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पोषण के चारे पर प्रहार तो 'इंडिक्टेड’ का 'इंक्लूसिव' जोड़ तैयार

सार

विपक्षी गठबंधन का जोड़ और नाम सामने आ गया है. टूटे दिल और दल मिलकर INDIA नाम से अलायंस बना लिया. उनके हिसाब सेइन सभी दलों के नेता-कार्यकर्ता और समर्थक इंडिया को रिप्रेजेंट करते हैं. विपक्षी दलों का INDIA  नया INDIA तो नहीं हो सकता.

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विस्तार

इस अलायंस में शामिल सभी दल 11 राज्यों में सरकार चला रहे हैं. कई पहले सरकार चला चुके हैं. कांग्रेस तो इस देश पर एकछत्र राज कर चुकी है. आजादी के अमृत काल में इन दलों को INDIA अलायंस की याद आई है. नरेंद्र मोदी की 10 साल की सरकार में ऐसा क्या हो गया कि दिल से अलग दल भी सुरक्षा के लिए एक साथ गले मिल रहे हैं.

INDIA अलायंस का पूरा नाम “इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक इंक्लूसिव अलायंस” कहा जा रहा है. विपक्षी दलों की एकजुटता के तार जिस एक बात से जुड़ रहे हैं वह इसमें शामिल अधिकांश नेताओं पर भ्रष्टाचार के अभियोग और जांच प्रक्रिया प्रतीत होती है. विपक्षी गठबंधन की अंतर्निहित धारा के आधार पर INDIA अलायंस का पूरा नाम इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल ‘इंडिक्टेड’ अलाइंस कहना ज्यादा सामयिक और सारगर्भित होगा.

वैसे तो इंडिया नाम को जोड़कर बाजार में बहुत सारे ब्रांड चल रहे हैं. सियासी दल भी इंडिया ब्रांड का उपयोग अलायंस के लिए पहली बार कर रहे हैं. वैधानिक प्रक्रिया के अनुसार इंडिया नाम से कोई भी संगठन नहीं बनाया जा सकता है. हो सकता है कि कानूनी प्रक्रिया में विपक्षी गठबंधन को अपना नाम बदलना पड़ जाए. बाजार में बहुत सारे ब्रांड अपने उत्पाद को इंडिया से जोड़कर बेचना चाहते हैं लेकिन अब इस पर रोक लगी हुई है.

ईश्वर का सत्य भले एक है लेकिन लोगों की अनुभूतियां अलग-अलग हैं. ऐसी ही स्थिति लोकतंत्र की है. हर नेता लोकतंत्र को बचाने की बात कर रहा है. कई लोग लोकतंत्र को बचाते-बचाते  खुद मिट गए हैं लेकिन लोकतंत्र ना केवल बचा है बल्कि दिनों-दिन ताकतवर होता जा रहा है. यह लोकतंत्र की ही ताकत है कि भ्रष्टाचार के मामले जांच में आ सके हैं. लोकतंत्र की तपिश से ही घबरा कर लोकतंत्र बचाने के नाम पर विपक्षी दल लोकतंत्र के अपने सत्य के लिए एक साथ संघर्ष पर आगे बढ़ रहे हैं.

भ्रष्टाचार इस लोकतंत्र की सबसे बड़ी बाधा है. राजनीतिक दलों के नेताओं की संपत्तियां आर्थिक स्थिति बड़े बड़े उद्योगों की विकास दर को भी पीछे छोड़ती दिखती है. ऐसे राजनेता जो गरीब घर में पैदा हुए थे जिनके जीवन यापन में संघर्ष के इतिहास हैं उनकी आर्थिक हैसियत आज अबूझ बनी हुई है. एमपी एमएलए के लिए अलग से निर्धारित अदालतें भी इनके प्रकरणों का समय पर निराकरण नहीं कर पा रही है. यह स्थिति लोकतंत्र को खराब कर रही है. इस पर हंसा जाए या अफसोस किया जाए? लोकतंत्र को कलंकित करने वाले ही लोकतंत्र बचाने का संकल्प लेकर इंडिया को आवाज देने की कोशिश कर रहे हैं.

भारतीय राजनीति की कमजोरियां मोदी सरकार के कार्यकाल में ही क्यों उजागर हो रही हैं? भ्रष्टाचार की जांच क्यों तेजी से बढ़ रही है? जो विपक्षी दल गठबंधन में आ रहे हैं उनकी 11 राज्यों में सरकारें हैं. यह राज्य सरकारें भ्रष्टाचार के मामलों पर जांच तेज़ी से क्यों नहीं करती हैं? हिंदू मुस्लिम की राजनीति के सहारे लोकतंत्र की बुनियाद को कब तक कमजोर किया जाता रहेगा? तुष्टिकरण और संतुष्टीकरण की राजनीति कब तक चलती रहेगी?

भारत के लोकतंत्र ने बड़े-बड़े तानाशाह देखें हैं. इंदिरा गांधी का आपातकाल भी देखा है. इसी लोकतंत्र ने सभी तानाशाहों का पूरा इलाज किया है. आपातकाल में लोकतंत्र खतरे में नहीं था? बंगाल के पंचायत चुनाव में हुई हिंसा को लोकतंत्र पर खतरा क्यों नहीं माना जा रहा है? भ्रष्टाचार के मामलों में राजनेताओं और उनसे जुड़े लोगों पर छापों में करोड़ों की नकदी ज़ब्त होती है, वह लोकतंत्र पर खतरा नहीं है? लोकतंत्र के नाम पर परिवारवाद की राजनीति लोकतंत्र के लिए कम से कम उन दलों के लिए तो खतरा नहीं हो सकती जिनका आधार ही परिवारवाद की राजनीति बनी हुई है. 

जिस विचारधारा ने ‘इंदिरा इज इंडिया’ और  ‘इंडिया इज इंदिरा’ का नारा देकर लोकतंत्र को कमजोर किया था वही विचारधारा आज के लिए INDIA नाम का दुरुपयोग अपने अलायंस के नाम पर करने से भी परहेज नहीं कर रही है.ऐसा लगता है कि भारतीय राजनीति निर्णायक मोड़ पर पहुंच गई है. यही तय होना है कि लोकतंत्र सियासत का शिकार होगा या लोकतंत्र परिवारवाद, भ्रष्टाचारवाद और खुद को खुदा समझने के सियासी अतिवाद से निकलकर अपना नया मजबूत स्वरूप ग्रहण करेगा? 

भारत को INDIA की नजर से देखने की मानसिकता ऐसे क्लास में है जो भारत को नहीं समझते हैं. विपक्षी गठबंधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिक्रिया यह संकेत दे रही है. भारत में भविष्य की राजनीति की लड़ाई भ्रष्टाचार को संरक्षण और भ्रष्टाचार से  मुक्ति की विचारधारा के बीच होने वाली है. नरेंद्र मोदी विपक्षी गठबंधन की बैठक पर तंज़ करते हुए कहते हैं कि उनके लिए परिवार पहले देश कुछ भी नहीं है. जो लोग असीमित भ्रष्टाचार करते हैं वह लोग बेंगलुरु में जुटे हैं. पीएम मोदी ने यह भी कहा कि 75 सालों में हमारा भारत कहीं से कहीं पहुंच सकता था हम भारतीयों के सामर्थ्य में कभी कोई कमी नहीं रही है लेकिन इस सामान्य भारतीयों के सामर्थ्य के साथ भ्रष्टाचारी और परिवारवादी पार्टियों ने अन्याय किया. 

भारत में नकली और असली सामान का बाजार समझने में जनता बड़ी चतुर है. नकली सामान का लेबल कुछ भी हो लेकिन जनता असली पहचान ही जाती है. भारतीय सियासत में लंबे समय बाद सियासत में बदलाव के कारण पूर्व में स्थापित पोषण के चारे की असलियत खुलती जा रही है. हर जांच और छापे में जनता का माल पकड़ा जा रहा है. पोषण का सामान ऐसे ही घटता रहा तो फिर ऐसे लोगों के शरीर में ताकत ही नहीं बचेगी कि अकेले खड़े भी हो सकें. 

अभी तक विपक्षी दल जो दूध पी रहा था वह अब शुद्धता के साथ मिल रहा है तो पच नहीं पा रहा है. शुद्ध वस्तु को पचाने के लिए इंसान का आंतरिक तंत्र भी शुद्ध होना चाहिए. ऐसी शुद्धता से ही लोकतंत्र अपने आप को बचा सकता है. राजनेताओं को लोकतंत्र के लिए चिंतित होने की जरूरत नहीं है उन्हें तो अपने स्वास्थ्य के लिए चिंता करने की जरूरत है.