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विभाजन की आग समानता का सब्ज बाग

सार

कांग्रेस आगे बढ़ने की बजाय लीक ही पकड़े हुए है. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस जीत के लिए लड़ रही है या मरे हुए मुद्दों को ही ढो रही है? 

janmat

विस्तार

    चुनाव में मुस्लिम लीग भले ही चुनाव न लड़ रही हो, लेकिन प्रचार अभियान में मुस्लिम लीग का बड़ा जोर दिखाई पड़ रहा है. कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टो में मुस्लिम पर्सनल लॉ का समर्थन क्या कर दिया है? बीजेपी ने कांग्रेस को मुस्लिम लीग से जोड़ दिया है. पीएम नरेंद्र मोदी हर सभा में कांग्रेस के मेनिफेस्टो को मुस्लिम लीग की छाप बता रहे हैं. तुष्टीकरण के जोश में कांग्रेस ने ऐसा होश खाया है, कि जिस मुद्दे के कारण कांग्रेस के लिए वर्तमान राजनीतिक हालात पैदा हुए हैं, वहीं तुष्टिकरण का मुद्दा जानबूझकर चुनाव में बीजेपी के सामने परोस दिया है. कांग्रेस तुष्टिकरण के विभाजनकारी मुद्दों से बच भी सकती थी लेकिन ऐसा लगता है,कि वामपंथ की भट्टी में कांग्रेस सब कुछ तबाह करने पर आमादा है. 

    कश्मीर फाइल्स और द केरला स्टोरी पहले से ही चुनाव में कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीतियों के दुष्परिणाम उजागर कर रही हैं. अब तो पार्टी मैनिफेस्टो में सीधे ही मुस्लिम पर्सनल लॉ का समर्थन करके समानता के अपने सब्जबाग को राजनीतिक अल्पसंख्यवाद के हवाले कर दिया है. कांग्रेस की तुष्टिकरण स्टोरी और कांग्रेस की ‘तुष्टिकरण फाइल्स’ ने अब तो उसे मुस्लिम लीग तक पहुंचा दिया है.

    चुनाव के समय ऐसा क्यों होता है, कि विभाजन के मुद्दे चारों तरफ से पूरे प्रचार अभियान को घेर लेते हैं. बिना सोचे समझे कई बार ऐसे मुद्दे उभर जाते हैं लेकिन इस बार तो कांग्रेस ने मेनिफेस्टो के बहाने सुनियोजित प्लानिंग के तहत तुष्टिकरण को अपना चुनावी  एजेंडा बनाया है.  कांग्रेस के चिंतक शायद अपने मुस्लिम जनाधार को पाने के लिए सहयोगी क्षेत्रीय दलों से आगे निकलने की होड़ में मुस्लिम लीग की सोच को भी मेनिफेस्टो में शामिल करने से परहेज नहीं किया. मुस्लिम लीग का नाम आते ही भारत के विभाजन का दर्द उभर जाता है. पाकिस्तान और जिन्ना भी मुस्लिम लीग के नाम के साथ ही हर भारतीय के मन को झकझोरने लगते हैं.

    मुस्लिम लीग भारत में बहुसंख्यकवाद का विरोध कर रही थी. इसीलिए धर्म के आधार पर मुसलमानों के लिए पाकिस्तान के निर्माण की मांग की थी.  कांग्रेस ने भी अपने मेनिफेस्टों में बहुसंख्यक वाद का विरोध किया है. कांग्रेस का कहना है कि भारत में तानाशाही या बहुसंख्यकवाद के लिए कोई जगह नहीं है. मुस्लिम लीग ने भी भारत में मुसलमानो  के लिए शरियत  कानून की बात कही थी और कांग्रेस ने भी मेनिफेस्टो में मुस्लिम पर्सनल लॉ का समर्थन किया है.

  मुस्लिम पर्सनल लॉ का समर्थन भारत में समान नागरिक संहिता (UCC) के विचार का विरोध कहा जा सकता है. भाजपा जहां भारत में समान नागरिक संहिता लागू करने का संकल्प व्यक्त कर रही है. वहीं कांग्रेस मुस्लिम पर्सनल लॉ का समर्थन करती है. बीजेपी ने बहुत राजनीतिक चातुर्य दिखाते हुए कांग्रेस के मेनिफेस्टो को मुस्लिम लीग का सोच बता कर चुनावी प्रचार अभियान को ऐसा मोड़ दे दिया है, कि कांग्रेस अब जवाब देने की स्थिति में नहीं लग रही है.

  राहुल गांधी ज़रूर स्थितियों को स्पष्ट करते हुए, ऐसा ट्वीट कर रहे हैं कि विभाजन उनकी सोच नहीं है. लेकिन एक देश में दो कानून विभाजन की सोच नहीं तो और क्या हो सकती है? 

     राजनीतिक अल्पसंख्यकवाद के कारण ही भारत में बहुसंख्यकवाद की राजनीति का उदय हुआ है. बहुसंख्यकों की राजनीतिक आवाज आज इतनी मुखर हो चुकी है, कि अब उस आवाज को विकास के उच्च दर से ही संतुलित किया जा सकता है. कांग्रेस विकास की बातें करने से ज्यादा अल्पसंख्यकवाद की अपनी राजनीतिक विरासत को ही आगे बढ़ाने में क्यों लगी हुई है, यह बात समझ से परे है.

   भारत में अल्पसंख्यक राजनीति भी नई करवट ले रही है. नॉर्थ ईस्ट में बीजेपी ईसाई समुदाय के बीच अपनी पकड़ बना चुकी है. केरल में ईसाई समुदाय बीजेपी के साथ जुड़ता जा रहा है. लव जिहाद पर आधारित द केरल स्टोरी फिल्म का सार्वजनिक प्रदर्शन चर्च में करने की सूचनाएं अल्पसंख्यकों में भी विभाजन को रेखांकित कर रही है. मुस्लिम पर्सनल लॉ का समर्थन करके कांग्रेस ने दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों को भी निराश किया है.

    CAA के मामले में कांग्रेस का स्टैंड भी मुस्लिम अल्पसंख्यकों की उनकी तुष्टिकरण नीति को ही प्रदर्शित कर रहा है. CAA के अंतर्गत पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए, हिंदू सिख बौद्ध, जैन, पारसी समुदाय के शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है.कांग्रेस और उसके सहयोगी दल इस कानून का इसलिए विरोध कर रहे हैं, कि इसमें मुसलमान को छोड़ दिया गया है.जब मुसलमान को उनके धर्म के आधार पर पाकिस्तान राष्ट्र ही दे दिया गया है, तो फिर इस्लामिक राष्ट्र से धार्मिक आधार पर प्रताड़ित होकर इस समुदाय के लोगों को शरणार्थी बनने की आवश्यकता ही क्यों पड़ेगी? कांग्रेस का अल्पसंख्यक सियासी ज़िहाद कांग्रेस में मुस्लिम लीग की जड़ों को मजबूती दे रहा है.जो जड़ें कांग्रेस के पतन के लिए जिम्मेदार कहीं जा सकती हैं? उन्हीं को फिर से पानी देकर हरा-भरा करने की कोशिश कांग्रेस में हरियाली नहीं ला सकेगी. 

    कांग्रेस के मेनिफेस्टो पर मुस्लिम लीग की छाप का आरोप ऐसा चश्मा हो गया है, कि इससे बाहर निकलना, कांग्रेस के लिए कम से कम इस चुनाव में बहुत कठिन है. इसका कारण शायद यह रहा है, कि कांग्रेस की नीतियां पहले से ही लोगों को यह विश्वास दिला रही थी, कि कांग्रेस तुष्टिकरण के राजनीति में सलंग्न है.  मेनिफेस्टो में स्पष्ट घोषणा के बाद तो मुस्लिम लीग की सोच वाली कांग्रेस के अलावा दूसरा शब्द दिया भी नहीं जा सकता है. 

    राहुल गांधी भारत में आग लगने की बात हमेशा कहते रहे हैं. कभी कहते हैं, कि पूरे देश में केरोसिन डाल दिया गया है! केवल एक तीली लगाने की जरूरत है. कभी कहते हैं, कि चुनाव परिणाम अगर एनडीए के पक्ष में आए तो भारत का संविधान नहीं बचेगा. भारत के टुकड़े टुकड़े होने की बात भी राहुल गांधी अपनी सभा में करते हैं. भारत को जोड़ने और भारत को न्याय दिलाने के बात भी यात्राओं में करने वाले राहुल गांधी, मुस्लिम पर्सनल लॉ का  समर्थन करते हैं.

    कांग्रेस समानता का सब्ज़बाग दिखाती है और देश को विभाजन की आग में झौंकने के लिए वायदे और नीतियां घोषित करती है. कांग्रेस जागते हुए भी तुष्टीकरण के सपने में ऐसी खोई है, कि मुस्लिम लीग की कॉपी बनती जा रही है. सबको न्याय और भारत को जोड़ने की बातें और अल्पसंख्यक सियासी जिहाद के इरादे, राजनीतिक पाखंड और दोहरेपन की पराकाष्ठा कहे जा सकते हैं. मुस्लिम लीग के लक्षण कांग्रेस में गंभीर बीमारी का संकेत कर रहे हैं. भारत तो यह बीमारी महसूस कर रहा है लेकिन कांग्रेसजन शायद बीमारी में ही अपना भविष्य तलाश रहे हैं. 

    अतीत में डूबे कांग्रेस के भविष्य को भारत का भविष्य बनाने की कोशिश, अब किसी लीग के बस में नहीं है. भारत की राजनीतिक चेतना अपने शिखर की तरफ बढ़ती जा रही है. एक बार जब चेतना का उर्धगमन हो जाता है, तो फिर उसे नीचे लाना मुश्किल होता है. कांग्रेस का मुस्लिम पॉलिटिकल लीग, IPL जैसा मनोरजक ही साबित होगा. कांग्रेस यदि जाग जाए तो बेहतर. क्यूंकि भारत तो जाग चुका और आगे भी बढ़ चुका है.