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पाक के जन्म से सब सही हुआ होता, तो हम सुपर पावर होते

सार

भारत-पाकिस्तान के बीच सैन्य कार्रवाई रुक चुकी है. ऑपरेशन सिंदूर अपने लक्ष्य हासिल कर चुका है. अब भारत में सोशल मीडिया पर राजनीतिक वॉर शुरू हो गया है. भारत के वर्तमान नेतृत्व को कमजोर साबित करने के लिए आयरन लेडी इंदिरा गांधी के भाषण और 1971 की जंग बांग्लादेश के निर्माण के वीडियो वायरल किए जा रहे हैं..!!

janmat

विस्तार

    सरकार से जंग रोकने के सीक्रेट पूछे जा रहे हैं. बातें तो सेना को सेल्यूट की हो रही हैं, लेकिन सरकार से सवाल वास्तविक राजनीतिक मंशा उजागर कर रहे हैं.

    भारत के फौलादी नेतृत्व और सेना के फौलादी अटैक से पाकिस्तान डरा हुआ है. लेकिन भारत के राजनीतिक दलों द्वारा इसमें कमजोरी देखी जा रही है. सेना और भारत सरकार द्वारा युद्ध विराम के पीछे किसी भी प्रकार की मध्यस्थता से इनकार के बावजूद बार-बार अमेरिका और ट्रंप का नाम लेकर देश के वर्तमान नेतृत्व को कमजोर बताने की राजनीति खेली जा रही है. इसके लिए अतीत का कुंठित बखान किया जा रहा है.

    दुनिया ने पहली बार भारत के फौलादी नेतृत्व की दृढ़ता देखी है, सेना की फौलादी क्षमता और दक्षता आंकी है. भारत निर्मित हथियारों पर दुनिया की रुचि बढ़ गई है. परंतु भारत की राजनीति में वही सब हो रहा है, जैसा हमेशा से होता रहा है.

    कांग्रेस सोशल मीडिया पर लगातार ऐसे वीडियो प्रायोजित कर रही है, जो इंदिरा गांधी द्वारा लड़े गई युद्ध और उनके एक्शन को प्रचारित कर रहे हैं. इसका मोटिव है, कि इतिहास की बात कर वर्तमान को नकारा जाए. जब भी इतिहास की बात होगी तो उसे वर्तमान पर ही आंका जाएगा. कश्मीर के मुद्दे पर यूएनओ में जाने की शुरुआत पंडित जवाहरलाल नेहरू ने की थी. यह भी ऐतिहासिक तथ्य है, कि लॉर्ड माउंटबेटन के सुझाव पर उन्होंने ऐसा किया था. इसका सीक्रेट अभी तक देश को नहीं मालूम कि ऐसा क्यों किया गया था. जबकि भारतीय सेनाओं ने पूर्ण जम्मू-कश्मीर को कब्जे में ले लिया था.

    इंदिरा गांधी की दृढ़ता और बहादुरी पर कोई सवाल नहीं है. उन्होंने कई गौरवशाली काम किए तो इमरजेंसी लगाकर डेमोक्रेसी को कुचलने का अतीत भी उनसे जुड़ा हुआ है. 1971 की जंग में भारतीय सेना ने लाहौर तक कब्जा कर लिया था. यह सीक्रेट अब तक नहीं पता है, कि इसके बाद शिमला समझौते में इंदिरा गांधी ने सेनाओं को क्यों पीछे किया. युद्ध बंदियों को क्यों छोड़ा गया. जहां तक बांग्लादेश बनाने का सवाल है, निश्चित रूप से यह उनकी बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है. 

    इतिहास की इस उपलब्धि को अगर वर्तमान की नजर से देखा जाएगा, तो आज भारत के लिए पाकिस्तान और बांग्लादेश में कोई अंतर नहीं है. बांग्लादेश भारत के साथ मित्रता नहीं निभा रहा है. जिस मुजीबुर्रहमान ने नए देश का निर्माण किया, उस महानायक की स्मृतियों को ही नेस्तनाबूद  कर दिया गया है. फिर इंदिरा गांधी के सहयोग को कौन याद कर रहा है. बांग्लादेश तो नहीं याद कर रहा है, केवल कांग्रेस इसका बखान कर रही है. बांग्लादेशियों की घुसपैठ की समस्या आज भारत के लिए चुनौती बनी हुई है.

    अब तो ऐसा लगने लगा है, कि पाकिस्तान से बांग्लादेश के अलग होने पर पाकिस्तान को नुकसान नहीं बल्कि फायदा पहुंचा था. अगर बांग्लादेश पाकिस्तान के साथ होता तो शायद पूरा पाकिस्तान अपने अंदरूनी संघर्ष के कारण अब तक बर्बाद हो चुका होता. बांग्लादेश बनाने से तो पाकिस्तान को राहत मिली थी. आज भारत के लिए बांग्लादेश और पाकिस्तान में कोई भी अंतर नहीं है. दोनों भारत के लिए समस्याएं पैदा करने में पीछे नहीं हैं.

    कांग्रेस, अमेरिका और राष्ट्रपति ट्रंप की मध्यस्थता और भारत पाकिस्तान में समझौता करने की बात को पीएम नरेंद्र मोदी की कमजोरी के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रही है. सेना और विदेश मंत्रालय की ओर से स्पष्टता के साथ कह दिया गया है, कि सैन्य कार्रवाई रोकने के पीछे केवल दोनों देशों के बीच सेना के लेबल पर ही कम्युनिकेशन हुआ है. पीएम नरेंद्र मोदी और सेना ने भी साफ कहा है, कि ऑपरेशन सिंदूर ऑनगोइंग है. आतंकवादियों के खिलाफ़ भारत का युद्ध ना रुका है और न रुकेगा.

    हर युद्ध अलग होता है. किसी एक युद्ध की दूसरी युद्ध से तुलना नहीं की जा सकती. इंदिरा गांधी ने जब पाकिस्तान से सीमा पर लड़ाई लड़ी थी, तब वह देश न्यूक्लियर पावर नहीं था. ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने पहली बार पाकिस्तान के भीतर घुसकर उसके सीने पर वार किया है. सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के बाद ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम देने का साहस पीएम नरेंद्र मोदी ने ही दिखाया है. भारत का यह ऐसा ऑपरेशन है जिसमें केवल पाकिस्तान को ही छलनी नहीं किया गया है, बल्कि पूरी दुनिया को भारत की सैन्य ताकत प्रदर्शित कर दी गई है. कांग्रेस जो भी सवाल कर रही है उसके उत्तर उसके पूर्वजों के इतिहास में ही छिपे हैं. 

    कांग्रेस अमेरिका की मध्यस्थता स्वीकारने का आरोप लगा रही है. इसका मतलब है कि वर्तमान कांग्रेस को इंदिरा गांधी के शिमला समझौते का ज्ञान नहीं है. इस समझौते में ही लिखा हुआ है, कि भारत पाकिस्तान के बीच कश्मीर द्विपक्षीय मुद्दा है. इस पर किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं होगी. शिमला समझौते की नीति ही अब तक भारत सरकार की नीति है. इसे मोदी सरकार ने भी नहीं बदला है. फिर कांग्रेस के सवाल का कोई भी औचित्य नहीं है. 

    कांग्रेस यह पचा नहीं पा रही है, कि पीएम नरेंद्र मोदी ने और भारत की सेनाओं ने अपने फौलादी इरादों का पाकिस्तान पर प्रदर्शन किया. फौलादी हमले ने पाकिस्तान को बर्बाद किया गया. अब तो यहां तक सामने आ रहा है, कि पाकिस्तान के परमाणु ठिकाने से लीकेज की खबरें हैं. पीएम नरेंद्र मोदी का न्यूक्लियर पावर की ब्लैकमेलिंग बर्दाश्त नहीं करने का ऐलान, उनके फौलादी नेतृत्व को प्रमाणित करता है.

     इंदिरा गांधी को आयरन लेडी का संबोधन अमेरिका की विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने दिया था. यह कोई ख़िताब नहीं है. ब्रिटेन की महारानी मार्ग्रेट थ्रेचर को मूल रूप से यह ख़िताब मिला है. अमेरिका के संबोधन को कांग्रेस लगातार ढ़ोए जा रही है. जो अमेरिका की बातों को अभी भी अपने साथ चिपकाए हुए है, उसे अगर युद्ध विराम में अमेरिका की मध्यस्थता दिख रही है, तो यह उसकी प्रॉब्लम हो सकती है. देश की यह प्रॉब्लम नहीं है.

    भारत को पीएम के फौलादी नेतृत्व पर पूरा भरोसा है. फौलादी सेनाओं ने भारत की ताकत दुनिया को दिखा दी है. लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल गुजरात से आते थे. यह संयोग है कि देश का वर्तमान फौलादी नेतृत्व नरेंद्र मोदी भी गुजरात से जाते हैं. 

    आयरन और फौलाद एक ही है. उसमें कुछ तुलना नहीं हो सकती. केवल क्वालिटी के ग्रेडिंग का अंतर है. फौलाद हाई क्वालिटी है. इसी से युद्ध के हथियार बनते हैं. फौलादी विचार ही नेतृत्व बनते हैं. नरेंद्र मोदी ने अपना फौलादी नेतृत्व हर बार प्रूफ किया है. देश के मेंडेट ने भी हर बार इसी पर मुहर लगाई है.जिनको इतिहास में जीना है वह वर्तमान देख ही नहीं सकते. पाक के जन्म से ही अगर सब सही ढंग से किया गया होता तो भारत आज सुपर पावर होता. यही भारत का भविष्य है.