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कांग्रेस का उद्योग, सत्ता का भोग

सार

संसद में दो दिनों से राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के उत्तर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर कांग्रेस के राजनीतिक उद्योग को उजागर किया. राहुल गांधी के नेतृत्व में अभी तो कांग्रेस अडानी से शुरू और अडानी पर खत्म जैसी स्थिति में खड़ी हुई है. राज्यसभा में तो कांग्रेस ने अडानी को लेकर जिस तरह प्रधानमंत्री के पूरे भाषण के दौरान नारेबाजी की वह भारतीय राजनीति के लिए शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता.

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विस्तार

नरेंद्र मोदी ने उद्योगपति गौतम अडानी का नाम लिए बिना सारे आरोपों को झूठा और कीचड़ उछालने वाला बताया. पीएम मोदी का कहना है जिसके पास जो है वही उछालेगा, कांग्रेस के पास कीचड़ है वही उछाल रही है. उनके पास गुलाल है वह गुलाल उछाल रहे हैं.

राहुल गांधी और कांग्रेस के दूसरे नेताओं ने अडानी को लेकर जो आरोप लगाए हैं उनमें मुख्यतः यही कहा गया है कि अडानी समूह को बैंकों और एलआईसी ने भारी-भरकम निवेश उपलब्ध कराया है. इस समूह को कई देशों में अनेक ठेके मिले हैं. भाजपा के दूसरे नेताओं ने राहुल गांधी के आरोपों पर जवाब दिए लेकिन प्रधानमंत्री ने राहुल गांधी को एक बार फिर पूरी तरह से इग्नोर किया है.

केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार के  पहले राजनीतिक उद्योग का लक्ष्य सत्ता का भोग ही बना हुआ था. मोदी ऐसे प्लेयर के रूप में दिल्ली के राजनीतिक खेल में स्थापित हुए जिन्हें दिल्ली का कोई अनुभव नहीं था लेकिन उन्होंने ग्राउंड पर बिना किसी एडजस्टमेंट के चारों तरफ अपने स्टिक घुमाई और कई गोल दागे. पहले केंद्र की राजनीति में सत्ता पर कोई भी हो पॉलीटिकल एडजस्टमेंट आम बात मानी जाती थी. पीएम मोदी के मामले में ऐसा बिल्कुल भी भरोसा नहीं किया जा सकता.

पहली बार कांग्रेस और गांधी परिवार पर जांच एजेंसियों का शिकंजा कसा है. मोदी के अलावा कोई भी राजनीतिक स्थितियां ऐसा करने का साहस नहीं दिखा सकती थीं. मोदी ने कोई कार्यवाही करने की पहल नहीं की लेकिन एजेंसियों के कामकाज में कोई रुकावट पैदा नहीं की. अडानी के वित्तीय मामलों को लेकर शेयर मार्केट में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो भी घटनाक्रम हो रहे हैं उन पर राजनीतिक आरोप निश्चित रूप से पॉलीटिकल प्रेशर के अलावा क्या कहे जा सकते हैं?

कोई भी राजनेता भारतीय कानून के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति के खिलाफ अवैधानिकता के लिए कानूनी कार्यवाही करने के लिए सक्षम है. अडानी की कहानी राहुल गांधी की जुबानी सुनने का कोई औचित्य नहीं प्रतीत होता. गड़बड़ियों को उजागर करने के लिए भारत और दूसरे देशों में स्वतंत्र एजेंसियां और रेगुलेटर काम कर रहे हैं. पीएम मोदी ने उन आरोपों पर कोई जवाब न देकर सही किया जिनका कोई आधार नहीं है.

लोकतंत्र में नेता की विश्वसनीयता सबसे बड़ा आधार होता है. मोदी की विश्वसनीयता का लेवल आजाद भारत में अब तक रहे भारत के नेताओं में सबसे ज्यादा दिखाई पड़ता है. मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत कांग्रेस द्वारा राजनीति में निराशा के माहौल से शुरू की. उन्होंने जनता के विश्वास के सुरक्षा कवच का उल्लेख करते हुए सरकार द्वारा गरीबों और आम लोगों के जीवन में बेहतरी लाने के लिए किए गए उपायों का बखान किया. 

राजनीतिक रूप से देखा जाए तो बीजेपी का राजनीतिक विकास, उनकी वैचारिक सफलता के साथ ही कांग्रेस की विफलता में छिपा हुआ है. भारतीय जनमानस राजनीति में परिवारवाद, भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार से त्रस्त था. पीएम मोदी ने सही कहा कि 2004 से 2014 तक का यूपीए सरकार का कार्यकाल देश को पीछे धकेलने वाला था. कांग्रेस ने देश के विकास के लिए उस महत्वपूर्ण दौर को गंवाया है. भारत आज विश्व में जिस मजबूती के साथ खड़ा है अगर उस दौर को सही ढंग से देश के विकास के लिए उपयोग किया गया होता तो आज भारत का स्थान और भी ऊपर पहुंच गया होता.

भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गांधी में अनुभव और परिपक्वता बढ़ती देखी जा सकती है लेकिन देश की लीडरशिप के लिए जरूरी गुणों की अभी कमी देखी जा रही है. नरेंद्र मोदी ने एक स्टेट्समैन के रूप में संसद में सिलसिलेवार अपनी बात रखने में सफलता हासिल की है. उनकी हर बात के साथ तर्क था.
 
नरेंद्र मोदी ने राजनीति में तात्कालिक लाभ के लिए अर्थव्यवस्था को दांव पर लगाने की प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की है. उन्होंने किसी स्कीम का नाम तो नहीं लिया लेकिन निश्चित रूप से देश की कुछ राज्य सरकारों और दूसरे दलों द्वारा ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने की घोषणा को ही उनकी बात का संदर्भ माना जा सकता है. उन्होंने कहा कि कई राज्य सरकारें क़र्ज़ लेकर घी पीने का काम कर रही हैं. भविष्य की पीढ़ियों के लिए यह खतरनाक है. हमारे पड़ोसी देशों में साफ देखा जा सकता है किस तरह से स्थितियां बिगड़ी हैं. अगर राज्य की सरकारें अर्थव्यवस्था के साथ खिलवाड़ करेंगी, ऐसे  निर्णय करेंगी जिनका भार दूरगामी रूप से राज्य पर पड़ेगा तो आने वाले समय में स्थितियां भयावह हो सकती हैं.

नरेंद्र मोदी आरोपों की भट्टी से ही तप कर निकले हैं. जब गुजरात में वे मुख्यमंत्री थे तभी उन पर आरोपों की झड़ी लगी रहती थी. मोदी के साथ एक अजीब संयोग देखा जा सकता है जब भी उनकी जितनी ताकत से आलोचना की जाती है उतनी ही ताकत से ही जनता का उन पर विश्वास बढ़ता जाता है. 2014 के बाद देश की चुनावी राजनीति में बीजेपी को मिली सफलता निश्चित रूप से मोदी की सफलता के रूप में देखी जा रही है और राहुल गांधी लगातार चुनाव की राजनीति में कमजोर होते हुए दिखाई पड़ रहे हैं.

भारतीय संस्कृति में ऐसे कई चरित्र हैं जहां ऐसा कहा जाता है कि उन पर जितना हमला होता है उतना ही उनको ताकत मिलती है. हमला करने वाले की शक्ति भी उनको मिल जाती है. रामचरितमानस में बाली का चरित्र इसका उदाहरण है. पीएम मोदी के साथ भी ऐसा ही होता रहा है. जब जब विपक्ष उनके खिलाफ जितनी ताकत से सक्रिय हुआ है पब्लिक की शक्ति उतनी ही मोदी के साथ दिखाई दी है.

कांग्रेस कोई नया राजनीतिक दल नहीं है. उसके पास देश में शासन करने का लंबा अनुभव है. कांग्रेस की चिंता और निराशा का कारण स्वाभाविक रूप से यह होगा कि उनके इतने लंबे कार्यकाल के बाद भी देश ने जो उपलब्धि हासिल नहीं की वह उपलब्धियां पीएम मोदी के शासनकाल में हासिल हो रही हैं. जब भी अपना प्रतिद्वंदी कम समय में उपलब्धियां हासिल करता है तो पूर्व शासक में निश्चित रूप से निराशा का भाव स्वभाविक है.

नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में बहुत ताकत के साथ कहा कि देश की जनता का भरोसा ही मेरा कवच है. झूठ और गालियों से विपक्ष इसको भेद नहीं सकता. देशवासियों के आशीर्वाद को सबसे बड़ी पूंजी बताते हुए मोदी ने गरीबों के  कल्याण की योजनाओं को क्रियान्वित करने की नई कार्य संस्कृति का विवरण दिया. नरेंद्र मोदी की नेतृत्व क्षमता भारत में ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रमाणित हुई है.

राजनीति में सत्ताधारी दल के साथ ही विपक्ष की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. विपक्ष को आलोचना का अधिकार होता है. लोकतंत्र में आलोचना सुधार का माध्यम होती है. आलोचना के नाम पर आरोप तंत्र की प्रवृत्ति लोकतंत्र के लिए घातक कही जा सकती है. राहुल गांधी जोड़ने के लिए पदयात्रा करते हैं लेकिन जोड़ने का मंत्र स्थापित करने में कहीं न कहीं चूकते दिखाई पड़ते हैं. राजनीति में रहने वाले हर व्यक्ति के लिए देश सबसे पहले होना चाहिए जो भी बात कही जाए उसकी बुनियाद में देश का विकास ही लक्ष्य होना चाहिए. अभी तो ऐसा दिखाई पड़ता है कि राजनीति लाभ के लिए सवाल और आरोप खड़े कर जवाब से दूर भागना राजनीति की आम प्रवृत्ति बन गई है.

डेमोक्रेसी की मदर इंडिया को दुनिया के सामने डेमोक्रेसी के नए डाइमेंशंस को स्थापित करने के लिए दलीय भावना से ऊपर उठकर काम करने की जरूरत है. देश मजबूत रहेगा तो राजनीतिक दल भी रहेंगे और नेता भी रहेंगे. जन विश्वास की कसौटी पर निर्विवाद रूप से मोदी आज भारत के सबसे बड़े स्टेट्समेन और लीडर हैं. भारत को ऐसे नए लीडर की हमेशा जरूरत रहेगी लेकिन लीडर बनने के लिए जिस मेहनत और ईमानदारी की जरूरत है वह हर व्यक्ति से अपेक्षित नहीं है.