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भारत की पहली  चिंता “पर्यावरण” होना चाहिए*

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Thu , 27 Jul

सार

सच तो यह  है  हम  पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले मुद्दों के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने का मौका हम गंवा रहे हैं।

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विस्तार

पर्यावरण को लेकर एक रिपोर्ट आई है, जो सारे विश्व के साथ भारत को भी आईना दिखा रही है। भारत के कई राज्यों पर इसमें पृथक- पृथक विचार नहीं हुआ है। पूरे भारत की दशा चिंतनीय है।अंतर-सरकारी पैनल  ने अपनी छठी मूल्यांकन रिपोर्ट के दूसरे भाग को जारी करते हुए यह चेतावनी दी कि यदि कार्बन उत्सर्जन को जल्द नियंत्रित नहीं किया गया, तो वैश्विक स्तर पर गरमी और आर्द्रता असहनीय हालात पैदा करेंगे, और यह स्थिति भारत जैसे देशों को कहीं ज्यादा प्रभावित करेगी।

समिति ने देश के अलग-अलग प्रांतों की समीक्षा की है, लेकिन दुर्भाग्य से यह रिपोर्ट उतनी चर्चा नहीं बटोर सकी, जितनी दरकार थी। अभी तमाम देशों की नजर रूस और यूक्रेन के युद्ध  पर है, जबकि युद्ध ही  एक बड़ा प्रदूषण उत्सर्जक  है। युद्ध  में जितना भी गोला-बारूद या हथियार आदि इस्तेमाल किए जाते हैं, वे काफी मात्रा में प्रदूषण और एरोसॉल (महीन ठोस और तरल कणों की गैस के रूप ) पैदा करते हैं। सुपरसोनिक और जंगी विमानों की गिनती भी बड़े प्रदूषकों में होती है। इतना ही नहीं, जलवायु मुद्दों पर लगने वाली पूंजी भी युद्ध की तरफ मोड़ दी जाती है, जिससे पर्यावरणीय मसले अनछुए रह जाते हैं।

सच तो यह  है  हम  पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले मुद्दों के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने का मौका हम गंवा रहे हैं।  हमें एक-दूसरे से उलझने के बजाय एकजुटता दिखानी चाहिए और साझा मुद्दों पर लड़ना चाहिए। ऐसा इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि पर्यावरण को हमने हद से अधिक बर्बाद कर दिया है।

पिछले  वर्षों में चक्रवाती तूफान, मानसून आदि की आवृत्ति बढ़ गई है और चरम मौसमी परिघटनाएं भी लगातार घट रही हैं। समुद्र का तापमान इतनी तेजी से बढ़ता जा रहा है कि तटीय इलाकों के लिए काफी विषम परिस्थितियां पैदा हो रही हैं।

इस रिपोर्ट में शहरीकरण को लेकर महत्वपूर्ण बातें कही गई है कि शहर और शहरी केंद्र वैश्विक तापमान को बढ़ाने में लगातार योगदान दे  रहे हैं। अनियोजित शहरीकरण पर्यावरण पर नकारात्मक असर डालता है। आंकडे़ भी पुष्टि कर रहे हैं कि शहर न सिर्फ अपने तापमान को वैश्विक गरमी के लिहाज से अनुकूल बना रहे हैं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी तापमान को प्रभावित कर रहे हैं। रिपोर्ट का कहना है कि अनियोजित शहरीकरण ने न सिर्फ गरमी, बल्कि एरोसॉल बढ़ाने का भी काम किया है। इनसे मौसम एवं जलवायु लगातार प्रभावित हो रहे हैं। शहरों में ऊंची-ऊंची इमारतें बन गई हैं, जिनमें इस्तेमाल होने वाली सामग्रियां ‘री-रेडीएट’ (विकिरण को अवशोषित करने के बाद का  विकिरण ) करती हैं। इससे  रात का न्यूनतम तापमान बढ़ चला है। यह वृद्धि उन उपकरणों से भी हो रही है, जो सुविधा के नाम पर शहरों में दिन-रात इस्तेमाल किए जा रहे हैं या फिर हर वक्त सड़कों पर दौड़ने वाली गाड़ियों के कारण। 

एक अध्ययन बताता है कि शहरीकरण के कारण बढ़ने वाला तापमान तूफान और गरज के साथ बिजली जैसी मौसमी परिघटनाओं की बारंबारता बढ़ा रहा है। बारिश पर भी इसका असर पड़ता है। हमने देखा भी है कि इन दिनों न सिर्फ तेज बारिश आने की आवृत्ति बढ़ी है, बल्कि चरम मौसमी घटनाओं में भी तेजी आई है। रिपोर्ट बताती है कि मध्यम श्रेणी वाली बारिश के बरसने की दर कम हुई है, जबकि तेज बारिश की दर बढ़ी है। बढ़ती वैश्विक गरमी ने मानसून को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है।

इस  रिपोर्ट भारत की  बहुत अच्छी तस्वीर नहीं दिखा रही। रिपोर्ट में कहा गया है कि वादे के मुताबिक अगर उत्सर्जन कम कर लिया गया, तब भी उत्तरी और तटीय भारत के कई इलाकों में इस शताब्दी के अंत तक ‘वेट-बल्ब’ तापमान (गरमी और आर्द्रता को एक साथ मापने वाला मापक) ३१  डिग्री सेल्सियस से ज्यादा रहेगा। हालांकि, नीतिगत मोर्चे पर हमारी सरकार ने काफी अच्छा काम किया है।अक्षय ऊर्जा के लिहाज से अब २०३०  के उस लक्ष्य की ओर हम बढ़ गए हैं, जिसकी सिफ़ारिश   प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करते है। ये तमाम नीतियां कागजों पर जितनी मजबूत है, जमीन पर उतनी नहीं दिखतीं। जाहिर है, जनता के स्तर पर काफी काम किए जाने की जरूरत है। तंत्र को इस दिशा में सक्रिय होना पड़ेगा और आम लोगों को लगातार जागरूक करना होगा।