एमपी में सांसदों और विधायकों को पुलिस द्वारा सेल्यूट करने का सर्कुलर जारी किया गया है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष इसका विरोध कर रहे हैं. जबकि उन्हीं के दल के सांसद विधायक इसका समर्थन कर रहे हैं. पीसीसी प्रेसिडेंट अगर चुनाव जीते होते, तो वह भी विधायक होते. फिर शायद उन्हें विधायकों को सेल्यूट में कोई आपत्ति नहीं होती. इसका विरोध करते हुए बाकायदा डीजीपी को पत्र लिखा गया है..!!
पुलिस में लागू की गई इस नई व्यवस्था के विरोध के लिए जो आधार बताया जा रहा है, उसमें कांग्रेस द्वारा यह कहा गया है, कि भाजपा के 9 सांसदों और 51 विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. इनमें 16 प्रतिशत गंभीर आपराधिक प्रकरण हैं. अपराधिक कैरेक्टर को सेल्यूट करने से पुलिस का सम्मान गिरेगा. इस निर्णय को अनुचित मानते हुए प्रदेश कांग्रेस ने इस पर पुनर्विचार की मांग की है.
कांग्रेस के स्टैंड के विरोध में बीजेपी की ओर से कहा जा रहा है, कि सेल्यूट अनुशासन और आदर की अभिव्यक्ति है. लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों का सम्मान उन्हें चुनने वाली जनता का सम्मान होता है. बीजेपी की ओर से कहा गया है, कि कांग्रेस के 66 विधायकों में से 38 पर आपराधिक मामले हैं. इनमें से 17 विधायक गंभीर अपराधों में लिप्त हैं. बीजेपी का यह भी कहना है, कि सिर्फ विधायक ही नहीं बल्कि कांग्रेस के नेताप्रतिपक्ष, उपनेता प्रतिपक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री गंभीर आरोपों का सामना कर रहे हैं.
पुलिस द्वारा सांसदों और विधायकों को सेल्यूट कोई नई बात नहीं है. इन्हीं विधायकों में से कार्यपालिका सरकार गठित होती है. मुख्यमंत्री, मंत्री बनते हैं. नेता प्रतिपक्ष पद पर भी विधायक बैठते हैं. वर्तमान में भी निर्वाचित ऐसे प्रतिनिधियों को जो संवैधानिक या कार्यपालिक पदों पर प्रतिष्ठित हैं, उन्हें तो गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है. अब नई व्यवस्था में हर निर्वाचित विधायक और सांसद को सेल्यूट किया जाएगा.
इस फैसले में अच्छाई और बुराई देखने से ज्यादा यह देखना जरूरी है, कि दोनों दल राजनीति में अपराधीकरण पर एकमत हैं. दोनों दल खुले आम एक-दूसरे पर यह आरोप लगा रहे हैं कि उनके विधायकों पर बड़ी संख्या में अपराधिक मामले दर्ज हैं. कई पर तो गंभीर आरोप हैं. आपराधिक कैरेक्टर वाले लोग चुनाव में राजनीतिक दलों द्वारा ही उतारे जाते हैं, बल्कि अब तो ऐसा भी कहा जा सकता है, कि सामान्य आदमी का चुनाव जीतना कठिन है. चुनाव जीतने के लिए व्यक्तित्व का अपराधिक होना एक अनिवार्य शर्त है.
राजनीति में अपराधीकरण पर बहस नई नहीं है. दशकों से चल रही है और शायद हमेशा चलती रहेगी. इसका कोई भी हल अब तक तो नहीं हो पाया है. जहां राजनीतिक दलों में केवल चुनाव में जीत टारगेट है, उसके लिए अपराधिक या नैतिक कोई शर्त नहीं है. जो जीत सकता है, वही उनका प्रत्याशी होगा. हमारा लोकतंत्र तो ऐसा है, कि जेल में बंद अपराधी भी चुनाव लड़ लेते हैं और भारी बहुमत से जीत जाते हैं.
राजनीति में आपराधिक व्यक्तित्व और पुलिसके साथ टकराव पर बहुत सारी फिल्में बनी हैं. सिंघम जैसी फ़िल्में आदर्श पुलिस अधिकारी की छवि पेश करती हैं. अगर कहीं भी कोई ऐसा पुलिस अफसर होता है जो ईमानदारी से अपना कर्तव्य पालन करता है, तो उसे सिंघम, यहां तक कि लेडी सिंघम तक कहा जाता है.
राजनीति में अपराधियों का प्रवेश पुलिस के कारण नहीं होता. इसके लिए राजनीतिक दल ही जिम्मेदार होते हैं. जब तक राजनीतिक दल अपराधिक कैरेक्टर वाले लोगों को मौके देते रहेंगे तब तक पुलिस को सेल्यूट करने के लिए बाध्य होना पड़ता रहेगा. कई बार तो ऐसे उदाहरण दिख जाते हैं कि एक दौर में पुलिस के चंगुल में रहे. बाद में राजनीति की दिशा तय करने लगते हैं. संसदीय व्यवस्था में संसद और विधानसभा ही सुप्रीम हैं, इसलिए सांसद विधायक को सेल्यूट का निर्णय गलत नहीं हो सकता. सवाल यह है कि इस व्यवस्था में अपराधिक कैरेक्टर कैसे स्थान पा जाते हैं. इसके लिए किसकी जिम्मेदारी बनती है.
पुलिस द्वारा सेल्यूट अनुशासन और आदर की अभिव्यक्ति हो सकती है, लेकिन जब पुलिस का अनुशासन ही तारतार किया जाता है, तो फिर इसे किसका अपमान और किसका सम्मान कहा जाएगा. आए दिन ऐसी घटनाएं सामने आती हैं, जब पुलिस पर हमले किए जाते हैं. पुलिस की हत्याएं की जाती हैं. भोपाल में भी ताजा घटनाक्रम में रानी कमलापति स्टेशन पर गाड़ी में बैठकर नशा कर रहे लोगों को हटाने के लिए गए पुलिस पर हमला किया जाता है. उसकी वर्दी फाड़ी जाती है. उसे धर्म के आधार पर टारगेट किया जाता है. पुलिस के सम्मान में यह जो गिरावट आ रही है, इसके बारे में भी विधायकों और सांसदों को चिंतन करने की जरूरत है.
कोई दिन नहीं जाता, जब कहीं ना कहीं पुलिस पर हाथापाई या हमले की घटनाएं नहीं होती हों. समाज में अपराधियों का हौसला इतना कैसे बढ़ गया है, कि अपराध रोकने के लिए काम करने वाली पुलिस पर ही हमले हो जाते हैं. विधायकों और सांसदों की पेशवाई के लिए सेल्यूट वाली पुलिसियाई तो सभी चाहते हैं, लेकिन पुलिस के सम्मान की रक्षा के लिए कोई गंभीर दिखाई नहीं देता.
पुलिस की सर्विस जो कभी सम्मान की दृष्टि से सबसे अच्छी सर्विस मानी जाती थी, उसकी स्थिति दिन पे दिन खराब हो रही है. पुलिस के बिना किसी भी निर्वाचित जनप्रतिनिधि का सम्मान का आकाश सजता नहीं है. किसी भी नेता के पास अगर पुलिस की सिक्योरिटी हो तो वह अपने आप सम्मान और अहंकार से भर जाता है. जिस वर्दी से उसका सम्मान है, उस वर्दी पर जब हमला किया जाता है, तो फिर निर्वाचित जनप्रतिनिधि चुपचाप क्यों रहते हैं.
पुलिस व्यवस्था में सुधार की सख्त जरूरत है. पुलिस के सम्मान की रक्षा पर सरकारों को गंभीर होने का वक्त है. पुलिस लॉ एंड ऑर्डर के लिए है. नेताओं के सम्मान के लिए अलग से पुलिस बनाई जा सकती है. लॉ एंड ऑर्डर ऐसा विषय है, जो कभी भी डिसऑर्डर हो जाता है. पुलिस पर पत्थर बरसाए जाते हैं.
पुलिस कानून की ताकत और इकबाल पर अपराध नियंत्रित करती है. पुलिस पर हमला केवल पुलिस ही नहीं बल्कि पूरे लोकतांत्रिक सिस्टम का इकबाल खंडित करती है.