यह राजनीति का स्तर है, पहले भी कांग्रेस पार्टी के ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के समय को लेकर सवाल उठे थे, यह सही है कांग्रेस पार्टी पूर्णकालिक अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया से भी गुजर रही है..!
प्रतिदिन-राकेश दुबे
10/09/2022
राजनीति देखिये, राहुल गाँधी इन दिनों भारत की जरूरत “भारत जोड़ों यात्रा” पर है |उनके जूते और टी शर्ट की कीमतों और ब्रांड को लेकर के समाचार सुर्खी बन रहे है, और सवाल उठाये जा रहे हैं | यह राजनीति का स्तर है, पहले भी कांग्रेस पार्टी के ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के समय को लेकर सवाल उठे थे | यह सही है कांग्रेस पार्टी पूर्णकालिक अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया से भी गुजर रही है। कयास ये भी हैं कि क्या राहुल गांधी इस पद को स्वीकारेंगे या गांधी परिवार से बाहर का कोई व्यक्ति इस पद तक पहुंचेगा।भारत में किसी भी कदम के साथ राजनीति और आलोचना का जो नया चलन देखने में आ रहा है, अभूतपूर्व है|
भारत में आजादी से पहले महात्मा गांधी व बाद में चंद्रशेखर की यात्राओं का इतिहास मौजूद है। जिसमें उनके राजनीतिक कद व सामाजिक सरोकारों का संबल भी रहा है। ऐसे में कहा जा सकता है कि कांग्रेस यदि उठाये गये मुद्दों से जनता को जोड़ पाती है तो पार्टी की यात्रा सफल होने की उम्मीद की जा सकती है। भारत में 150 दिन चलने वाली और बारह राज्यों से गुजरने वाली पदयात्रा की शुरुआत कन्याकुमारी से हो गयी है। वह भी ऐसे वक्त में जब कांग्रेस पार्टी का जनाधार सिकुड़ा है और तमाम दिग्गज एक-एक करके पार्टी को अलविदा कह रहे हैं, भारत जोड़ो यात्रा के जरिये कांग्रेस पार्टी अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश तो करेगी ही।
निसंदेह आने वाला वक्त बतायेगा कि कांग्रेस अपनी बात को किसी हद तक लोगों तक पहुंचा पायी है। कांग्रेस की यह पदयात्रा जम्मू-कश्मीर में खत्म होने से पहले बारह राज्यों से गुजरेगी। यात्रा जहां नहीं जायेगी वहां सहायक यात्राएं निकाली जाएंगी। साथ ही हर राज्य में विशेष कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे। कांग्रेस पार्टी 2024 के महासमर के लिये अपने जनाधार को विस्तार देने की तैयारी में है। कांग्रेस पार्टी ही नहीं अन्य कई पार्टियों का कहना है कि सत्तारूढ़ राजग सरकार के कार्यकाल में सामाजिक ध्रुवीकरण से राष्ट्रीय एकता को खतरा पैदा हुआ है। वहीं महंगाई व बेरोजगारी से त्रस्त समाज को राहत देने की ईमानदार कोशिश नहीं हो रही है।
सब जानते हैं कि हर पदयात्रा के राजनीतिक निहितार्थ होते हैं। महात्मा गांधी ने दांडी यात्रा की शुरुआत ऐसे वक्त में की थी, जब कांग्रेस में स्फूर्ति लाने की महती आवश्यकता थी। वहीं चंद्रशेखर भी पार्टी के आंतरिक राजनीतिक हालात से क्षुब्ध थे और आज कमोबेश कांग्रेस पार्टी ऐसे ही संक्रमणकाल से गुजर रही है। क्षेत्रीय पार्टियों के जोर की पहचान बाहुल्य दक्षिण भारत में ध्रुवीकरण की राजनीति प्रभावी न होने के कारण कांग्रेस ने अपनी यात्रा यहां से शुरू करके दक्षिण में अपनी पकड़ मजबूत बनाने की कोशिश की है। ये आने वाला वक्त बताएगा कि पार्टी कहां तक अपने मकसद में कामयाब होती है।
आज नेतृत्व का प्रश्न भी उसके सामने है। गांधी परिवार के शीर्ष नेताओं से केंद्रीय एजेंसियों की पूछताछ जारी है। अपने लंबे-चौड़े इस्तीफे में गुलाम नबी आजाद ने कहा भी कि देश जोड़ने के बजाय इस समय कांग्रेस को जोड़ने की जरूरत है। मुख्य सवाल यह है कि महासमर में राजग के मुकाबले के लिये विपक्षी एकता के प्रयासों की कड़ी में क्या विपक्षी दलों को भी पदयात्रा में शामिल नहीं किया जाना चाहिए था? इस बीच कुछ अन्य विपक्षी दलों द्वारा भी पदयात्रा शुरू करने की खबरें हैं।
भले ही कांग्रेस पदयात्रा का लक्ष्य देश में ध्रुवीकरण से उत्पन्न खतरों से लोगों को अवगत कराना, महंगाई व बेरोजगारी के मुद्दे पर जन दबाव बनाना बताती हो, मगर उसका मुख्य लक्ष्य तो राहुल गांधी की जन स्वीकार्यता में इजाफा करना ही है।
भारत जोड़ो यात्रा का नारा ‘मिले कदम, जुड़े वतन’ पार्टी के लिये कितना कारगर होगा, यह आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन इससे पार्टी संगठन में जान फूंकने में मदद अवश्य मिल सकती है । कांग्रेस की तरफ से यह भी उत्तर अपेक्षित है कि यह यात्रा गुजरात व हिमाचल प्रदेश से क्यों नहीं गुजर रही , जहां इस वर्ष चुनाव हो रहे हैं? यात्रा की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि पार्टी अपने लक्षित संदेश जनता को समझा सकी और उसमें राजनीतिक बदलाव के प्रति ललक पैदा कर पाई है| भारत जोड़ो यात्रा की सफलता की उम्मीद कांग्रेस कर सकती है। वहीं दूसरी ओर भाजपा इस यात्रा को ‘गांधी परिवार बचाओ आंदोलन’ की संज्ञा दे रही है। इस पर ही राजनीतिक पार्टियों के परदे के पीछे काम तंत्र जूते, टी शर्त जैसे सवाल पैदा कर रहा है , जो कहीं से भी उचित नहीं है |