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कैसे रुके डॉक्टरों का ब्रेन ड्रेन ?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Thu , 27 Jul

सार

सबसे अधिक डॉक्टरों के ब्रेन ड्रेन वाले देश ग्रेनाडा के दस हजार डॉक्टरों के विदेशों में पलायन और कोरोना महामारी के प्रकोप ने जब उस देश को हिला कर रख दिया तो ग्रेनाडा को अपने चिकित्सकों को विदेशों से वापस बुलाने तक का निर्णय करना पड़ा..!

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विस्तार

भारत से डॉक्टरों का ब्रेन ड्रेन यानी प्रतिभा पलायन इस मायने में महत्वपूर्ण और गंभीर हो जाता है कि देश को चिकित्सकों की आज भी बेहद कमी का सामना करना पड़ रहा है।भारत को ग्रेनाडा से सबक़ लेना चाहिए। सबसे अधिक डॉक्टरों के ब्रेन ड्रेन वाले देश ग्रेनाडा के दस हजार डॉक्टरों के विदेशों में पलायन और कोरोना महामारी के प्रकोप ने जब उस देश को हिला कर रख दिया तो ग्रेनाडा को अपने चिकित्सकों को विदेशों से वापस बुलाने तक का निर्णय करना पड़ा। 

भारत के भी करीब 75 हजार डॉक्टर्स ओईसीडी यानी कि आर्थिक सहयोग व विकास संगठन से जुड़े देशों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। देश के सबसे बड़े दिल्ली के एम्स है जहां पिछले दस माह में 7 विशेषज्ञ डॉक्टरों ने किसी ना किसी कारण से सेवाएं देना बंद कर दिया है। आज दस हजार से अधिक लोगों को प्रतिदिन सेवाएं देने वाले एम्स में ही 200 डॉक्टर्स की कमी चल रही है। यह तो एक मिसाल मात्र है। इसमें कोई दो राय नहीं कि हमारे चिकित्सक अपनी काबिलियत और विशेषज्ञता के कारण ही विदेशों में अपनी पहचान बनाए हुए हैं और एक मोटे अनुमान के अनुसार ओईसीडी देशों में रह रहे 75 हजार डॉक्टरों में से करीब दो तिहाई डॉक्टर्स तो अमेरिका में ही अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

दूसरी तरफ़ सरकारी व गैरसरकारी प्रयासों से अस्पतालों में वेंटिलेटर, ऑक्सिजन कन्सन्ट्रेट आदि की जरूरत को पूरा करने के प्रयास कि हुए पर आज भी प्रशिक्षित मैनपावर की कमी के कारण इन उपकरणों का सही उपयोग नहीं होना दुर्भाग्यपूर्ण ही माना जाएगा। यदि हम ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण करें तो देश में शहरी क्षेत्र में तो कमी है ही पर ग्रामीण क्षेत्र के हालात अधिक चिंताजनक हैं। ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी 2021-22 की मानें तो देश में ग्रामीण इलाकों की डिस्पेंसरियों में 81.6 प्रतिशत बाल रोग विशेषज्ञ उपलब्ध नहीं हैं। सामान्य फिजिशियनों की ही बात करें तो ग्रामीण क्षेत्र की डिस्पेंसरियों में 79 प्रतिशत फिजिशियनों की कमी है। 72 प्रतिशत से कुछ अधिक कमी प्रसूति रोग विशेषज्ञों की है। यह तो सरकारी आंकड़ों में दर्शाये गये हालात हैं। हालांकि नवीनतम रिपोर्ट में हालात में कुछ सुधार देखने को मिल सकते हैं पर अधिक सुधार की आशा करना बेमानी होगा। दरअसल हमारे यहां दस हजार की आबादी पर केवल 7 डॉक्टर उपलब्ध हैं जबकि क्यूबा जैसा देश दुनिया के देशों में मेडिकल चिकित्सकीय सेवा में लीड कर रहा है और वहां दस हजार की आबादी पर 84 डॉक्टर उपलब्ध हैं, अमेरिका में यह संख्या 35 तो चीन में 23 है।

ब्रेन ड्रेन शब्द सबसे पहली बार विश्वयुद्ध के समय उभर कर आया जब भारतीय इंजीनियर व अन्य विशेषज्ञ अपनी काबिलियत का लोहा मनवाने विदेशों में जाने लगे और वहां अपनी पहचान बनाई। 1950 से 1960 के दशक में यूके, कनाडा और यूएसए में प्रतिभा पलायन का दौर चला और इसे ब्रिटिश रॉयल सोसायटी ने ब्रेन ड्रेन कहा तो अब विदेशों में प्रतिभा पलायन चाहे वह किसी भी देश की हो उसे ब्रेन ड्रेन के नाम से पुकारा जाने लगा है। ब्रेन ड्रेन को एक तरह से अच्छा भी माना जा सकता है क्योंकि हमारी प्रतिभा को वहां स्थान मिल रहा हैं पर जब तक घर के हालात तंदुरुस्त नहीं हों तब तक इसे ज्यादा अच्छा नहीं कहा जा सकता। वैसे भी हमारे यहां से ही नहीं अपितु दुनिया के लगभग अधिकांश देशों से प्रतिभाएं किसी ना किसी कारण से पलायन करती हैं। विदेशों में प्रतिभा पलायन को ही ब्रेन ड्रेन कहा जाने लगा है। 

अब ब्रेन ड्रेन को ब्रेन गेन कह कर भी पुकारा जाने लगा है तो दूसरी और रिवर्स ब्रेन ड्रेन भी होने लगा है। सवाल यह है कि देश में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार और डॉक्टरों की जरूरतों को देश में पूरा करना समय की मांग है। आज हम देश में आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं उसके बादजूद ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति खासतौर से चिकित्सकों और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी निश्चित रूप से चिंता का विषय है। लाख सरकारी दावों के बावजूद अन्य देशों की तुलना में स्वास्थ्य सेवाओं पर जीडीपी की तुलना में हमारे देश में 3 प्रतिशत से कुछ अधिक ही खर्च किया जा रहा है जबकि यूएसए में जीडीपी का स्वास्थ्य पर खर्च 18 प्रतिशत से भी अधिक है तो क्यूबा में 11 प्रतिशत और जापान में 10 से अधिक ही व्यय किया जा रहा है।

चिकित्सकों के ब्रेन ड्रेन को रोकने के लिए भी सरकार को ठोस प्रयास करने होंगे। डॉक्टर्स की सेवा शर्तों में सुधार के साथ ही इस क्षेत्र में निजी और सरकारी दोनों ही क्षेत्रों में निवेश को बढ़ावा देना होगा। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत बनाना होगा। आज भी चिकित्सा क्षेत्र में निवेश की जो तस्वीर देखने को मिल रही है वह यही है कि करीब 90 प्रतिशत निवेश निजी क्षेत्र में आ रहा है। लाख टके का सवाल है कि लाख सरकारी व्यवस्थाओं के बावजूद निजी चिकित्सालयों तक अधिकांश लोगों की पहुंच लगभग नहीं के बराबर ही है और आने वाले समय में कोई बड़ा बदलाव होगा यह लगता भी नहीं है।a