ईवीएम बनाम बैलेट पेपर’ का जनांदोलन शुरू करे, लेकिन भारत के चुनाव आयोग को यूं ही नहीं कोसा जा सकता। चुनाव आयोग की स्थापना संविधान लागू होने से पूर्व ही कर दी गई थी। संविधान और लोकतंत्र की गरिमा और सफलता तभी है, जब देश में स्वतंत्र, निर्भीक, मुक्त और निष्पक्ष चुनाव हों।
संविधान सभा में चुनाव आयोग के प्रारूप पर लंबी बहसें हुई थीं। उन्हीं के बाद संविधान में चुनाव आयोग तथा चुनाव प्रक्रिया से संबंधित 16 अनुच्छेद जोड़े गए थे। उनमें बुनियादी अनुच्छेद 324 भी शामिल था। अब इन तर्कों के कोई भी मायने नहीं रहे कि कांग्रेस जब किसी राज्य में अथवा लोकसभा चुनाव में 100 सीटें जीतती है, तो ईवीएम का भूत ‘कांग्रेसमय’ हो जाता है। जब हरियाणा और महाराष्ट्र सरीखे महत्वपूर्ण चुनाव हारती है, तो फिर ‘भाजपा का भूत’ चिल्लाने लगती है। हालांकि झामुमो-कांग्रेस गठबंधन ने झारखंड का चुनाव जीता है और वहां मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन शपथ भी ग्रहण कर चुके हैं।
कांग्रेस के ईवीएम पूर्वाग्रह और भूतैले आरोपों पर सर्वोच्च अदालत ने हाल ही में फटकार लगाई है। सर्वोच्च अदालत ईवीएम को दोषमुक्त मानते हुए ‘हरी झंडी’ भी दे चुकी है। सवाल यह है कि चुनाव आयोग कांग्रेस समेत विपक्ष को आश्वस्त कैसे करे कि ईवीएम में कोई भूत नहीं है, उसे हैक नहीं किया जा सकता अथवा ईवीएम में विसंगतियां नगण्य हैं?
अब कांग्रेस ईवीएम के बजाय ‘बैलेट पेपर’ से मतदान कराने पर अड़ी है। चुनाव-प्रक्रिया के ‘पाषाण-काल’ में लौटने की जिद की जा रही है। बैलेट पेपर से मतदान वाले दिन और दौर सबने देखे हैं। कब, कितने बूथ लूट लिए गए अथवा अवैध मतदान किया गया, अवैध बूथ छाप दिए गए या मतदान से पहले ही ‘बैलेट पेपर’ लीक हो गए और घरों पर बैठ कर उन पर मुहर लगा दी गई? ऐसे असंख्य दृश्य बिहार, उप्र, पश्चिम बंगाल चुनावों के हमें आज भी याद हैं और कौंधते रहते हैं।
कांग्रेस ने अधिकतर चुनाव बैलेट युग में ही जीते हैं। क्या अब देश को भी पाषाण-काल में लौट जाना चाहिए? ईवीएम 2004 से भारत में लागू है। तब लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी। अगला 2009 का आम चुनाव भी कांग्रेस के पक्ष में रहा था, हालांकि किसी भी पक्ष को बहुमत हासिल नहीं हुआ था।
भारत की चुनाव-व्यवस्था विश्व भर में विख्यात और प्रशंसनीय है। बीते 12 सालों से 130 से ज्यादा देशों के चुनाव आयुक्त हमारे चुनाव आयोग से सीख रहे हैं। इतना व्यापक मतदान देख कर और उसकी प्रक्रिया जान कर वे विदेशी आयुक्त अचंभित होते हैं। क्या अच्छी तरह चुनाव सम्पन्न कराना ‘महान लोकतंत्र’ का हिस्सा नहीं है?
बेशक हमारे चुनावों पर भ्रष्टाचार, अनपढ़ता, खराब लैंगिक भागीदारी, नागरिक मुक्ति पर हमले और देश की राजनीतिक संस्कृति सरीखे कुछ कलंक भी चस्पा किए जाते रहे हैं। बहरहाल अब मुद्दा ईवीएम का है। सर्वोच्च अदालत और चुनाव आयोग ‘बैलेट पेपर मतदान’ की संभावनाओं को खारिज कर चुके हैं। ऐसा करना व्यावहारिक नहीं होगा।