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देश का वित्तीय स्वास्थ्य चिंताजनक?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Sat , 09 Sep

सार

पहले चार महीनों के आंकड़े देखे जाएं तो वे एक अलग तरह की समस्या की तरफ इशारा करते हैं.

janmat

विस्तार

ये आँकड़े चिंतित करने वाले हैं। चालू वित्त वर्ष के पहले चार महीनों में प्रत्यक्ष कर संग्रह में 0.91 प्रतिशत की कमी आई है जो पूरे वर्ष के लिए बजट अनुमानों की 11.36 प्रतिशत की वृद्धि से कम है।इन आंकड़ों को लेकर थोड़ा आश्चर्य होना स्वाभाविक है।

भारतीय उद्योग जगत ने वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही के लिए लाभ की घोषणा की है। जबकि निगमित कर संग्रह वर्ष 2023 की अप्रैल-जून अवधि के दौरान 10 प्रतिशत गिर गया। निजी आयकर संग्रह में 6.6 प्रतिशत का इजाफा हुआ है जिसे बहुत उत्साहजनक नहीं कहा जा सकता है।

बजट में 2023-24 के लिए 14 प्रतिशत की सालाना वृद्धि दर का अनुमान लगाया गया है। वास्तव में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में प्रत्यक्ष कर संग्रह का हिस्सा घटकर 4.6 प्रतिशत रह गया इससे पिछले वित्त वर्ष की इसी तिमाही में यह करीब 5 प्रतिशत था।

वर्ष 2023-24 के केंद्रीय बजट में राजस्व के एक मुख्य स्रोत के रूप में प्रत्यक्ष करों की भारी वृद्धि पर दांव लगाया गया है जिससे कि सरकार अपनी महत्त्वाकांक्षी पूंजी खर्च योजना को वित्त उपलब्ध करा सके जिसके योजना आकार में 36 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। अप्रत्यक्ष करों में सिर्फ 8.5 प्रतिशत की वृद्धि का बजट अनुमान रखा गया लेकिन प्रत्यक्ष करों के विपरीत अप्रत्यक्ष कर, जो केंद्र को मिलते हैं, लक्ष्य से बहुत चूके नहीं हैं और उन्होंने करीब 7 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की है।

वर्ष 2023-24 की अप्रैल-जून की अवधि के दौरान सीमा शुल्क राजस्व में 27 प्रतिशत की जोरदार वृद्धि हुई है। साथ ही, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में 11प्रतिशत से अधिक का इजाफा हुआ है। उत्पाद शुल्क, जो कि ईंधन उत्पादों पर निर्भर है, में 10 प्रतिशत की गिरावट आई। पेट्रोलियम पदार्थों की घरेलू खुदरा कीमतों पर कच्चे तेल के ऊंचे दामों के असर को कम करने के लिए की गई थी।

वैसे इस दलील में थोड़ा तो दम है कि पहले चार महीनों या पहली तिमाही में कर राजस्व आमतौर पर धीमी गति से ही बढ़ता है और वर्ष के शेष महीनों में थोड़ा जोर लगाना पड़ता है। पिछले कुछ सालों के पहले चार महीनों के आंकड़े देखे जाएं तो वे एक अलग तरह की समस्या की तरफ इशारा करते हैं।

पिछले कुछ सालों में दो बड़े निर्णय लिए गए। एक निगमित कर की दरों में धीमे धीमे कटौती और छूट मुक्त कर व्यवस्था का विकल्प चाहने वाले व्यक्तिगत आयकरदाताओं के लिए कर की कम दरें। निगमित कर की दरों में चरणबद्ध कटौती वर्ष 2019-20 में पूरी हुई जबकि व्यक्तिगत आयकर की नई व्यवस्था पिछले वर्ष ही लागू हुई। यह संभव है कि निगमित कर की कम दरों से कंपनियों पर कर का प्रभाव कम हो गया हो जिससे वास्तविक संग्रह पर असर आया हो।

वित्त मंत्रालय का विश्लेषण बताता है कि यह वर्ष 2014-15 में करीब 24.67 थी जो वर्ष 2020- 21 में पहले ही घटकर 22 फीसदी पर आ चुका है। प्रभावी कर दर के वर्ष 2021- 22 और 2022- 23 में और कम हो जाने की उम्मीद है। यह अध्ययन किए जाने की जरूरत है कि इसका निगमित कर पर क्या प्रभाव पड़ा और इसी को ध्यान में रखकर कराधान योजना के लक्ष्य तय किए जाने चाहिए।

एक और दिलचस्प आंकड़ा यह बताता है कि कैसे 500 करोड़ रुपये से अधिक का सालाना मुनाफा कमाने वाली कंपनियों की प्रभावी कर दर में सबसे ज्यादा कमी आई है और यह 2014-15 के 23 प्रतिशत से घटकर 2020-21 में 19 फीसदी रह गई है। केंद्र के कुल निगमित कर संग्रह में आधी से ज्यादा हिस्सेदारी उन कंपनियों की है जिनका सालाना लाभ 500 करोड़ रुपये से अधिक है। अगर उनकी प्रभावी कर दर और कम होती है तो समूचे कर संग्रह पर इसका असर काफी होगा।