कोर्ट का मानना है कि कानूनी खर्च के लिए 15 लाख रुपये की मंजूरी को सार्वजनिक उद्देश्य के लिए किए गए खर्च के रूप में नहीं देखा जा सकता है..!
High Court ने IAS अधिकारी को एक पत्रिका के खिलाफ मानहानि मामले में कानूनी खर्चों को पूरा करने के लिए राज्य सरकार द्वारा स्वीकृत 15 लाख रुपये 90 दिनों में वापस जमा करने का निर्देश दिया है। Telangana High Court का मानना है कि कानूनी खर्च के लिए 15 लाख रुपये की मंजूरी को सार्वजनिक उद्देश्य के लिए किए गए खर्च के रूप में नहीं देखा जा सकता है।
इससे पहले दो जनहित याचिकाएं, अगस्त 2015 में जारी तेलंगाना सरकार के आदेश (GO) को चुनौती देते हुए दायर की गई थीं, जिसमें 2000 बैच की IAS Smita Sabharwal को एक समाचार रिपोर्ट प्रकाशित करने के लिए पत्रिका के प्रबंधन के खिलाफ हर्जाने की मांग के लिए दीवानी मुकदमा दायर करने के लिए अदालत शुल्क और खर्च के भुगतान के लिए राशि दी गई थी। उनका आरोप था कि जून 2015 के अंक में न्यूज वीकली ने एक कार्टून के साथ खबर छाप कर कथित तौर पर उन्हें बदनाम किया था। IAS Smita Sabharwal 2000 सिविल सर्विसेज परीक्षा में चौथे रैंक पर थीं।
जनहित याचिकाओं को स्वीकार करते हुए, मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति अभिनंद कुमार शाविली की खंडपीठ ने (हाल ही में आदेश में) IAS Smita Sabharwal को आदेश की तारीख से 90 दिनों के भीतर सरकार द्वारा स्वीकृत 15 लाख रुपये वापस करने का निर्देश दिया। आदेश में कहा गया है कि यदि उक्त राशि 90 दिनों के भीतर अधिकारी द्वारा वापस नहीं की जाती है, तो राज्य उससे 30 दिनों की अवधि के भीतर वसूली सुनिश्चित करेगा।
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि यह एक ऐसा मामला है जहां IAS अधिकारी ने एक निजी कार्यक्रम में भाग लिया था, पत्रिका द्वारा एक लेख प्रकाशित किया गया था और अधिकारी और मुख्यमंत्री के खिलाफ कुछ टिप्पणियां की गई थीं। यह मुद्दा तब उठा जब साप्ताहिक पत्रिका द्वारा सभरवालों (उनके आईपीएस पति और खुद) की फैशन डिजाइनर अभिषेक दत्ता द्वारा 18 जून, 2015 को एक होटल में आयोजित फैशन शो में उनकी उपस्थिति पर एक व्यंग्यात्मक लेख प्रकाशित किया था। IAS तब अतिरिक्त सचिव के रूप में मुख्यमंत्री कार्यालय में काम कर रही थीं(अब वह एक सचिव हैं)।
समाचार रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद सभरवाल ने सरकार को पत्र लिखकर कहा था कि वे पत्रिका के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर कर 10 करोड़ रुपये का हर्जाना मांगना चाहती है। राज्य ने भी महसूस किया कि एक अधिकारी पर आरोप लगाना राज्य पर हमला था और तदनुसार 15 लाख रुपये वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए शासनादेश जारी किया गया था। दायर रिट याचिका में सार्वजनिक धन को इस तरह खर्च करने में राज्य की कार्रवाई के पीछे के तर्क पर सवाल उठाया गया था।
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि हालांकि अनुच्छेद 282 राज्य को सार्वजनिक उद्देश्य के लिए इस तरह के फंड देने की अनुमति देता है, लेकिन मौजूदा मामले को सार्वजनिक उद्देश्य के रूप में नहीं देखा जा सकता है क्योंकि न तो फैशन इवेंट और न ही इसमें अधिकारी की भागीदारी को “एक सार्वजनिक कार्य” की तरह देखा जा सकता है।