चरम गर्मी के मौसम में भी महंगाई कंपकपी पैदा कर रही है| आम उपभोक्ता, बाजार में रोजमर्रा की महंगाई से त्रस्त हो गया है| महंगाई, ऊपर से बेकारी, इसके बीच विभिन्न राजनीतिक दलों में महंगाई कम करने का श्रेय लेने की लड़ाई, देश को न मालूम कहां पहुंचाएगी| राजनीतिक लड़ाई और बयानबाजी से महंगाई कैसे कम होगी| जनता की भलाई से ज्यादा राजनीतिक लड़ाई का बोलबाला दिखाई पड़ता है..!
पेट्रोल डीजल पर टैक्स को लेकर राज्य और केंद्र सरकार कई बार आमने सामने आये हैं| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राज्यों को वैट कम कर जनता को राहत पहुंचाने की अपील पर विवाद शुरू हो गया है| प्रधानमंत्री का कहना है कि केंद्र ने पेट्रोलियम पदार्थों पर पिछले नवंबर में उत्पाद शुल्क कम कर दिया था|
कुछ राज्यों ने विशेषकर भाजपा शासित राज्यों ने पेट्रोल डीजल पर वेट कम कर जनता को राहत पहुंचाई थी| लेकिन कई राज्यों ने वैट में कमी नहीं की| पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, राजस्थान तेलंगाना, केरल, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में पेट्रोल डीजल पर वैट कम नहीं किया गया| कम से कम टैक्स और देश की अर्थव्यवस्था, महंगाई और जनता के बुनियादी मुद्दों पर तो राजनीति नहीं होना चाहिए| लेकिन ऐसा लगता है कि मूल मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए सभी राजनीतिक दल आपस में राजनैतिक घेराबंदी शुरू कर देते हैं|
कोरोना की आशंका पर राज्यों के मुख्यमंत्रियों से चर्चा में प्रधानमंत्री पेट्रोल डीजल पर टैक्स कम करने का मुद्दा उठाया| जिन राज्यों में वैट कम नहीं किया गया उनमें प्रमुख राज्य गैर भाजपा शासित हैं| पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भेदभाव का आरोप लगाया है| उनका कहना है कि जीएसटी में राज्यों का हिस्सा केंद्र के पास बकाया है|
राज्यों में वैट और जीएसटी के अलावा बिजली चोरी और सरकारी खर्चों में रोक लगाने के कोई प्रयास नहीं किए जाते| राज्य सरकारें मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए फ्री योजनाएं लागू करती हैं| सरकारों का स्थापना खर्च इतना ज्यादा है कि कर्ज लेकर काम चलाना पड़ता है| राज्यों में पूंजीगत व्यय कर्ज की तुलना में कम होता है| टैक्स के मामले में चाहे जीएसटी हो या वैट केंद्र और राज्य सरकारों ने इसे मूल्य आधारित बना दिया है| इसके कारण जनता के साथ अन्याय हो रहा है| कच्चे तेल के दाम जब बढ़ते हैं तब पेट्रोल डीजल की बढ़ी हुई कीमतों पर मूल्य पर प्रतिशत में टैक्स बढ़ जाता है|
कई राज्य सरकारें जिन्होंने वैट नहीं घटाया है वह यह तर्क दे रही हैं कि पिछले 6 सालों से राज्य में टैक्स नहीं बढ़ाया गया है जो पूरी तरह से गलत है| वैट टैक्स परसेंटेज में लगता है तो जैसे ही मूल्य बढ़ेगा वैसे ही परसेंटेज में टैक्स ऑटोमेटिक बढ़ जाता है|
आज पूरी दुनिया में अर्थव्यवस्था बिगड़ रही है| मुद्रास्फीति बढ़ती जा रही है| लोगों की क्रय शक्ति कम होती जा रही है| सरकारों के खर्चे बेतहाशा बढ़ते जा रहे हैं| जबकि राज्य सरकारें सरकारी रिक्त पदों को नहीं भर रही है| चाहे केंद्र हो या राज्य सभी के खजाने टैक्स से की कमाई से लबालब भरे हुए हैं| जनता की जेब लगातार खाली होती जा रही है| महंगाई बढ़ती है तब भी टैक्स के रूप में सरकारों की कमाई बढ़ती है|
केंद्र और राज्य सरकारों के कर्मचारियों को प्राइस इंडेक्स के आधार पर महंगाई भत्ता दिया जाता है| केंद्र सरकार ने जितना महंगाई भत्ता अपने कर्मचारियों और पेंशनर्स को दिया है| वह राज्यों में बराबर नहीं दिया जाता| मध्यप्रदेश में ही देखे तो कर्मचारियों को तो DA मिल गया है लेकिन पेंशनर्स को DA नहीं दिया गया| महंगाई के इस दौर में रेगुलर और रिटायर्ड कर्मचारियों के बीच इस तरह का भेदभाव क्या किसी सरकार को करना चाहिए? सरकारें अपनी अर्थव्यवस्था संभाल नहीं पा रही हैं| बेतहाशा खर्चे कर रही हैं|
पेट्रोल डीजल की महंगाई के कारण परिवहन लागत बढ़ती है और इससे बाजार में सभी वस्तुएं महंगी हो जाती है| रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के कारण कुछ सप्लाई चैन भी प्रभावित हो रही हैं| जिसके कारण ही महंगाई को बढ़ावा मिल रहा है| अब तो जनता को ऐसा लगने लगा है कि शायद महंगाई नियंत्रित करना किसी सरकार की नीति की बात बची ही नहीं है|
सरकारें सरकारी धन को लुटाने में सोच विचार नहीं करती| जिस पर भी पैसा खर्च किया जा रहा है उसकी क्या उपयोगिता है? इससे जनता को क्या लाभ होने वाला है? इस पर विचार करने की बजाये सरकारों के मुखिया अपनी पसंद नापसंद के मुताबिक धन खर्च करने की प्रवृत्ति पर काम कर रहे हैं|
ये किसी एक राज्य का मामला नहीं है| कमोबेश सभी राज्यों में वित्तीय हालात अच्छे नहीं है| जनता से टैक्स के नाम पर तो जमकर वसूली होती है लेकिन उस राशि में चुनावी लाभ से जुड़े कामों को प्राथमिकता दी जाती है| कई वर्ग लाभान्वित होते हैं और कई वर्गों को नुकसान उठाना पड़ता है|
आज दुनिया के कई देश कर्ज के दलदल में डूब गए हैं| उनकी अर्थव्यवस्था चरमरा गई है| श्रीलंका की हालात तो भयावह हो गए हैं| भारत के कई राज्यों में स्थिति चिंताजनक हो गई है| आर्थिक मामलों में भी सरकारें इसी तरह से राजनीति को महत्व देती रही तो सरकारी व्यवस्था प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकती| महंगाई रोकने के लिए शायद किसी के पास कोई दवाई अब बची नहीं है|
आर्थिक मामलों को दलीय राजनीति से ऊपर रखते हुए राज्यों को अपनी वित्तीय स्थितियों को जनता के सामने रखना चाहिए, ताकि जनता को मालूम चले कि उनकी चुनी हुई सरकार जनता के धन को कैसे खर्च कर रही है? इतनी पारदर्शिता लाने के बाद ही जनता भी सरकारों की मजबूरी समझ सकेगी और सरकारों को भी अनावश्यक खर्चों को कम करने के लिए सही मार्गदर्शन मिल सकेगा|