• India
  • Tue , Jul , 01 , 2025
  • Last Update 06:57:PM
  • 29℃ Bhopal, India

जय हो देश के रक्षा मंत्री जी 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Tue , 01 Jul

सार

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत आतंकवाद के प्रति ‘शून्य सहिष्णुता’ का पक्षधर देश है..!

janmat

विस्तार

भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बिल्कुल ठीक किया। ऐसे ‘साझा बयान’ पर हस्ताक्षर नहीं किए, जो चीन और पाकिस्तान के नापाक गठजोड़ का दस्तावेज था और आतंकवाद पर नजरिया एकतरफा था। ‘सीमापार आतंकवाद’ पर भारत के नजरिए को नकारा नहीं जा सकता। ‘शंघाई सहयोग संगठन’ (एससीओ) किसी का निजी संगठन नहीं है। चीन, भारत, पाकिस्तान समेत 10 देशों के रक्षा मंत्रियों का सम्मेलन था, लिहाजा सभी के सरोकार और खासकर आतंकवाद पर उनकी चिंताओं को ‘साझा बयान’ में शामिल किया जाना चाहिए था, लेकिन भारत के पहलगाम नरसंहार का उल्लेख तक नहीं किया गया। कश्मीर के उस खूबसूरत क्षेत्र में आतंकियों ने पर्यटकों का ‘धर्म’ पूछा और हिंदू होने पर गोली मार दी। इस तरह 26 मासूम, बेकसूर लोगों की हत्या कर दी गई। उसकी प्रतिक्रिया में भारत को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू करना पड़ा, करीब 170 आतंकियों को ढेर किया गया और उनके अड्डों को ‘मिट्टी-मलबा’ कर दिया गया।

यदि एससीओ आतंकवाद पर कुछ टिप्पणी करना चाहता था, आतंकवाद की निंदा करते हुए उसे खारिज करना चाहता था, तो ‘साझा बयान’ के दस्तावेज में ‘पहलगाम नरसंहार’ का जिक्र क्यों नहीं किया गया? यह दोगली रणनीति लगती है। यहीं चीन और पाकिस्तान की आतंकवाद पर नीयत और दृष्टि साफ हो जाती है, लिहाजा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को कलम नीचे रखनी पड़ी और उन्होंने हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया। नतीजतन रक्षा मंत्री सम्मेलन ‘साझा बयान’ के बिना ही सम्पन्न करना पड़ा। भारत के रक्षा मंत्री ने सीमापार आतंकवाद के पनाहगारों, आयोजकों, वित्तपोषकों और प्रायोजकों को जवाबदेह ठहराने और उन्हें न्याय के कठघरे तक घसीट कर लाने की बात कही। उन्होंने आतंकवाद की प्रत्येक साजिश और हरकत को आपराधिक और अनुचित करार दिया। एससीओ का उद्देश्य आतंकवाद सरीखे मुद्दों पर साझा रणनीति तय करना है। दस्तावेज में बलूचिस्तान की कथित आतंकी गतिविधियों, जाफर एक्सप्रेस टे्रन पर आतंकी हमले, को शामिल किया गया है, लेकिन पहलगाम नरसंहार को नजरअंदाज किया गया है। भारत को यह स्वीकार्य नहीं था। दुनिया पाकिस्तान के आतंकी रिकॉर्ड को अच्छी तरह जानती है।

बलूचिस्तान पाकिस्तान का ही हिस्सा है। बलूच आर्मी के लड़ाके, हुकूमत के खिलाफ, विद्रोह कर रहे हैं, लेकिन उसे भारत द्वारा प्रायोजित आतंकवाद करार देना खोखला आरोप है। ऐसे संगठन के विमर्श का मजाक उड़ाना है। चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी पाकपरस्त आतंकियों को बचाता रहा है। यदि वह नापाक गठजोड़ एससीओ में भी जारी रहा है, तो साफ मायने हैं कि ऐसे अंतरराष्ट्रीय संगठन अपने घोषित मकसद से भटक रहे हैं। क्या चीन के लिए आतंकवाद एक ‘रवायती शब्द’ है अथवा वह भी आतंकवाद पर गंभीर देश है? एससीओ का रक्षा मंत्री सम्मेलन ऐसा पहला अवसर था, जब आतंकवाद पर पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा किया जा सकता था। हालांकि इसकी उम्मीदें कम ही थीं, क्योंकि चीन पाकिस्तान की पीठ थपथपाता रहा है। एससीओ में भी यही हुआ। भारत जिस आतंकवाद से संत्रस्त रहा है, उसका केंद्र पाकिस्तान ही है और पाकिस्तान का सदाबहार मित्र चीन है।

फिर चीन पाकिस्तान की गर्दन पर पांव रख कर आगे नहीं बढ़ सकता था, जबकि भारत चीन के साथ भी वैश्विक प्रगति के लिए कदम बढ़ाता रहा है। दरअसल चीन पाकिस्तान की हकीकत नहीं देखना चाहता। हकीकत न देखने की गलती पाकिस्तान ने भी की थी, लिहाजा आज वह कर्ज, गरीबी, भुखमरी, महंगाई की जकडऩ में है। आतंकवाद का समर्थन करते हुए यह देश अन्य देशों की दया पर आश्रित होता जा रहा है। भारत का रुख सही है।

आज की गलाकाट प्रतियोगिता के दौर में भी भारत ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का संदेश देने में समर्थ है और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में विश्वास रखता है। वहां आतंकवाद की कोई गुंजाइश नहीं है। वैश्विक तौर पर देखें, तो अमरीका, यूरोपीय देश और चीन आतंकवाद पर भारतीय नजरिए के प्रति संवेदनशील नहीं हैं, लेकिन जब अमरीका में 9/11 आतंकी हमला किया गया था, तब भारत को ही याद किया गया था कि इस आतंकवाद से कैसे निपटें! रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत आतंकवाद के प्रति ‘शून्य सहिष्णुता’ का पक्षधर देश है। इसमें आतंकवाद के खिलाफ खुद का बचाव करने का भारत का अधिकार भी शामिल है।