मुफ्त सिलेंडर मुहैया कराने के मुद्दे पर सभी खामोश हैं..!
यह देश सकल अर्थव्यवस्था के लिए ये शुभ संकेत नहीं हैं।यह विडंबना और दुर्भाग्य है कि मुफ्तखोरी के चुनावी वायदों और उनमें फंसी विभिन्न राज्यों की ही नहीं, बल्कि देश की बदहाल होती अर्थव्यवस्था का विश्लेषण करना पड़ रहा है। होली का मौका है। रंगों और उल्लास के इस पर्व पर खुद प्रधानमंत्री मोदी ने ‘मुफ्त रसोई गैस सिलेंडर’ मुहैया कराने का चुनावी वायदा किया था। होली के साथ-साथ दीपावली का भी वायदा किया गया था। इस आलेख के लिखने तक सरकार ने कुछ भी नहीं कहा है।
मुफ्त सिलेंडर मुहैया कराने के मुद्दे पर सभी खामोश हैं। दिल्ली एक अर्ध राज्य है। केंद्र की ‘उज्ज्वला गैस’ योजना के लाभार्थी करीब 2.5 लाख हैं। दिल्ली में गैर सबसिडी वाले सिलेंडर की कीमत 803 रुपए है। इस अर्ध राज्य की औसत प्रति व्यक्ति आय 4.60 लाख रुपए से अधिक है।
अनुमान है कि यदि मुफ्त सिलेंडर बांटे जाएं, तो 30 करोड़ रुपए के करीब खर्च होगा। यह पहली बार होगा कि जब 24-25 मार्च को विधानसभा में बजट पेश किया जाएगा, तो वह घाटे का बजट होगा। सवाल यह है कि दिल्लीवालों को मुफ्त गैस सिलेंडर क्यों दिया जाए? उन्हें कुछ भी मुफ्त क्यों दिया जाए, यहां तक कि 2500 रुपए भी क्यों दिए जाएं? यह चुनावी वायदा ही एक किस्म की घूस है।
राजनीतिक दल देश की अर्थव्यवस्था को दिवालियापन की ओर धकेलने की साजिश में संलिप्त हैं।उनके खिलाफ आपराधिक केस दर्ज किए जाने चाहिए। ऐसा नहीं है कि सरकारों के पास प्रख्यात अर्थशास्त्री नहीं हैं अथवा सरकारों ने अर्थव्यवस्था के ऐसे मॉडल पर उनके परामर्श ही नहीं लिए। दरअसल यह पूरी रणनीति झूठ बोल कर, लालच परोस कर, खोखले वायदों पर आकर्षित कर चुनाव जीतने की है। उसके बाद बिन जवाबदेही की पांच साला सत्ता है।
कमोबेश देश के मतदाताओं को यह शातिर रणनीति अब समझनी चाहिए। दिल्ली ही नहीं, उप्र में भी ‘मुफ्त सिलेंडर’ का वायदा किया गया था। उसके लिए 1890 करोड़ रुपए की सबसिडी का कोष तय किया गया है। उप्र सरकार जनता को यह भी बता दे कि उस पर 4.5 लाख करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज है। महाराष्ट्र में ‘लाडकी बहीण’ योजना पर भाजपा-महायुति को प्रचंड बहुमत मिला था, जबकि ऐसे आसार नहीं थे। अब बजट पेश किया गया है, तो इस योजना का फंड 10,000 करोड़ रुपए घटाना पड़ा है। लाभार्थी करीब 2.5 करोड़ महिलाएं थीं।
वह संख्या भी घटा कर 1.5 करोड़ करनी पड़ी है। महाराष्ट्र पर 9.3 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। कुछ और बड़ी तथा महत्वपूर्ण योजनाओं पर भी 10-13 फीसदी खर्च कम करना पड़ा है। तेलंगाना का उदाहरण अजीब है। वहां फरवरी, 2025 में ही महिलाओं को 2500 रुपए देने की घोषणा की गई और मार्च में ही मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी प्रलाप कर रहे हैं कि राज्य के पास पैसा ही नहीं है। विकास कार्यों के लिए सिर्फ 5000 करोड़ रुपए सरकार के पास शेष हैं, लिहाजा इस मुद्दे पर ‘राष्ट्रीय बहस’ होनी चाहिए। यह किसी अकेले के बूते की समस्या नहीं है। बहरहाल, भारत की सकल अर्थव्यवस्था के लिए ये शुभ संकेत नहीं हैं।